अजीत झा केर 3 गोट मैथिली कविता


दड़िभंगा जिलाक बड़की तरौनी गामक निवासी ओ आबू धाबी प्रवासी अजीत झा आइटी सेक्टर मे सेवारत छथि. लेखन ओ पठन-पाठन मे बेस रुचि छनि. हिंदी मे हिनक कविता संग्रह 'मेरा गांव मेरे खेत' प्रकाशित छनि. दोसर कविता संग्रह प्रकाशनाधीन छनि. हिनक कविता सभ अकनगर बुझना जा रहल अछि. यात्री-नागार्जुन संग गाम मे बिताओल क्षण कें संजोगने अजीत मैथिली लेखन दिस प्रवृत्त भेलाह अछि जे आह्लादकारी अछि.  – संपादक

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(1)

अन्हरिया राति

सांप-छुछुंदर, बांस आ बाती
डोका नुकाइ छल, कोनो चोरक भांति
पहिरने छल गांती, ओकर माथ पर आंटी
रस्ता देखल छल, कोनो पैघक भांति

मुरही आ लाइ, पड़ल छल बाटी
अपने रुसल छल, पिटै छल छाती
माय चिकरलै, पकड़ि कें बाटी
खेमए जनपिट्टा, की द' अबियौ टाटी

कुइद-कुइद कहै छल, गाँव हमर रांटी 
बुरहबा कें ओ, लगै छल नाती
नंगटे घूमै छल, लेपने छल नेटा
ओकरा कहै छल सब, बदरियाक बेटा

आब, ताड़ी पिबइए, घुल्टल रहइए
नशाक जोड़ पर, गीतो गबइए
याद अबइए हमरा, कर्रा कें माटि
ओहि मे खेलाइत, हम आ बुरहबा कें नाति

आब सोचै छी त' मोन पड़इए
छोटका कें सुख सं जे बड़का जरइए
कनी देर बुझलियै, जनउ आ जाति
गामक जीवन आ अन्हरिया राति

(2)

करेज डाहइत माय 

औरह मारइत मिथिला
करेज डाहइत माय

हम अपन आंखि कें
नोर सं सजेलहुं
छातीक खून कें
दूध बनेलहुं
दिन-दिन आओर
हमर बौआ बरहैए
औरह मारइत मिथिला
करेज डाहइत माय

हमर जीवन नइ अछि
बौआ सं बढि कें
ई छौरा आएत
लंदन-फ्रांस सं पढि कें
पढए लेल कहियै त'
रुसि-रुसि पड़ाय
औरह मारइत मिथिला
करेज डाहइत माय

डिग्री जे लेलक
सौंसे डिग-डिगिया बजेलक
छाती फुलेलक
हमर इज्ज़त बरहेलक
नौकरीक नाम पर
आब, बॉम्बे- दिल्लीये ओगरैए
औरह मारइत मिथिला
करेज डाहइत माय

बच्चे से पोसलहुं
बुरहारी कें लाठी
कन्हा पर ल' जाएत
चढ़ाएत हमरा काठी
आब के' देखत हमर
नीक आ बेजाए
औरह मारइत मिथिला
करेज डाहइत माय

समय-बेगरता पर
संगे ओ रहितय
कतौ सं आबि कें
माय जे कहितय
चलू, ओकरे खुशी सं
हमर मौन जुराइए
औरह मारइत मिथिला
करेज डाहइत माय

नोरक ई खिस्सा
घरही भेटइए
विकासक कथा सब
फुइसे छटइए
देखियौ आ बुझियौ
विकासक सजाय
औरह मारइत मिथिला
करेज डाहइत माय

(3)

हे यौ ताल केलहुं, अहूं त'

बियाहक नाम सुनि
दौड़ गेलहुं
नान्हिटा गप्प पर
बौड़ गेलहुं
बियाह केलहुं त', सहू त'
हे यौ ताल केलहुं, अहूं त'

नाके तामस
टांगल छनि,
जीह त' हुनकर
दागल छनि,
हाथ धेलहुं त', बहू त',
हे यौ ताल केलहुं, अहूं त'

आब नइ खिसियाएब
कहै छी,
झूठेक घी किए
महै छी
अखनो नइ मानबै, कहू त'
हे यौ ताल केलहुं, अहूं त'


– अजीत झा 
ajit.jha31@gmail.com
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