नीक विषय-वस्तु जतेक बेर अहांक समक्ष अबैत अछि, ततेक बेर तृप्त करैत अछि. सुमन घोष निर्देशित बांग्ला फिल्म ‘कादम्बरी’ साहित्य, सृजन, संस्कृति, सम्बन्ध सहित जीवनक अनेकानेक पक्ष कें छूबैत अछि.
ई फिल्म रवीन्द्रनाथ ठाकुर आ हुनक भाउज कादम्बरी केर कथा देखबैत अछि. ई एकटा विवादित विषय रहल अछि मुदा जाहि सुंदरता संग प्रस्तुत कएल गेल अछि, से मोहि लेइत अछि.
फिल्म मे देखाओल गेल अछि जे कोना रवीन्द्रनाथ आ हुनक भाउज जे कि साहित्य केर नीक समझ रखैत छलीह, विद्यापतिक फैन रहैत छथि. ‘भरा बादर माह भादर’ गीत सेहो एहि फिल्म मे शामिल अछि जे कि विद्यापति केर लिखल गीत अछि. फिल्म मे गीतक पहिल पांति नै लेल गेल अछि (सखी हे! हमर दुःखक नहि ओर)…एहि कें ल’ सामान्य स्रोता कें एकरत्ती नयापन लगैछ. एतय ई गीत सुनल जा सकैत अछि-
कहल जाइछ जे रवि बाबू कें हुनक भाउजे छद्म नाम ‘भानुसिंह’ सुझओने छलीह. रवीन्द्रनाथ संग उगैत-डूमैत सूर्य देखैत साहित्य चर्चा केनिहारि भाउज कादम्बरी हुनका सिनेह सं भानु सेहो कहैत छलीह. भारती पत्रिका मे छपल हिनक आरंभिक पद्य सब मैथिली भाषा सं मिलैत काव्यभाषा ब्रजबुलि मे छल. एकर संग्रह ‘भानुसिंहेर पदावली’ नामे प्रकाश मे आएल छल.
कहबाक प्रयोजन नै जे विद्यापति सैकड़ो वर्षक बादो अपन रचना सं सम्पूर्ण साहित्यिक परिवेश कें आलोकित करैत रहल छथि. फिल्मक एक दृश्य मे जखन विद्यापतिक चर्च अबैत अछि, कादम्बरी ओ रवि बाबू केर पात्र मे क्रमशः कोंकणा आ परमब्रत अपन सब सं खनहन स्वरूप मे परदा पर देखल जाइत छथि. ई दृश्य फिल्मक प्रमुख दृश्य मे सं अछि.
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विद्यापति गीत: सखि हे! हमर दुखक नहि ओर
सखि हे!
हमर दुखक नहि ओर
ई भर बादर माह भादर
सून मन्दिर मोर
झम्पि घन गरजन्ति सन्तति
भुवन भरि बरखन्तिया
कन्त पाहन काम दारुन
सघन खर सर हन्तिया
कुलिस सत सत पात मुदित
मउर नाचत मातिया
मत्त दादुर डाक डाहुकि
फाटि जाएत छातिया
तिमिर भरि भरि घोर जामिनि
अथिर बीजुरिक पांतिया
विद्यापति कह कइसे गमाओब
हरि बिना एहो रातिया
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सखि हे! हमर दुखक नहि ओर - भावार्थ देखू
एहि पद केर माध्यम सं विद्यापति प्रेमी युगल कें भादव मासक बरखा सन रोमांचक समय मे अलग रहबाक जे एकटा बिरह-बेदना छै से उद्घाटित केलनि अछि. एतय प्रेमिका कहैछ जे एहि भादब मासक मेघाओन समय मे पहु (स्वामी) बिनु हमर भवन सुन्न लगैछ. ई मेघ रहि रहि क' जोर सं गरजि रहल अछि आ चारू कात कारी-घटाओन भेल अछि.
धरती बरखा सं भीजल अछि आ पहु हमर पहुनाइ क' रहल छथि. एहन समय मे जेना लगैछ जे कामदेव हमरा बेधने जा रहल अछि. मेघ गर्जन आ बज्रपातक स्वर सुनि मोन मयुर सन नाचि रहल अछि. बरखा मे मातल बेंग जे टर्र-टर्र करैत डाकनि द’ रहल अछि, जाहि सं लगैछ जे हमर छाती फाटि जाएत. चारूभर घटाटोप मेघ सं भीषण अन्हार पसरल जा रहल अछि आ बिजुरी चमकि उठैत अछि. एहन समय मे पहु (स्वामी) बिनु राति कोना काटब से विद्यापति चिंता व्यक्त करैत छथि.
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स्वर कोकिला शारदा सिन्हा केर गाओल - सखि हे! हमर दुखक नहि ओर