कलकत्ता विश्वविद्यालय मे मैथिली - Maithili in Calcutta University


Maithili in Calcutta University : जानकी जाहि भाषा मे अपन हर्ष, अपन विषाद, अपन पराक्रम, अपन संस्कार सहित सकल व्यक्तित्व ओ व्यवहार कें पोषित कएलनि, से मैथिली भाषा अछि. मिथिलाक धरती अपन अभिव्यक्ति स्वरूप जानकी कें प्रकट केने छल. जानकी मिथिलाक अभिव्यक्ति छथि, तैं मिथिला मे अभिव्यक्ति केर जे भाषा अछि से जानकीक नामे मैथिली रूपे प्रचलित अछि. एहना मे मैथिली भाषा अपन प्राचीनता पर जतेक नितरा सकैछ जे कम होएत. मुदा वर्तमान मे अपन परिचय, अपन अधिकार, अपन व्यवहार धरि लेल खेखनि रहल अछि.

अष्टम अनुसूचि मे भाषा कें स्थान भेटलाक बादो बिहार मे सरकारी उदासीनता आ राजनीतिक कुचक्र लगातार देखबा मे अबैत रहल अछि. हालहि मे बिहारक सदन मे मिथिलाक्षर (Mithilakshar) आ मैथिली कें ल' जे चर्च-बर्च भेल से जनमानस कें उत्साहित केलक अछि. एम्हर आबि क' ओहि पार नेपाल सहित दिल्ली, झारखण्ड आदि जगह पर मैथिली भाषा (Maithili Language) लेल किछु सरकारी प्रयास सेहो भेल अछि जे आशान्वित करैत अछि.
 
आब कलकत्ता अबै छी आ कने एकरत्ती उनटि क’ तकै छी. ब्रिटिश राज द्वारा प्रशासनिक सुविधा कें देखैत प्राच्य विद्या एवं भाषा सभक अध्ययन लेल कलकत्ता मे फोर्ट विलियम कॉलेज - Fort William College (10 जुलाइ 1800) केर स्थापना कएल गेलै. ओतए व्यापक स्तर पर भारतीय भाषा सभक अध्ययन, अनुसंधान ओ अनुवाद काज कएल गेल छलै. कलकत्ता केन्द्र छलै त’ बांग्ला भाषा बूझब, ओकरा खोधब मे ब्रिटिश विद्वान लोकनि लागि गेलाह. विलियम कैरी (William Carey) कें बांग्ला भाषाक प्रोफ़ेसर नियुक्त कएल गेल छलनि. ओ अपन एहि काज लेल कतेको भाषा-विद्वान सबहक मदति सेहो लेइत छलाह. एहि मे कोनो दूमति नै अछि जे कैरी एहि क्रम मे विद्यापति आ मैथिली भाषा पर काज केने छलाह.
 
बांग्ला साहित्यक बात करी त’ अंगरेजी साल 1800 सं आधुनिक काल शुरू होइ छै. एहि सं पूर्ववर्ती साहित्य जे भेटैत छै से मैथिली साहित्य, खास क’ विद्यापति (Vidyapati) रचित साहित्य केर चलती रहल छलै. मैथिलीक मौलिक रचना कें बांग्ला मानि लेबाक भूलवश हो अथवा विद्यापतिक रचनाक प्रेमवश...बांग्ला साहित्यकार सब पर विद्यापतिक जादो जकां छल जकर खूब आदर ओ अनुकरण भेल अछि. साल 1800 केर बादो ‘विद्यापति आ मैथिली’ बंगाल आ बांग्ला भाषा मध्य बेस मानल-दानल रहल छल. रबीन्द्रनाथ ठाकुर (Rabindranath Tagore) विद्यापति कें ओहिना नै प्रेरणा मानने छलाह!

एतय ई स्पष्ट होइत अछि जे फोर्ट विलियम कॉलेज मे विलियम कैरी संग कोनो ने कोनो रूप मे मैथिली भाषा केर अध्ययन होइत छल. भाषा पर एही सब काजक नतीजा भेलै जे 1853 मे जखन जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन 'इंडियन सिविल सर्विस' मे चयनित भ’ भारत अएलाह त’ कलकत्ता होइत पटना आ फेर मिथिला पहुंचै छथि आ मैथिली पर गहींर अनुसंधान करैत छथि. भारतीय विद्याविशारद विशेष क’ भाषाविज्ञान क्षेत्र मे आ ‘लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ़ इंडिया’ केर प्रणेता रूप मे ग्रियर्सन (George Abraham Grierson) अमर स्थान पओलनि. मैथिली भाषा लेल फोर्ट विलियम कॉलेज आ ग्रियर्सन केर कएल काज निश्चय एकटा संबल, एकटा हुब्बा बनि गेल अछि. एहि मे एकोरत्ती संदेह नै जे एहन काज सब कलकत्ता विश्वविद्यालय मे मैथिली कें प्रवेश दिअएबा मे बेस सहायक भेल अछि.

जखन कलकत्ता विश्वविद्यालय (Calcutta University) मे भारतीय भाषा सब मे उच्च शिक्षा केर व्यवस्था करबाक काज शुरू भेलै त’ एही क्रम मे मैथिली भाषा पर विचार कएल गेल छलै. ओहि सब समय मे सर आशुतोष मुखर्जी (1864-1924) महत्वपूर्ण भूमिका मे रहल छलाह. कलकत्ता उच्च न्यायालय केर न्यायाधीश रहैत ओ विधि व्यवस्था मे कतिपय सुधारात्मक डेग उठा सुनाम अर्जित केनहि छलाह, विश्वविद्यालय मे सेहो शैक्षणिक व्यवस्था कें दुरुस्त करबा मे महत्वपूर्ण योगदान रहलनि. उल्लेखनीय अछि जे सर आशुतोष मुखर्जी 1889 सं 1924 (जीवन पर्यन्त) धरि विश्वविद्यालय केर "फेलो" रहल छलाह. संगहि 1906-1914 आ 1921-1923 धरि कलकत्ता विश्वविद्यालय केर वाइसचांसलर सेहो रहल छलाह. बांग्ला सहित अन्य भारतीय भाषा सब मे स्नाकोत्तर धरि शिक्षाक व्यवस्था करबाक श्रेय हिनके जाइत छनि.

प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी अपन पोथी ‘ए सर्वे ऑफ मैथिली लिटरेचर’ मे लिखैत छथि – ‘सर आशुतोष मुखर्जी बनैलीक राजा कृत्यानंद सिंहक सहयोग सं कलकत्ता विश्वविद्यालय मे मैथिलीक चेयर स्थापित कएलनि.’ ओतहि डॉ. जयकान्त मिश्र केर ’ए हिस्ट्री ऑफ मैथिली लिटरेचर’ पोथी केर परिचय मे डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी लिखने छथि – ‘मैथिली अध्ययनक प्रति आसक्ति तीस बरख पूर्व कलकत्ता विश्वविद्यालय सं आएल जखन 1919 मे सर आशुतोष मुखर्जी (Ashutosh Mukherjee) प्रमुख आधुनिक भारतीय भाषा संग मैथिलीक एमए धरि अध्ययनक व्यवस्था केलनि. एहि सं मैथिलीक विद्वान ओ भाषा प्रेमीक अगाध अभिरूचि अपन मातृभाषाक प्रति जगलनि आओर बनैलीक कुमार गंगानंद सिंह, पंडित खुद्दी झा, पंडित बाबूजी मिश्र, बाबू गंगापति सिंह एवं अन्य मैथिल विद्वान मैथिली कें प्रतिष्ठापित करबा मे प्रभावकारी योगदान देलनि.’

'ए हिस्ट्री ऑफ मैथिली लिटरेचर' पोथी केर भूमिका मे डॉ. जयकान्त मिश्र एहि विषयक टिप्पणी करैत लिखैत छथि – ‘सर आशुतोष मुखर्जी कें कलकत्ता मे मैथिलीक संरक्षक कहल जा सकैत अछि. बनैलीक राजा कृत्यानंद सिंहक उदारपूर्ण सहयोग आ कुमार गंगानंद सिंह, बाबू गंगापति सिंह, ब्रजमोहन ठाकुर, विद्यानंद ठाकुर आओर अन्य केर यत्न सं कलकत्ता विश्वविद्यालय मे मैथिलीक चेयर केर स्थापना कएल गेल. विश्वविद्यालय मे स्नाकोत्तर कक्षा धरि मैथिली 1919 मे मान्यता पओलक. एहि सं मैथिली साहित्यक विकासक जगत मे अभूतपूर्व योगदान भेटल.’

अपन एक विस्तृत लेख मे पंचानन मिश्र कलकत्ता विश्वविद्यालय मे मैथिली शिक्षण मे ब्रजमोहन ठाकुर (अररिया) केर उल्लेखनीय भूमिका पर इजोत देने छथि. सर आशुतोष मुखर्जी केर आत्मीय छात्र रहल ब्रजमोहन ठाकुर जेना सम्पूर्ण प्रकिया मे ‘स्नेहक’ केर काज केने छथि से बेस महत्वपूर्ण अछि. पंचानन बाबू जेना उल्लिखित केने छथि, ब्रजमोहन बाबू जखन भाषा शिक्षण केर सूचि मे मैथिली कें नै पओलनि त’ ओ गुरुदेव सर आशुतोष मुखर्जी कें कतिपय तर्क द’ धियान आकृष्ट केलनि. मुदा कोषक अभाव बताओल गेलाक बाद ब्रजमोहन बाबू सक्रिय भेलाह. हिनक प्रयासक प्रतिफल भेल जे बनैलीक राजा कृत्यानंद सिंह आ श्रीनगरक राजाक कुमार कलिकानंद सिंह केर उदार दान सं आवश्यकता सं बेसी कोष जमा भेल आ मैथिली कें शामिल करबाक बाट सहज भेल.

पंचानन मिश्र अपन लेख ‘पंडित ब्रजमोहन ठाकुर आ कलकत्ता विश्वविद्यालय मे मैथिली शिक्षण’ मे लिखैत छथि – ‘कलकत्ता विश्वविद्यालय दिस सं अढ़ाइ हजार टाका जमा करबाक शर्तक अनुरूप राजा कृत्यानंद सिंह आ कुमार कलिकानंद सिंह बहुत अधिक साढ़े सात हजार टाका पठाए कौंसिल मीटिंग मे सूचना पठा देलनि. मीटिंग समाप्ति पर छल मुदा टाकाक सूचना भेटिते तत्क्षण मैथिली स्वीकृत भ’ गेल. अभिप्राय जे ब्रजमोहन ठाकुरक एकमात्र सत्प्रयास सं बनैली-श्रीनगर राजवंशक आर्थिक योगदान मैथिली कें एहि देश मे पहिल बेर विश्वविद्यालय स्तर पर शिक्षणक प्रतिष्ठा भेटि सकल. रजौड़ी स्टेटक टंकनाथ चौधरी सेहो मान्यताक उपरान्त साढ़े तीन हजार टाका दान देलनि.'


कलकत्ता विश्वविद्यालय मे मैथिली कें स्थान भेटबा मे एकर उत्तम साहित्य निधि महत्वपूर्ण कारक रहल छै. ससमय टाका केर व्यवस्था भेने 1919 मे एमए धरिक पढ़ाइ शुरू भेलै. मैथिली शिक्षण लेल विश्वविद्यालय मे चारिटा प्राध्यापक केर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू भेल. दूटा विशुद्ध मैथिली प्राध्यापक, एकटा क’ संस्कृतज्ञाता ओ अंग्रेजीज्ञाता मैथिली प्राध्यापकक नियुक्ति कएल गेल. पंडित बाबूजी मिश्र, डॉ. सुधाकर झा शास्त्री, पंडित खुद्दी झा, बाबू गंगापति सिंह आदिक नाम एहि देशक पहिल विश्वविद्यालयीय मैथिली प्राध्यापकक रूप मे जानल जाइछ.

एकर बाद मिथिला सहित देशभरिक विद्वान लोकनिक परामर्श अनुरूप पाठ्यक्रम बनाओल गेल जाहि मे विश्वविद्यालय केर तत्कालीन मैथिली भाषी छात्र-अध्यापक लोकनिक सहयोग लेल गेल. निश्चये एहि मे दर्जनो गोटेक सहभागिता रहल छलनि. मैथिली भाषा मे स्नाकोत्तर धरिक शिक्षा विकल्प भेने मिथिला सहित भारतक विभिन्न क्षेत्रक छात्र जे मैथिली भाषा-साहित्य मे अभिरूचि रखैत छलाह, मैथिली सं उच्च शिक्षा प्राप्त करैत गेलाह.

प्राप्त जानकारी अनुसार, लगभग 50 वर्ष सं अधिक समय धरि कलकत्ता विश्वविद्यालय मे मैथिली शिक्षण होइत रहल. पछाति विद्यार्थीक अभाव ओ अन्यान्य उदासीनता सब चलते 1971-72 अबैत-अबैत मैथिली शिक्षण शिथिल होइत-होइत बन्न भ’ गेल. रामलोचन ठाकुर अपन कतेको मंचीय संबोधन ओ आलेख आदि मे एहि पर धियान दियओलनि अछि जे जखन ओ कलकत्ता विश्वविद्यालय मे मैथिली ल’ पढ़ैत छलाह त’ पाठ्यक्रम आ परीक्षा प्रश्न पत्र धरि लेल निहओरा करैत रहए पड़ैत छलनि.

  
कलकत्ता विश्वविद्यालय मे मैथिली (Maithili in Calcutta University) शिक्षण पुनः शुरू हो ताहि दिशा मे सेहो एम्हर आबि क’ टुकटाक प्रयास देखल गेल अछि. कतेको आश्वासन, चिट्ठी-पुर्जी, मीटिंग-सिटिंग विषयक समाद कान धरि अबैत रहैत अछि. एहि दिशा मे किछु ठोस होइत देखबा मे नै अबैछ. निश्चय जओ पुनः शुरू हेतै त’ कलकत्ता आ उपनगर क्षेत्र मे विशाल संख्या मे निवास केनिहार मैथिल समुदायक विद्यार्थी लोकनि उपकृत होएत. संगहि इतिहास जओ अपना कें दोहराओत त’ से कम गरिमाक बात नै होएत!
 
— रूपेश त्योंथ

(प्रस्तुत आलेख 'पूर्वोत्तर मैथिल' पत्रिका केर कलकत्ता विशेषांक मे प्रकाशित भेल अछि. मिथिमीडिया पाठक हेतु सामग्री साभार लेल गेल अछि. उपर देल छवि कलकत्ता विश्वविद्यालय कैम्पस स्थित दरभंगा बिल्डिंग केर अछि. एहि भवन मे विश्वविद्यालय केर कतेको प्रमुख विभाग संचालित होइत अछि.)
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