आइ निन्न नै फूजल भोरे. पितामही अनरोखे ठंढा जल सं माथ पर थप्पा देइत छलीह आ निन्न टुटैत छल जुड़शीतल कें. ओहि सभ दिन मे बाबरी सोटले रहैत छल सुतलो मे. ओ किशोरवयक समय छल. हाथ सं बाबरी सरियओबैत उठैत छलहुं. पितामह कहितथि चलह आब हमरा संगे जुड़बै छी गाछ-बिरिछ. आ विदा भ' जाइ छलहुं पोखरि भीड़क गाछी, हत्ता, धूमा गाछतर, बरहरी भीड़. हमहीं नै गामक लगभग गोटेक भोरका रूटीन यैह छल एहि पावनिक. आब की केना होइ छै नै जानि!
गाछ कें पोसब, फल लगाएब मिथिला मे परम्परा सन रहल छै. गाम आब तेजी सं शहरक अनुकरण मे लागल अछि, से स्थिति परिवर्तित भेलइए. सुनैत छलियै जे लोक शाही शिकार पर जाइ छल पहिने एहि दिन. मुदा जंगल कम भेने शाही उपटि गेलैक आ शिकार खेलब सेहो बन्ने सन भ' गेलैक.
हमरा मोन अछि एक बेर सहन्ते समवयसू किछु मित्रक संग चिडै-चुनमुन केर शिकार पर निकलल छलहुं जुड़शीतल कें. आमक गाछ पर उल्लूक खोंता पर अटैक केने छलियैक हम सभ. सुनैत छलियैक जे उल्लू कें दिन मे नै सूझैत छै मुदा ओ उल्लू जोड़ा हमरा सभ मित्र कें बेरा-बेरी टीक नोचि क' ल' गेल. किछु दिन धरि उल्लूक आतंक रहल मोन मे. गाछी दिस जाइ त' ओ उल्लू हमरा सभ कें देखि जोर-जोर सं बाजए आ चांगुर-चोंच सं अटैक करए. एहना ओ तखन करए जखन कि हम सभ ओकर किछु बेसी नोकसान नै क' सकलियैक. कनेक उछन्नर देलियैक बस. ई सिलसिला किछु मास चलल.
एहि दिनक कादो खेलब मोन पडैत अछि त' दुखित भ' जाइ छी. बहुत किछु आब छुटि सन गेल अछि. छुटल पुनि भेटैत नै छै. बीतल समय घुरैत नै छै. बस स्मरण क' हिए कनेक हल्लुक अवस्से भ' जाइछ.
— रूपेश त्योंथ