प्रेम पूरित भास : समधानल कथ्य, गतानल शिल्प


पश्चिमेशिया सँ बहुत नीक-अधलाह वस्तु आएल।  नीक वस्तु भेल भाषा -साहित्य (अरबी -फारसी)। भारतीय भाषा सभ मे असंख्य अरबी -फारसी शब्द आबि गेल।आन क्षेत्रक कोन कथा धार्मिक क्षेत्र मे सेहो;यथा -कबुला,छड़ी, मुबारक आदि। कफ़न लेल आन कोनो शब्द नहि भेल।सुनल अछि जे 'ओकालतनामा' लेल आन शब्द नहि अछि। खाता, खेसरा,तौजी, जमाबंदी, दाखिल -खारिज आदि शब्द अनिवार्य भए गेल।

उमर खय्यामक (एगारहम शताब्दी) 'रुबाइत' केर विश्व व्यापी प्रचार प्रसार भेल। अरेबियन नाइट्स एखनहु पढ़ल जाइत अछि।
          
छन्द विधान मे 'गजल ' बड़ प्रचलित भेल। मैथिली मे सभसँ पहिने लिखलन्हि कविवर जीवन झा।तकर बाद प्रायः पचास -साठि साल धरि केओ नहि गजल लिखलनि।१९६० क बाद पुनः गजल लिखल जाए लागल।मायानंद मिश्र गीत मे गजल मिझरा कए किछु गीतल लिखलनि। हिंदी मे दुष्यंत कुमार ततेक नीक गजल रचलनि जे हुनक किछु पंक्ति लोकक ठोर पर आबि गेलै।

मैथिली मे आजुक कवि गजल लिखैत छथि। विजय इस्सर 'वत्स' लिखने छथि; - गजल मे पैघ बात कम शब्द मे राखब, बहुत विषय केँ एक गजल मे समेटब संगे बहरक तरंग, क़ाफियाक गमक आ रदीफक धमक हमरा विशेष आकृष्ट करैत अछि।
            
"ज्ञान बांचब काज नै ई बात अनुभव केँ अपन अछि 
"वत्स" के अतबे निहोरा  प्रेम पूरित भास राखू"

हुनक "प्रेम पूरित भास" मे मिथिला -मैथिली केँ जे बखरा भेटलै ताहि मे किछु मीठ आ किछु तीत अछि। एहि मे ताकू अतीतक आँखि, वर्तमानक दृष्टि आ भविष्यक पथ 

१- एक बेर फेर मैथिलीक पूत जाग रे 
    फांर बान्हिं एकताक संग आब लाग रे (गजल सं-३)

२- जानि नहि कहिया उदित हेथिन सुरुज मिथिला नगर 
    ताक मे छथि टक लगौने बेस अखनो भोर छै।(गजल सं -४)

३- मिथिलाक पोखरि मे लगौने ध्यान छथि बगुला भगत 
     बाचैत सदिखन सत-अहिंसा ज्ञान छै मिथिला भगत (ग०सं-१७)

४-  कानैत हेती मैथिली 
     लाजो कने अक्खन करूं (ग०सं-२२)

५- देश हमर छल मिथिला शोभित राज्यक लेल किए बेलल्ला 
  सुनगौ अस्मित आगि सभक हिय तखनहि'वत्स ' पजारि दियौ ने
   (ग०सं०-२४)
६- मैथिली केँ धूम सौंसे छोड़ि मिथिला मे मचल 
    लोक बिदकै नाम सुनिते मैथिली कें गाम मे (ग०सं०४४)
७- वत्स जाधरि जीव ताधरि 
     मैथिली कें ऋण सधेबै  (ग०सं०-३९)
८- कहिया अन धन लक्ष्मी घर मे खेत गहुंम आ धान हेतै 
    मिथिला माछ बनत जग पोषक शोभित पान मखान हेतै 
    कहिया धरि मैथिल जन-गण मे मैथिलत्वक ज्ञान हेतै 
    कहिया धरि मैथिल नेता कें मातृभूमि पहिचान हेतै (ग०सं०४६)
९- कहिते रहबै बात अपन हम लीखिक' गीत गजल आ कविता 
    गौरव मिथिला केर अतीतक गाबिक' गीत गजल आ कविता 
     (गजल सं -४८)
१०-मातृभक्ति करम हमर आ देशभक्ति हमर धर्म छै
      मैथिली हिंदीक सोझा आर ककरो मानि नै छै (ग०सं-५०)
११-भाषा संस्कृति चद्दरि ओढ़िक' मैथिल भीड़ भजा क' खेलक 
      एहन संघाती घर रहने निश्चित ओ घर ढहबे करतै।

आउ हम सभ मैथिलीक ऋण सधेबाक संकल्प ली आ किरिया खाइ। अबै छी?   

विश्वक मानव जातिक असंख्य समस्या सभ कें छूबैत छथि तकरा संग मिथिलाक अतीतक गौरव गीत,गजल आ कविता मे लिखैत छथि,गबैत छथि। समधानल कथ्य, गतानल शिल्प,भजारल व्यंग्य सभ टटका, किछु बासि नहि। प्रशंसनीय -अनुकरणीय संप्रेषण। क़ाफियाक गमक आ रदीफक धमक।
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