मिथिलाक संस्कृति मे बाड़ी


बाड़ी भेल घरक पाछाँ विभिन्न प्रयोजने राखल गेल जगह. ई आँगन सँ अ’ढ़ रहैछ आ मुख्यतः स्त्रीगण हेतु प्रयोजनीय होइछ. एकर रकबा उपलब्ध घड़ारीक हिसाबें कम वा अधिक भऽ सकैत अछि.

साबिक काल सँ स्त्रीगण हेतु स्नानक व्यवस्था बाड़ी मे रहैत आएल अछि. एहि हेतु कोनो उचित जगह पर टाट-फरक सँ घेरि आ स्नानी चौकी राखि तकर निजगुत व्यवस्था कएल जाइत रहल. पछाति जखन क’ल केर चलनसारि भेल तऽ कोनो-कोनो बाड़ी मे क’ल सेहो गड़ाओल जाए लागल. साँझ-परात स्त्रीगण हेतु निकासक व्यवस्था सेहो बाड़िए मे कएल जाइत रहल अछि. एखनो पैखानाघर प्राय: बाड़िए मे बनैत अछि.

बाड़ीक सहचर शब्दक रूपें झाड़ी शब्दक प्रयोग होइत रहल अछि. झाड़ी मतलब बहुत छोट-छोट गाछ. स्पष्ट अछि जे बाड़ी मे गाछ-बिरीछ सेहो होइत अछि. गाछक संख्या आ आकार बाड़ीक रकबा पर निर्भर करैत अछि. फूल, नेबो,  लताम, ओल, तेकुना, खम्हाउर, पान आदि सहजहिं एहि ठाम पाओल जा सकैए. जगह फैलगर रहने कलकतिया, आम्रपाली सन-सन आम, केरा आदि सेहो भेटि सकैत अछि. भाँग लेल बाड़ी तऽ एखनो प्रसिद्ध अछि. बाड़ी मे रोपल विभिन्न लत्ती-फत्ती मचान पर फड़ैत-फुलाइत अछि किंवा टाट-फरक पर लतरैत रहैत अछि अथवा ओरिया कऽ ओकरा चार पर चढ़ा देल जाइत अछि.

बाड़ीक ओल, नेबो, तिलकोर, केरा आदि वस्तु पाहुन-परकक स्वागत मे बेस काज अबैत छै. अनायास केओ आबि गेलाह आ घर मे कोनो ओरियान नै अछि तऽ चिन्ताक कोनो बात नै, बाड़ी मे चलि जाउ, कइएकटा वस्तु भेटि जाएत. ओहुना, सँचार पुरेबा मे बाड़ीक नीक भूमिका रहैत अछि. माने पाहुनक स्वागत लए बाड़ीक खास महत्व रहैत आएल अछि.

हेमनि धरि पर्दाप्रथाक कारणे स्त्रीगण बाड़ी मे, विशेषतः गुमारक समय मे, हवा खाए लेल बहार होइत छलीह. बाड़ी स्त्रीगण हेतु अपन अड़ोसी-पड़ोसी सँ गप्प करबाक स्थान सेहो अछि, खास कऽ एहन महिला हेतु जे आँगन सँ बहराइ नै छथि। बाड़ी बाटे एक सँ दोसर आँगन जेबाक रस्ता सेहो होइ छल जे बेर-कुबेर मे बड़ काजक छल. एक तरहें ई गुप्त बाट घरक मर्यादाक रक्षक होइत रहल अछि. गृहस्थी जीवनक मारिते रास अरजा-खरजाल रखबाक जगह सेहो छल बाड़ी. बाड़ी मे जारनि-काठी रखबाक लेल गठुल्ला घर बहुत गोटे एखनो रखैत छथि.

बाड़ी मैथिली लोकगीत मे सेहो खूबे जगह पओने अछि. खास कऽ नचारी मे तऽ ई रहरहाँ भेटत.  एगो उदाहरण एतय देखू- 
"बाड़िए झाड़िए भाँग खोंटै छी
आँचर पर सुखबै छी यौ"

एकटा बाड़ी मलाहक सेहो होइत अछि. कहबी बुझले होएत-"सभतरि राम-राम, बाड़ी पर नहि राम-राम". ई कोनो नहरि, नासी, पइनिक कछेर मे किछु दिन अथवा मास धरि नियमित माछ मारबाक जगह कें कहल जाइत छै. सामान्यत:, एहि ठाम खोपड़ी सेहो होइत अछि जे राति कऽ माछक चोरि रोकबाक हेतु ओगरबाहीक निमित्त बनाओल जाइछ. ई खोपड़ी नार-पुआरक अथवा सिड़की टाँगि बनैत अछि.

हँ, तहन आब घड़ारीक कमीक चलते गामो मे शहरी घर बनए लागल अछि जाहि मे संलग्न पैखाना, पानिक टंकी आदिक व्यवस्था रहै छै. एहना स्थिति मे बाड़ी कत्ते दिन बाँचत से कहब मोसकिल!

— मिथिलेश कुमार झा


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