कवि मैथिल प्रशान्त केर 4 गोट मैथिली कविता


1. गोलमोहर

माघक मौलायल रौद, 
वैशाखक पछिया पाबि
हुड़दंगी भ' गेलैए
तहदर्ज नहि रहलैए धरतीक करेज
पएरक बेमए सन फाटि गेलैए ज
हिं-तहिं
अपस्यांत छै चिड़ै चुनमुन्नी 
एक्को घोंट पानि नहि भेटि रहलैए कतौ
हमर देयादक दुश्मनीक सिमान पर 
एहने मौसिममे भकरार भ' फुलेलैए लाल बून्न गोलमोहर

राजधानीक चैन पर डिगडिगिया पीटि एलैए
स्वयंकेर निशानी बचएबाक उद्देश्यसँ
कंठ फुटि गेलैए बौककें
ओकर माएकेर झोंट ध' घिसियौलकै गुम रहल
खण्ड खण्ड क' देलकै ओ गुम्हरबो नहि केलक, गुम रहल
आइ जखन आँचर पर हाथ देलकैए त' विधिवत पिबाक चाही छातीक शोणित मुदा बकसि देलकैए

खाली चुगलाकेँ मुँह टा रंगलकै
लालसँ नहि, भगवासँ नहि रंगनिरपेक्ष कारी सियाहीसँ मात्र
अपन-अपन बटख'रासँ जोखैत लोक ठाढ़क' देने छै एकदोसराकें कठघ'रामे
हम स्वयंकेँ निर्दोष सिद्ध करबा लेल अहुरिया काटि रहल छी
घोंघाउज आ घमर्थनमे हम अपने समर्थन नहिक' पाबि रहल छी
मौसिम फेर बदलि रहलैए
लाल लाल गोलमोहरक फूलक एकहक पती बसातक सिहकीमे
आबि गेलैए अपन ठाम - हँ धरती पर
हमहूँ ठार छी धरती पर आसमानकेँ निरेखैत

2. अवसाद 

धारक कछेरमे
आकि पानिक भीतरीमे
अवसाद एकत्र भेलासँ
बनैत छैक चट्टान - अवसादी चट्टान
जकरा सहतासँ तोड़ल नहि जा सकैत छैक
मनुक्खक भीतरीमे
अवसाद जमा भेलासँ, लागि जाइत छैक गान्ही
मनुक्ख भखर' लगैत अछि 

3. अव्यक्त प्रेम

गुम्मीक आबाज बड़ दूर धरि जाइत छैक 
मुदा किओ आन,  नितांत आन कहाँ सुनि पबैत छैक 
छातीक चहरदेवारीक मांझ गोल-गोल चक्कर कटैत 
दिनसँ राति आ फेर रातिसँ दिनमे बदलि हौड़ैत रहि जाइत छैक गुम्मी 
आ नहुँ-नहुँ गुमसैन भ' जाइत छैक गुम्मी 

अव्यक्त प्रेम, व्यक्त होएबाक उत्कंठामे छेकल पररु जकाँ चुकरैत, भिसिण्ड भेल,  फुलिक' गोला बनि जाइत छैक 
आ तखन कोनो आकासीय पिण्ड जकाँ अपनहि गुरुत्वमे ओझरा धधकि उठैत छैक 
ओ नहि कहलक लोक लाजसँ 
ओकर सोझा हमरो बकार कहाँ फुटल 
खौंत कतेक बेर फुकलक 
अगनीत राति नियार भास भेल 
अगनीत प्रेम पत्र लिखल गेल 
अगनीत बेर सिरहन्ना लग आएल किछु सोहागिन स्वप्न,  फेर नवाड़ीए वैधव्य प्राप्त केलक 
साहस कहियो नहि भेल 'नहि' सुनबाक 
मारिते रास किन्तु-परन्तुक अकाबोनमे 
हम हथोरति रहलहुँ बिनु पुछने ओकर स्वीकृति ओकर 'हँ'

समाजक बन्हेज की टुटैत छैक, एतेक सुभिस्तासँ 
नहि किन्नहुँ नहि 
चहकैत छैक मातरे प्रेमक प्रतीक एकटा चान, मुदा नहि बनैत छैक कोनो उपग्रह 
प्रेम, संस्कृतिक वातावरणमे अबितहिं प्रतिरोधक घर्षणसँ धधकि उठैत अछि 
लोककें देखाइत छैक धधरा, कहाँ लगैत छैक मिसिओ धाह 
रियाइत-खियाइत खनहर बनि जाइत छैक प्रेम 
आँखि कन्नारोहटि नहि करैत अछि, नहि सिसकैत छैक कंठ 
गुम्मी मातरे भितरीमे भभकैत छैक,  गन्हाइत छैक 
नहि कहि पएबाक कचोट, चेन्हासी जकाँ पारल रहि जाइत छै जीवन पर्यन्त
 
मुदा की 
बिनु कहने बुझि जएबाक ब्योंत छैक कोनो एहि संसारमे 
हेतैक, अबस्से हेतैक 
साइत ओ प्रेम हेतैक, मुदा जँ व्यक्त नहि भेल त' प्रेम की 
बेर-बेर समय-समयपर पिसाइत रहलैए प्रेम, दुरुस्त होइत रहलैए परम्पराक आरि-धूर 
आइ फेर सही 
ककर की बिगरलैए जे आइ बिगैर जेतैक 
प्रेमक शोगमे कहिया चुल्हि निवारण भेलैक अछि 
पेटमे भुख बरकैत रहलैए 
प्रेमक आगि पझाइत रहलैए 
मौसम बदलैत रहलैए, बदलैत रहतै 
अनुकुलन नियम छैक प्रकृतिकेर 
फेर अखार साओन आओत, फेर बिचहनि पारल जेतैक 
फेर रोपनी हेतैक, निस्तुकी नहि कहल जा सकैत अछि रोपनी कोन खेतमे हेतैक 
के' लगाओत ग'ब, के काटत धान 
के' ककर गोसाउनिक सीरा आगू लवाण
वसंत फेर अओतैक 
हमर बाबाक रोपल आम गाछक डारिपर, फेर कुहकत कोइली 
मुदा गुम्म रहत हमर गुम्मी, किछु नहि बाजत 
ओकर आममहु बियाह देखत 
ओकर वरक परिछनि, चुमान देखत 
कनेक दुरस्थ भ' देखत
मुदा कोना देखत, ओकरा कोहबर जाइत 
कोना देखत ओकरा चारि राति, अहिबातक पातिलक दियरिमे तेल ढ़ारैत 
कोना देखि पाओत हमर गुम्मी, ओकर सिंउथमे लाल टरेस सिनूर 
जेना लाल धोखैरक' भगवा भ' जाइत अछि 
हमहुँ धोखरिक' अहाँ बनि गेल छी 
हमर गुम्मी बेसम्हार भेल जा रहल अछि 
हम जड़िसँ उकनन भ' रहल छी 
कतेक काल, कतेक दिन अपन आँखिक कोरमे समेटि राखब कोसी कमलाक धारकें 
हम कोसीकन्हा जकाँ बेरबेर उजरिक' फेर, नहि बैस सकैत छी 
आब पनुघ' केर एक्कहु टा असरा नहि अछि 
हमर करेजक चासमे बालुए बाउल पसरि गेल अछि 
एहि गुम्मीक तीख रौदमे 
की डिभिया सकैत अछि प्रेम? 

4. आस मे

भासि जाइत छैक निन्न,
जखन आँखिमे अबैत छैक,
नोरक बाढ़ि 
चनकि जाइत छैक करेज 
जखन संबंध फेरि लैत छैक मुँह 
मथसुन्न भ' जाइत छैक विवेक 
नितांत स्नेह आकि घृणामे 
जिनगीक शब्दकोशमे 
स्वयंकेर होएबाक अर्थ खोजैत मनुक्ख 
मातरे उपछैत रहि जाइत अछि साँस 
किनसाइत ककरो-ककरो भेटियो जाइत छैक 
गरइ-गरचुन्नी 
आसपर मातरे मल्लाह 
फेकैत अछि महाजाल 
कारण, 
पानिक भितरीमे बड़ किछु रहितो 
घाटपरसँ कहाँ किछु देखाइत छैक 
जे नहि देखाइत छैक 
तकरे हथोरैत चलि रहल छैक दुनियादारी 
रातुक पछुअइतमे झाँपल सुरुजक बाट जोहैत 
जीबि रहल छी हमहूँ

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मैथिल प्रशान्त मैथिलीक सुपरिचित कवि ओ गीतकार छथि. कतेको पत्र-पत्रिका मे हिनक कविता, गीत सब प्रकाशित छनि. हिनक एखन धरि तीन गोट कविता संग्रह 'अखरा चान', 'समयक धाह पर' ओ 'घाम होएबाक अकुलाहटि' प्रकाशित छनि. हिनका नवहस्ताक्षर पुरस्कार, कीर्तिनारायण मिश्र पुरस्कार सहित अनेक सम्मान प्राप्त छनि.

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