मैथिली साहित्यक अनन्य सेवक, मैथिली साहित्यक सभ विधा पर अपन कलम चलौनिहार जगदीश प्रसाद मंडल साहित्य अकादेमी द्वारा हुनक रचित उपन्यास पंगु मादे वर्ष 2021 लेल पुरस्कृत भेलाह. एहि संदर्भ मे (दिनांक 15.04.2022 कें हुनक आवासीय परिसर वेरमा गाम, मधुबनी) विजय इस्सर 'वत्स' मिथिमीडिया लेल भेटवार्ता कएलनि. भेटवार्ता केर संपादित अंश एतय पढ़ल जा सकैत अछि.
प्रणाम! सभ सँ पहिने अपन व्यक्तिगत जीवनक संक्षिप्त परिचय, साहित्यिक रुझान आ फेर साहित्यक यात्राक संबंध मे कहल जाओ.
हम साधारण माध्यम वर्गीय परिवार मे जन्म लेलहुँ. तीन वर्षक अवधि मे हमर पिताजी स्वर्गवासी भ' गेलाह. माएक देखरेख मे जे किछु पढलहुं-लिखलहुं. साहित्यक विद्यार्थी रहबाक कारण साहित्यिक रूझान हमरा आरंभहि काल सँ रहल. एमए धरि आबैत-आबैत समाजक प्रति हमरा मोन मे अनेक प्रश्न उठए लागल. सामाजिक समस्या आ ओकर निदानक प्रति हमर डेग उठए लागल. शोषक जमीनदार, सामंतशाही आ सूदखोर महाजनक खिलाफ हम लड़ाइ लड़ए लगलहुं, संघर्ष चलए लागल. अहि कारण सं नाना तरहक झमेला-फसाद मे सेहो ओझराइत गेलहुं. अखन धरि हम सतरह बेर जेल गेल छी, आ पचास-पचपनटा मोकदमा लड़लहुं अछि. अंतिम मोकदमा जे जमीनदारक खिलाफ छल से 2005 मे खतम भेल. ताधरि हम किछु नै लिखने छलहुँ. समाज आब एक स्तर पर पहुंचि गेल. आब समाज सँ जमीनदारी, शोषण आ सूदखोरी लगभग खतम भ गेल छल. एहि सभ संघर्ष मे हमरो उमर 50-55 केर भ' गेल. हम साहित्यक विद्यार्थी छलहुँ, तें हमरा अंतर मे साहित्यिक बोध छल. हम 2005 सँ साहित्य लिखब आरंभ केलहुं आ लगातार क्रमबद्ध रूपें लिखैत रहलहुँ जकर प्रतिफल आइ अहां सभक सोझा अछि.
अपनेक जीवन संघर्षमय रहल अछि आ एतेक संघर्षक पश्चात् अपने एतय धरि पहुंचल छी से निश्चित रूपें समाज लेल प्रेरक बनल रहत. हिन्दी साहित्य आ राजनीति शास्त्र सँ डबल एमए करब सेहो संघर्षे रहल होएत. सब तरहक संघर्ष कें पार करैत 2005 सँ साहित्यिक यात्रा आरंभ कएल ताहि मे कोन अभीष्ट की अपेक्षा रहल?
साहित्यक संबंध मे कहल जाइ छै जे साहित्य समाजक दर्पण होइ छै से त' ठीक मुदा साहित्य समाजक दर्शन सेहो होइ छै. साहित्य समाजक आइना बनि ओकर रूप देखाबै छै संगे समाजक दर्शनक माध्यम सँ नव विचार आ बाट सेहो देखबैत छै. हम एहि दुनू बिंदु कें पकड़ि आगू बढलहुं. समाजक समस्या कें जहिना हम साहित्यक माध्यम सँ उठेलहुं तहिना समाज कें दिशा देबाक प्रयास सेहो केलहुं. जाहि सँ नव जागरण होए, साम्यवादी विचारधारा आगां बढै, एकटा नव समाजिक रूपरेखा बनै जे नव समय मे समाजक लेल कल्याणकारी होइ.
अपने सामवादी विचारधारा कें सामाजिक पटल पर स्थापित करबाक प्रयास कएल. समाजक कतिएल लोक, सर्वहारा समुदायक आवाज़ कें मुखरित कएल. हम पूछए चाहै छी जे मैथिली साहित्य कें एखनो अपन समाजक सभ वर्गक लोक धरि पहुंच नै भेल छै. किछु लोक द्वारा मैथिली कें ब्राह्मणक भाषा आ मैथिली साहित्य पर मैथिल ब्राह्मणेक मात्र अधिपत्य छै से कहल जाइत छै. एहि संदर्भ मे जखन अपने ब्राह्मणेत्तर समाज सँ साहित्य रचना संसार दिस डेग बढबए लगलहुं त' किछु समस्या आएल की? ओतहु कोनो समस्या कोनो संघर्ष करए पड़ल की? एहि विषय मे कने फरिछा क' अपन बात राखल जाए!
कोनो भाषा-साहित्य कें ब्राह्मण आ ब्राह्मणेत्तरक सीमारेखा मे बिभाजन करबाक हम पक्षधर नै छी. हम ब्राह्मण बिरोधी नै छी. हम ब्राह्मणो संगे बहुत काज केलहुं मुदा एहन ब्राह्मण जे गरीब, दबल-कुचलल छलथि. रबीन्द्र नारायण मिश्र जी जे सर्वोच्च न्यायालयक जज सँ सेवा निवृत्त भ' दिल्ली मे रहैत छथि ओ हमरा सं प्रभावित भ' बहुत रचना केलनि. करीब दसटा उपन्यास लिखलनि, हुनका नजरि मे हम ब्राह्मण विरोधी नै छी. हम सभ सगर राति दीप जरय सन कथा गोष्ठी करैत छी जे साल मे चारि बेर आयोजित होइत आबि रहल अछि. ओतए हम सभ जाति वर्गक लोक एक संगे बैसिकए साहित्य चर्चा करैत छी. अपन भाषा-साहित्य आ समाजक उन्नति केना होएत, ओकर कल्याण कोना होएत एहि विषय पर खुल्लम-खुल्ला विचार-विमर्श करैत छी. जतए कथा की छी, ओहि मे लयात्मकता कोना एतै, कथा स्वरूप की होएबाक चाही आदि विषय पर चर्चा होइत अछि. ओतय सँ नव-नव कथा-लेखक सभ आबि रहल छथि. हमसब जाति-पाति सं उपर उठि कें काज करै छी. हालहि मे लखनौर प्रखंडक मधुरा गाम कें शंकर बाबू जे मारवाड़ी कॉलेजक मैथिली विभागक प्रोफेसर सँ सेवा निवृत्त भेलाह हुनके ओतए सगर राति दीप जरय कार्यक्रम भेल तहिना, ब्राह्मण, कायस्थ, वैश्य आदि सभ कें मिलाकए सभठाम हमसभ अनुष्ठान करैत रहैत छी सभहक सहयोग भेटैत अछि तें जातीय समीकरण में बांटिकए एकरा नै देखल जाए. सर्वहित मे आ सभक सहयोग सँ काज करैत रहलहुं अछि आ करैत रहब से आशा.
सुंदर! इएह सम्यक साहित्यिक दृष्टिकोणक मैथिली मे खगता छै. सभक संग चलबाक प्रयोजन छै, तहने समाज कल्याणक स्वप्न साकार भ सकैछ. अपनेक रचनाक तत्व विशुद्ध माटि-पानि मे सानल रहैत अछि. गाम, गामक परिवेश, खेत-खरिहान, मजूर-किसान इत्यादिक मूलभूत समस्या आ ओकर समाधानक चारूकात अपनेक रचना-संसार सृजित होइत आबि रहल अछि. एहि प्रकारक साहित्य रचना अहीं सन योद्धा कए सकैत छथि जिनका एक हाथ मे कलम त' दोसर हाथ मे कोदारि सेहो छनि. जेना कहल कथा गोष्ठी सँ बहुत नवतुरिया रचनाकारक आमद भ' रहल अछि. आजुक नवतुरियाक साहित्यक रुझान, दशा-दिशा आ ओकर भविष्य अपने कोन रूपें देखैत छियै?
जहिना समाज सबहक तहिना साहित्यो सभहक चीज छै. सभ जाति-धर्म, सभ समुदाय, सभ परिवेश आ विभिन्न विचारधाराक लोक मिलि कें एक सामाजिक समरसता स्थापित करैत छै. तहिना विभिन्न क्षेत्रक लोक अपन अपन विचारधाराक द्वारा साहित्य सृजन करताह तहन साहित्यक समरसता आ ओकर स्वाद बढतै. सभ तबकाक लोकक साहित्य दिस रुझान बढतै मुदा ओ साहित्य वास्तविकता सँ जुड़ल हो, यथार्थवादी हो इएह हमर धारणा अछि. हँ तहन ब्राह्मणेतर समाजक बीच एकटा नव चेतना जरूर जगलैए. ओ सभ बुझै छथि जे हमरो सभक बीच एहन लोक छथि जे एहि मार्ग मे हमरा सहयोग क' सकैत छथि, हमर पाथेय बनि सकै छथि. तें अखन बहुत रास नवतुरिया सब साहित्य क्षेत्र मे अपन उपस्थिति द' रहलाह अछि, चाहे ओ पासवान परिवार, केओट, राम, धानुक, महतो आदि परिवारक बच्चा किएक ने हो. ई हमरा लेल हर्षक विषय अछि. जहन सभ मिलि कें साहित्य सेवा करतै तहन एकटा विशाल वातावरण बनतै आ मैथिली साहित्यक डंका पूरा दुनिया मे बजतै से हमरा विश्वास अछि. हमरा मैथिलीक भविष्य उज्ज्वल देखा रहल अछि.
साहित्य अकादेमी पुरस्कार सँ पहिनहुं अपने कें बहुत रास पुरस्कार सभ भेटल अछि. ई मैथिली साहित्यक सभ सँ पैघ, सर्वोच्च पुरस्कार छै. मैथिली मे एहि सँ बेसी मान-सम्मान आर किछु नै! एहि संदर्भ मे अपनेक अनुभूति आ उद्गार जानए चाहब?
ओना पुरस्कारक जहां धरि बात छै जे साहित्य अकादेमीक कनभेनर अशोक अविचल जी जे झारखंड मे प्रोफेसर, प्रिंसिपल इंचार्ज सेहो छथि, ओ हमर नजदीकी लोक, हुनकर स्नेह-श्रद्धा हमरा उपर रहलनि. ओ जहन झारखंड सँ सनेस पत्रिका निकालैत छलथि ओहि मे हमर रचना कें प्रमुखता देइत छलथि. ओ हमर रचना सँ बेस प्रभावित छलथि. एहि साहित्य अकादेमी पुरस्कार मे हुनकर बहुत सहयोग रहलनि, जूरी लोकनिक सहमति सं पक्ष मे निर्णय आएल. हम बहुत आभारी छी.
जखन पुरस्कारक घोषणा भेल हेतै, अहां अपन नाम सुनने होएब, ओहि समयक आनंद, खुशीक अनुभूति केहन रहल से प्रकाश करी?
आनंद आ खुशी त' स्वभाविके! हम एहि पुरस्कार कें अपन कर्मक फल बुझलहुं. एतेक दिन जे साहित्य क्षेत्र मे इमानदारी सं मजदूरी केलहुं ओकर मेहनताना भेटल. सबकें आशा रहै छै, हमरो छल. आशा करबाक चाही, पुरस्कार भेटला सं खुशी होएबे करै छै.
गाम समाज मे, साहित्यक संसार मे अपने अति सम्मानित लोक. परिवार, समाज मे अपनेक प्रति निश्चित रूपें विशेष आदर बढि गेल होएत. ई सभ अपने कोन रूप मे देखैत छियै?
हम 1965 साल सं कामरेड भोगेंद्र बाबूक संपर्क मे अएलहुं. 1967 मे जखन बीए मे रही तखने सँ हुनका सानिध्य मे आंदोलनरत भ' गेलहुं. ओ एक महान नेता आ साधक छलाह. एकदम साधल आ संयमित जीवन! ओ हमर आदर्श छथि. जीवन मे बहुत संघर्ष आ उतार-चढाव देखने छी. तैं संयमित रूपे दुख-सुख सभ बिता लैत छी. हमर जन्म एक सीमान्त किसान परिवार मे भेल. तीन-चारि बीघा जमीन मे किसानी करैत अपन जीवनयापन करैत आबि रहलहुं. हम आइ धरि जते लिखलहुं सभ किसानी आ खेत-पथारक बात. अखनो हमरा मोन मे एतेक बात आ समाजिक समस्या अछि जे सारा जीवन लिखैत रहि जाएब त' ओ नै सधत. तीनटा बेटा छथि एकटा बेटा उमेश मंडल हालहि मे पीएचडी केलनि अछि. एकटा किसानी आ एकटा दवाइक दोकान चलबैत छथि. हिनके सभक शिक्षा-दीक्षा मे लागल रहलहुं. अपन घरो धरि नै बना सकलहुं. मुदा हम देखैत छी जे समाज मे हमरो सं बदतर स्थिति मे बहुत परिवार रहै छथि तैं कोनो दुख नै!
अखन सरकारी आवासीय परियोजना सभ आएल छै. इंदिरा आवास, प्रधानमंत्री आवास इत्यादि मुदा समस्या ई छै जे योजनाक लाभ लेबाक लेल अपन जमीन चाही आ एतय अधिकांश लोकक अपन डीह नै छै तें ओ सुविधा नै भेटि रहल छै. भ' सकैछ आगां एहू मे कोनो सुधार होइ जाहि सं सभ कें अपन पक्का मकान होइ. किएकि एतय अधिकांश छेहा गरीब सभ छथि जिनकर अपन घरारीक कोनो दस्तावेज उपलब्ध नै छनि. आइयो ओ टूटल टाट आ भीतक घर मे कहुना जीबि रहलाह अछि.
निश्चित रूप सँ अखनो समाज मे बहुतेक समस्या छै. समाधान आबि रहल छै मुदा से पर्याप्त नहि. आशा करै छी कालांतर मे स्थिति संतोषप्रद होएत. आब हम अपनेक शेष जीवनक संबंध मे जानए चाहब. भविष्यक कोनो परियोजना छैक की? आगां हमसभ जगदीश मंडल जी कें कोन रूप मे देखबनि?
हम साहित्यक सेवा मे लागल रहब. विशेष कोनो हमर परियोजना नै अछि. आब एहि बयस मे नव किछु की सोचब! साहित्यक माध्यम सँ समाजक समस्या उठबैत रहब, अपन बात रखैत रहब.
नीक विचार! आब हम कने हटि कें एकटा प्रश्न करैत छी. अपने सैकड़ो पोथीक रचयिता. अपने कें साहित्य अकादेमीक पुरस्कार भेटल. सगरो अहांक नामक चर्चा. पहिनहुं बहुत रास पुरस्कार सभ भेटल अछि. बहुतो मंच सं सम्मानित प्रशंसित भेल छी तइयो एहन साधारण भेषभूषा, बिना लागलपेटक बात, कनिको अपना मोन मे गुमान वा अहंकार नै होइत अछि. कने सजि-धजि कें लोकक बीच आबी, कने असाधारण बनबाक नाटक, गंभीर व्यवहारिकता जे सभ आइ-काल्हि आम बात छै. देखल जाइछ एकाधटा कोनो पुरस्कार-सम्मान भेटि गेला सं लोक बड गंभीर आ असाधारण बनि जाइत छथि!
(खूब जोड़ सँ हसैत) हम अपना कें छुच्छ किसान आ साहित्यक कार्यकर्ता बुझै छी तें अहंकार कें कोनो प्रश्न नै. जीवनक समग्रता मे किछु भावनात्मक आ किछु क्रियात्मक दायित्व होइ छै. कमाएब-खाएब खाली जीवन नै होइ छै. हम ओकरे अपन लेखनी आ व्यवहारिकता मे निर्वाह करबाक प्रयास करैत रहैत छी. तें हमरा मोन मे कहियो कोनो गुमान नै होइत अछि.
चलू अहां के नै होअए मुदा अहां पर हमरा सभ कें गुमान अछि. आब जाहि पंगु उपन्यासक लेल अपने पुरस्कृत भेलहुं ओ उपन्यासक संबंध मे हम किछु कहबाक आग्रह करै छी?
पंगु उपन्यासक संबंध मे हम एतबे कहब जे यात्री जीक बलचनमाक बादक मिथिला जे चित्र छलै से हम पंगु मे समेटने छी. यात्री जी बलचनमाक कथा जतय शेष केलथि ओकर बाद किसानक समस्या आ संघर्ष, जमीनक छीना-झपटी, भूदान आंदोलन आदि जे सामाजिक घटनाक्रम रहै ओ सब प्रसंग हम पंगु मे रखने छी. तें अहां सभ सं निवेदन जे मिथिला के असली चित्र देखै लेल पंगु उपन्यास कें जरूर पढ़ी.
हम सभ अपनेक कृति सँ धन्य भेल छी. हमर सभक शुभकामना जे अपनेक कीर्तिमान एहिना दिग्दिगंत धरि फहराए. नव-नव कीर्तिमान स्थापित करी जाहि सं मिथिला-मैथिली आओर गौरवान्वित होअए. नवतुरिया कें प्रेरणा भेटै जाहि सं मिथिला-उत्कर्षक मार्ग प्रशस्त होअए!
हम चाहै छी जे समाज मे एहन विचार बनए जतए जातिक समीकरण मे नै बांटि क' समग्र रूप सं जागरण होअए. हालहि मे दीप जतय बहुत पहिनहि सं संस्कृत महाविद्यालय छै, जतए सं कतेको आचार्य बनलाह संगहि मधुरा मे जे कार्यक्रम रहै ओहि मंच पर उपस्थित संस्कृत विश्वविद्यालयक बाइस चांसलर शशिनाथ झा जी आ महान वैज्ञानिक योगेन्द्र पाठक वियोगी जी सन आर कतेको विद्वान सभक बीच मे हम कहने छी जे जाहि समाज मे एतेक पैघ लोक सभ एक संग मिथिला-मैथिली लेल विचार करतै तहन मिथिला-मैथिलीक उत्थान हेब्बे करतै कियो रोकि नै सकतै!
बहुत सुंदर, अपने जे कीमती समय हमरा देल ताहि लेल हार्दिक आभार. संगे बहुत-बहुत शुभकामना जे अपनेक सृजनशीलता बढैत रहए. स्वस्थ रही आ हमरा सभक संगे मैथिली कें समृद्ध करैत रही!
बहुत-बहुत धन्यवाद! हम सभ समाज, भाषा आ साहित्यक रूपें एक्कहि छी तैं सभगोटे मिलि कें अपन समाज, भाषा आ साहित्य लेल काज करैत रही, जीवन मे समग्रता तखने एतै जखन लोक पेट सं आगां बढि समाज, भाषा आ साहित्य लेल सोचतै. अपने आ मिथिमिडिया कें हमर आभार आ स्वागत!