अनमोल झा केर लघुकथा 'समय'

ओहि मेडिकल कॉलेज आ अस्पतालक बगलक दबाइ दोकानमे बेस भीड़ भऽ गेल रहै. अस्पतालमे भर्ती रोगीक गारजियन सभक अपन बीमार परिजनसँ भेँट करबाक समय रहलाक कारणेँ दबाइ दोकानमे भीड़ होयब स्वभाविके छल. किएक त' जाबत, गारजियन अपन रोगीकेँ देखय आबय, ताहिसँ पहिने डॉक्टर जरूरी दबाइक पूर्जी रोगीकेँ थमहा देने रहै आ गारजियन सभ अबिते ओ पुर्जा लऽ दौड़य दबाइ दोकान दिस.

एहीक्रममे एक गोटे दबाइक बड़का पोलिथिन लेने एलै आ दोकनदारकेँ कहलकै-हमरा ई दबाइ सभ नहि लागत से आपस कऽ लिअ'. ओकर बाजबसँ बुझाइत छलैक जेना ओ बड़ धड़फरायल छल. दोकनदार ओकर दबाइ फिरा, कम्पूटरसँ बिल मिलाकेँ, जे पाइ भेलै से आपस कऽ देलकै आ ओ चल गेल.

कनिये कालमे एक गोटे आओर एलै...हमरा पेसेन्टक बेडपर सँ कियो दबाइक पोलिथिन चोरा लेलक, जाहिमे दबाइक संग-संग अहाँ दोकानसँ लऽ गेलहा कैशमेमो सेहो छैक, से यदि कियो ओहि दबाइकेँ आपस करय आबय तऽ हमरा फोन कऽ देब. दोकनदार कहलकै - ई दबाइ सभ आपस कऽ, पाइ लऽकऽ एकगोटे थोड़ेकाल पहिने चल गेल, आब हम किछु नहि कऽ सकैत छी.

ई सभटा घटनाक्रम देखि उपस्थित ग्राहक सभ सोचमे पड़ि गेल जे केहन समए आबि गेलैए जे लोक आब दबाइयो चोरबऽ लागल अछि. सभ अवाक आ स्तब्ध छल तखन.
  

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