सरस्वती वंदना : या कुन्देन्दुतुषारहारधवला 🌼


या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता,
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता,
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥१॥

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं,
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌,
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥२॥

भावार्थ : जे विद्या केर देवी सरस्वती कुंद केर फूल, चंद्रमा, हिम आ मोतीक हार समान उज्जर रंगक छथि, आ जे उज्जर वस्त्र पहिरने छथि, जिनकर हाथ मे सुन्दर वीणा-दंड शोभायमान छनि, जे श्वेत कमल पर आसन ग्रहण केने छथि तथा ब्रह्मा, विष्णु आ शंकर आदि देवता द्वारा सदिखन पूजित छथि, वैह माँ सरस्वती जे सब जड़ता आ अज्ञानता दूर करैत छथि, हमर रक्षा करथि.

सम्पूर्ण चराचर जगत मे व्याप्त शुक्लवर्ण वाली आदिशक्ति, परब्रह्म विषय मे कएल विचार एवं चिंतन केर सार कें धारण करने वाली, सब भय सं मुक्त करए वाली, अज्ञान रूपी अन्हार कें दूर करए वाली, हाथ मे वीणा, पुस्तक एवं स्फटिक केर माला धारण करए वाली आ पद्मासन पर विराजमान्‌ बुद्धि प्रदान करए वाली सर्वोच्च ऐश्वर्य सं अलंकृत, भगवती शारदा केर हम वंदना करैत छी.
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