जन्मभूमि जननी !
पृथ्वी शिर मौर मुकुट
चन्दन संतरिणी
जन्मभूमि जननी।
वन-वन मे मृगशावक
नभ मे रवि-शशि दीपक
हिमगिरि सं सागर तक
विपुलायत धरणी
जन्मभूमि जननी।
दिक्-दिक् मे इंद्रजाल
नवरसमय आलवाल
पुष्पित अंचल रसाल
नन्दन वन सरणी
जन्मभूमि जननी।
शक्ति, ओज, प्राणमयी
देवी वरदानमयी
प्रतिपल कल्याणमयी
दिवा आओर रजनी
जन्मभूमि जननी।
प्रस्तुत कविता चन्द्रनाथ मिश्र 'अमर' केर संपादन मे साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित पोथी 'स्वातन्त्र्य-स्वर' सं आभार सहित लेल गेल अछि.
पृथ्वी शिर मौर मुकुट
चन्दन संतरिणी
जन्मभूमि जननी।
वन-वन मे मृगशावक
नभ मे रवि-शशि दीपक
हिमगिरि सं सागर तक
विपुलायत धरणी
जन्मभूमि जननी।
दिक्-दिक् मे इंद्रजाल
नवरसमय आलवाल
पुष्पित अंचल रसाल
नन्दन वन सरणी
जन्मभूमि जननी।
शक्ति, ओज, प्राणमयी
देवी वरदानमयी
प्रतिपल कल्याणमयी
दिवा आओर रजनी
जन्मभूमि जननी।
प्रस्तुत कविता चन्द्रनाथ मिश्र 'अमर' केर संपादन मे साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित पोथी 'स्वातन्त्र्य-स्वर' सं आभार सहित लेल गेल अछि.