खेला रहल छी
जीवनक प्रांगण मे
सुख आ दुखक
अन्हरिया-इजोरिया
मुदा
सुख क्षणिक थीक
जखन कि
दुख थीक संगी लंगोटिया
सोचै छी बैसि कतहु कोन मे
केहन अभागल
एखुनका जीवन मे
सुखक इजोरिया
आ
दुखक अन्हरिया मे
भागि रहलहुं अछि
दाओ पेंच लगा क'
मुदा
क्षणिक इजोरिया मे
कइए की सकैत छी
पकड़ि लैत अछि
अन्हरियाक दूत
आ फेर
उएह रामा उएह खटोला
चरितार्थ भ' जाइछ
हमरा लेल
पुनः अन्हरिया सं
पड़ाए चाहैत छी
मुदा घेरि लैत अछि
इजोरियाक असंख्य किरण
एहि क्रमे...आशामय! आभामय!!
प्रकृतिक आंचर मे
खेलि रहल छी
अन्हरिया-इजोरिया!
प्रसिद्ध साहित्यकार राम भरोस कापड़ि 'भ्रमर' केर पहिल कविता कलकत्ता सं प्रकाशित 'आखर' पत्रिका मे साल 1968 केर सितम्बर-अक्टूबर अंक मे छपल छल. ई जनतब हिनक कविता संग्रह 'युद्धभूमिक एसगर योद्धा' सं लेल गेल अछि.
जीवनक प्रांगण मे
सुख आ दुखक
अन्हरिया-इजोरिया
मुदा
सुख क्षणिक थीक
जखन कि
दुख थीक संगी लंगोटिया
सोचै छी बैसि कतहु कोन मे
केहन अभागल
एखुनका जीवन मे
सुखक इजोरिया
आ
दुखक अन्हरिया मे
भागि रहलहुं अछि
दाओ पेंच लगा क'
मुदा
क्षणिक इजोरिया मे
कइए की सकैत छी
पकड़ि लैत अछि
अन्हरियाक दूत
आ फेर
उएह रामा उएह खटोला
चरितार्थ भ' जाइछ
हमरा लेल
पुनः अन्हरिया सं
पड़ाए चाहैत छी
मुदा घेरि लैत अछि
इजोरियाक असंख्य किरण
एहि क्रमे...आशामय! आभामय!!
प्रकृतिक आंचर मे
खेलि रहल छी
अन्हरिया-इजोरिया!
प्रसिद्ध साहित्यकार राम भरोस कापड़ि 'भ्रमर' केर पहिल कविता कलकत्ता सं प्रकाशित 'आखर' पत्रिका मे साल 1968 केर सितम्बर-अक्टूबर अंक मे छपल छल. ई जनतब हिनक कविता संग्रह 'युद्धभूमिक एसगर योद्धा' सं लेल गेल अछि.