झिझिरकोना अशोक कुमार दत्तक पहिल कविता संग्रह थिक. एहि मे 38 गोट कविताक संग्रह अछि. ई कविता सभ कवि अपन युवावस्था मे लिखने रहथि, हं, किछु नव कविता सेहो छनि. अधिकांश कविता गेय, मंचीय ओ रोचक अछि. कविता सभ पुरान रहितो अप्रासंगिक नहि अछि.
नोकरीक मज़बूरी आ ताहि लए बौआइत मैथिल युवा, देखांउसक प्रवृत्ति आ उपटैत जड़ि, नेता ओ राजनीतिक ओछ चरित्र, मिथिलाक धनकटनी आ धानक पारंपरिक किस्म, अखबार, कओलेजक दुषित वातावरण, मैथिलानीक उत्तम संस्कार, भविष्यक प्रति विश्वास, कन्यादानक समस्या, दहेज़, गामक हाल, अगहनक भोर, रौदी, मिथिलाक गरिमा, बसन्त, आम, देशभक्ति, सांस्कृतिक क्षरण आदि कें छवि अपन कविताक विषय बनओने छथि. अपन परंपराक क्षरण ओ समाजक सांस्कृतिक अवमूल्यन सं कवि आहत छथि आ अपना कविताक माध्यमे तकरा प्रति लोक कें चेतबैत छथि.
‘मुनरुओ-ढोढा बनि गेल नेता/ ज्ञानी सभ भ' गेल निपत्ता/ प्रतिभा पर संख्या भेल भारी/ हारल ज्ञानीक मुंह भेल टारी’ (अन्तर-मन्तर) पंक्ति सब मे कविक देशक राजनीतिक व्यवस्था पर कएल चोटगर व्यंग्य बुझल जा सकैछ. कविक व्यंग्य पछिमाह. संस्कृतिक नक़ल, अधिक संतानक लिलसा, कवि सम्मेलनक घटैत स्तर आदि पर कविता सेहो चोटगर भेल अछि. निराशक लेल आशा, गुरु-चटिया संवाद, हेरायल शब्द सभक चर्चा आदि अन्य उल्लेखनीय गप्प थिक.
किछु बिम्ब मे पांच गोट अति छोट-छोट कविता तथा ‘किछु ज्यामितिक परिभाषा’ मे छः गोटे ज्यामितिक संरचनाक परिभाषाक प्रयोग कवि कएने छथि जे खूब सुन्नर उसरल अछि. जेना वृत्तक परिभाषाक एकटा अंश देखू —
‘वृत्त थिक गाछक बेल वा हाथक कंगना/ की ललका समतोल/ वा तोताक अंगना...
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कवि प्रचुर मात्रा मे लोकोक्ति, मोहाबराक संगहि नव-नव उपमा-उपमानक प्रयोग सेहो केने छथि.
जेना- ‘कच-कच हसुवा चलय/ जनु मायक ममता कचा रहल (धन-कटनी)
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गोटे-गोटे कविता मे अंग्रेजी शब्दक प्रचुरता (भने ओ व्यंग्य स्पष्ट करबाक लेल हो) कविता पढ़बाक बेर अखरैत अछि. किछु गीत पर रबीन्द्र जीक एतेक प्रभाव अछि जे ओ अतिशय सन लगैत अछि.
मैथिली मे बहुत रास लेखक कवि बुढ़ारी मे प्रकाश मे अएलाह अछि. अशोक जीक प्रस्तुत संग्रह सेहो तिरसठिक वयस मे आएल अछि. एहि उमेर मे हिनक उत्साहक स्वागत अछि. से एही दुआरे सेहो जे मैथिली मे मंचीय कविता अत्यल्प लिखल जायछ.
हिनकर अधिकांश कविता मंचीय, गेय ओ मनोरंजक छनि. हिनक भावना नीक समाजक निर्माणक प्रति समर्पित छनि. अस्तु, प्रस्तुत संग्रह अवश्य पढ़ल जाय सकैछ.
कविक स्वागत करैत हिनकर किछु पंक्ति —
सीताक संग अहाँ दुर्गे त' बनियौ
शास्त्रक संग अंहा शस्त्रो त' धरियौ
दुखक पहाड़ जओ आबि खसय
अयाचीक गेन्हारी साग खा जीबियौ
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पोथीः झिझिरकोना (2017)
पोथीः झिझिरकोना (2017)
विधाः कविता
कवि: अशोक कुमार दत्त
प्रकाशकः शेखर प्रकाशन
मोल: 100 टाका
समीक्षा: मिथिलेश कुमार झा
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