की कहलियै...? उद्घोषक...ठीक छै, ठीक छै...हमरा से अनुभव अछि. फलां बाबूक बेटाक मुंडन मे चार पर चढ़ि क' तेना ने उद्घोष केलियै जे एक्के बेर मे भरि गाम बिजहो भ' गेलै.
उद्घोषक नै...गायक..?...कोनो बात ने...हम एही बेर फलां बाबूक बेटाक कोजागरा मे तेना ने गीत गेलियै जे नओतल गामक लोक मखाने ल' विदा भ' जाइ गेलै...खेबो नै केलकै...गीते सं मोन भरि गेलै.
की...? तबालची...? नै नै कोनो बात नै...हमरा तबलोक दरकार नै, मुहें सं पुचुक-पुचुक क' क' हम आवाज निकालि लैत छी आ डेस्क पर तेना ने बजबैत छियै जे केहनो तबालची फेल.
की लेखक...? हमरा लिखय अबैए ने...दहिना-बामा दुनू हाथे हम लिखैत छी. जाही हाथ मे कलम रहल, ओही हाथे लिखैत गेलहुं....ही, ही, ही...!
की कवि...पुजेगरी...भनसिया...अच्छा, एत्तहि रुकू भूख लागि गेल, कने खा-पी क' अबै छी!
— रूपेश त्योंथ