मिथिलाक संस्कृति मे भनसाघर

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भनसाघरक सोझ अर्थ तऽ भेल भानस करबाक घर. किन्तु भनसाघरक महत्व खाली भानसेक लेल नहि अछि. भनसाघर (Mithila Kitchen) संस्कृति ओ मर्यादाक प्रतीक होइछ. आंगनक बाहर जे महत्व दरबज्जाक अछि सएह महत्व आंगनक भीतर भनसाघरक अछि.

भनसाघरक एक कोन्ह पर चिनमार रहैछ. अधिकांश ठाम चिनमार पर गोसाउनि विराजित रहै छथि. किछु गोसाउनि अथवा कुलदेवता चिनमार सं फराक रहै छथि. अधिकांश ठाम चिनमारे पर चूल्हि रहैछ. जाहि घरक देवता कें से पसीन नहि ताहि घर मे चूल्हि चिनमार सं फराक गाड़ल जाइछ. विरलएके एहन देवता छथि जिनका लेल फराक सं घर अजबारल रहैत छनि, सभ तरहक पातरि आ मातृका पूजा भनसे घर मे संपन्न कएल जाइत अछि.

भनसाघर सर्वाधिक पवित्र मानल जाइछ आ ताहि पवित्रताक रक्षाक सदति चेष्टा कएल जाइत अछि. प्राय: चूल्हि भनसाघरक ओसारा पर सेहो रहैत आएल अछि जे बेसी गुमार मे अथवा जल्दी पसाही लागयबला जारनिक प्रयोगक हेतु होइत अछि. चूल्हि पाछां लाबनि हेमनि धरि रहैत छल. तहिना भनसाघरक ओसारा पर घैल रखबाक हेतु घैलची सेहो बनाओल जाइत छल. हेमनि धरि रान्हल अन्न-तीमन बासन सहित रखबाक लेल भनसाघर मे माटिक पाड़ल मोड़ा सेहो होइत छल. तहिना निजगुत भऽ सीक टांगल जाइ छल जाहि पर दही, घी, छाल्ही आदि सुरक्षित राखल जाइ छल. आब तऽ सीक भांगएबला लोको भेटब दुर्लभ. भरि सालक खर्चा ओ पावनि-तिहार हेतु चाउर एवं आन अन्न सेहो भनसेघर मे रहैत छल. एहि हेतु विभिन्न आकार-प्रकारक कोठी रहैत छलै. मुदा आब कोठीक स्थान बड़का ड्राम लऽ लेलक अछि.

भानस हेतु विभिन्न बासन, थारी, बाटी, लोटा, पीढ़ी आदि एही घर मे रहैत अछि. तहिना पूजन सामग्री सेहो एही घरमे रहैत अछि. पहिने पावनि-तिहार मे उपयोग होबऽबला आ कम काल उपयोग होबऽबला बासन रखबाक लेल माटिक बनाओल चकलाक प्रयोग होइ. चकला बेसी काल एही घर मे राखल जाए. आब एहि हेतु ट्रंकक उपयोग होइत अछि किंवा पक्का वला तक्खा पर राखल जाइत अछि. विभिन्न पावनिक निमित्त ओरियाओल विभिन्न वस्तुजात सेहो भनसेघर राखल जाइछ. भनसा घर मे कइएक तरहक अंचार, सुखओत, बिड़िया, चटनीक सामग्री, तेल, मसल्ला, अदौड़ी, चरौड़ी, तिलौरी, घाइट, चिक्कस आदि भानसक दैनिक उपयोगक वस्तु आ पाहुन-परकक स्वागत-संचारक ओरियान सेहो रहैत अछि. संगहि सूप, चालनि, तामा, लाड़नि आदिक जगह सेहो भनसेघर.


मिथिलाक स्त्रीगण मे बचत करबाक प्रवृत्ति आ बेर-कुबेर मे भरमा-मर्यादाक रक्षाक चांकि अदौ सं रहलनि अछि. एकरा निमित्त भनसाघरक उपयोग ओ लोकनि निर्बाध रूपें करैत रहलीह अछि. पहिने दैनिक लागएबला सीधा मे सं नियमित रूपें एक मुट्ठी चाउर बहार कऽ सुरक्षित रखैत छलीह. ई चाउर कातिक मासक घटल घर मे काज अबैत छल. आ जओ नै घटलै तऽ एकरा बेचि कोसल कऽ लैत छलीह. अनचोके कोनो पाहुन आबि गेलाह, दोकान आकि बजारक समय नै अछि तऽ तेहनो समय मे स्त्रीगण बेथूति नै होबऽ देतीह. ओ लोकनि एखनो भनसाघर मे एत्ते वस्तु सुरक्षित रखैत छथि जे पाहुनक समाखन नीक सं भऽ जाइत छैक आ घरक मर्यादा पर बट्टा नै लगै छै.


जेना दरबज्जा पुरुषक एकाधिकार मे रहैत आएल अछि तहिना भनसाघर स्त्रीगणक अधिकार मे रहैत अछि. पूजा-पाठ छाड़ि पुरुष अपना कें एहि घर सं फराके रखैत छथि. नाति-नातिन छोड़ि आन पाहुन एहि घर मे नहि टपैत छथि. भनसाघर मे पाहुनक प्रवेश घरक मर्यादाक प्रतिकूल तऽ अछिए जे एहन पाहुन सेहो संस्कारहीन मानल जाइत छथि.

कहि सकैत छी जे मिथिलाक संस्कृति मे भनसाघर आंगनक सर्वाधिक पवित्र, मर्यादित ओ महत्वपूर्ण घर अछि. सर्वाधिक उल्लेखनीय ई जे एहि घरक पूर्ण मलिकाइन स्त्रीगण होइत छथि.

— मिथिलेश कुमार झा


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