शीर्षक पढि कने उटपटांग लागल होयत. मोने सोचैत होयब जे लगभग पांच कोटि लोकक ठोर पर जाहि अमिट, अतिपावन भाषाक राज अछि, जे भाषा भारतक संगहि नेपाल मे सेहो विशेष प्रतिष्ठित अछि, जे भाषा अपन विशाल आ अमूल्य साहित्यनिधिक बल पर भारतीय संविधानक आठम अनुसूची मे विराजमान अछि, जे भाषा जनकसुता जानकीक कंठ-स्वर सं निकलल अछि, ताहि भाषा पर कोन संकट आबि गेल?
वा फेर सोचैत होयब जे हम बताह त' नहि भ' गेलहुं अछि? नाना प्रकारक सोच दिमागी समुद्र मे हिलकोर मारैत होयत. जं से सत्ते, त' अपन सोच कें कने स्थिर करी. असल मे ई प्रश्न आइ-काल्हि पद्मश्री उदित नारायण (झा) क' रहल छथि, सेहो पूरा तामझामक संग.
मायक भाषा संग मोह जिनगी भरि बनल रहैत छैक. चाहे कतेको स्वार्थंधता वा दंभता केर गर्दा मोन-मस्तिष्क मे हो मुदा जखन भावनाक प्रबल प्रवाह होइत छैक त' लोक कें मोन पड़ैत छैक माय, मातृभाषा आ मातृभूमि. ओ प्रत्येक वस्तु जाहि मे मातृअंश हो, एक-एक क' मोन पड़य लगैत छैक.
मैथिली मे गायन शुरू क' आइ सफलताक उच्चतम शिखर पर पहुंचल उदित नारायण कें कोनो एक भाषाक गायक नहि कहल जा सकैत अछि. भारतक अनेको भाषा मे ओ एक संग गबैत आबि रहल छथि.
कोनो सफल व्यक्तिक संग विवाद ओहिना लागल रहैत छैक जेना नवकनियाक संग लोकनिया. उदित नारायण सेहो एकर अपवाद नहि छथि. खैर जे हो, ओ सच्चा मैथिल छथि आ मैथिलीक प्रेमी छथि. पद्मश्री हेतु चयनित होयबा काल हुनक नागरिकता हेतु विवाद उठल छल. कतेको लोकनिक कहब छलनि जे ओ नेपालक छथि. मुदा जे हो, ओ मैथिल छथि चाहे नेपालक मिथिलाक होथि वा भारतक मिथिलाक. ओना सभ विवाद कें एकात करैत भारत सरकार हुनका पद्मश्री सं सम्मानित कयलक. मिथिलाक लेल इहो गौरवक बात.
आब अहाँ सोचैत होयब जे हम 'उदितायण' केर पाठ किएक क' रहल छी? असल मे, पुरहित कोनो आध्यात्मिक अनुष्ठान शुरू करयबा सं पहिने संकल्प करा लैत छैक, त' एखन धरि हम सैह क' रहल छलहुं. मुद्दाक बात आब.
वा फेर सोचैत होयब जे हम बताह त' नहि भ' गेलहुं अछि? नाना प्रकारक सोच दिमागी समुद्र मे हिलकोर मारैत होयत. जं से सत्ते, त' अपन सोच कें कने स्थिर करी. असल मे ई प्रश्न आइ-काल्हि पद्मश्री उदित नारायण (झा) क' रहल छथि, सेहो पूरा तामझामक संग.
मायक भाषा संग मोह जिनगी भरि बनल रहैत छैक. चाहे कतेको स्वार्थंधता वा दंभता केर गर्दा मोन-मस्तिष्क मे हो मुदा जखन भावनाक प्रबल प्रवाह होइत छैक त' लोक कें मोन पड़ैत छैक माय, मातृभाषा आ मातृभूमि. ओ प्रत्येक वस्तु जाहि मे मातृअंश हो, एक-एक क' मोन पड़य लगैत छैक.
मैथिली मे गायन शुरू क' आइ सफलताक उच्चतम शिखर पर पहुंचल उदित नारायण कें कोनो एक भाषाक गायक नहि कहल जा सकैत अछि. भारतक अनेको भाषा मे ओ एक संग गबैत आबि रहल छथि.
कोनो सफल व्यक्तिक संग विवाद ओहिना लागल रहैत छैक जेना नवकनियाक संग लोकनिया. उदित नारायण सेहो एकर अपवाद नहि छथि. खैर जे हो, ओ सच्चा मैथिल छथि आ मैथिलीक प्रेमी छथि. पद्मश्री हेतु चयनित होयबा काल हुनक नागरिकता हेतु विवाद उठल छल. कतेको लोकनिक कहब छलनि जे ओ नेपालक छथि. मुदा जे हो, ओ मैथिल छथि चाहे नेपालक मिथिलाक होथि वा भारतक मिथिलाक. ओना सभ विवाद कें एकात करैत भारत सरकार हुनका पद्मश्री सं सम्मानित कयलक. मिथिलाक लेल इहो गौरवक बात.
आब अहाँ सोचैत होयब जे हम 'उदितायण' केर पाठ किएक क' रहल छी? असल मे, पुरहित कोनो आध्यात्मिक अनुष्ठान शुरू करयबा सं पहिने संकल्प करा लैत छैक, त' एखन धरि हम सैह क' रहल छलहुं. मुद्दाक बात आब.
पड़ोसियाक घर मे हुलकी देबाक बेमारी सं के' ग्रसित नहि अछि? से भोजपुरी टीवी चैनेल मे हुलकी-बुलकी देइत रहैत छी. कतहु , कखनो मैथिली सुनबा-देखबा लेल भेटि गेल त' नयन तिरपित भ' गेल. से साल भरि सं बेसिए समय सं भोजपुरी टीवी चैनेल महुआ लोकक मनोरंजन क' रहल अछि. एही पर एकटा संगीत आधारित कार्यक्रम आबि रहल छल- सुर-संग्राम. लोकगीतक श्रोता लेल बहुत नीक कार्यक्रम छल ओ. एहि रियलिटी शो मे मैथिली भाषी प्रतिभागी सभ सेहो छलाह. जेना पूजा झा (दरभंगा), रिमझिम पाठक (धनबाद), आलोक कुमार (खगड़िया). आलोक कुमार, मोहन राठौर (यूपी)क संगहि विजेता रहलाह. एहि शो मे तीन बेर उदित नारायण अतिथि जज बनि क' आयल छलाह.
पहिल बेर जे जज बनि क' अयलाह त' प्रतियोगी प्रियंका सिंह (गोपालगंज) केर माय, जे ओहि दिन स्टूडियो मे उपस्थित रहथि, सं पूछि देलथिन जे मैथिली-उथली बजै छी की? असल मे हुनका ज्ञात नहि रहनि जे प्रियंका सिंह गोपालगंज सं छथि. उदित नारायण कें प्रियंकाक मायक पहिरावा देखि मिथिलानी होयबाक भ्रम भेल रहनि.
दोसर बेर मे ओ प्रतियोगी रिमझिम पाठकक उपनाम 'पाठक' देखि पूछि देलथिन- अहाँ मैथिली बजै छी की? रिमझिम लजाइत बजलीह- हं, थोड-बहुत. तकर बाद उदित नारायण हुनक गायिकी पर मैथिली मे कमेन्ट देलनि. एहि बात सं ई सिद्ध भेल जे हुनका ह्रदय मे मैथिलीक प्रति प्रगाढ़ प्रेम छनि. कारण, भोजपुरीक टीवी चैनेल पर मैथिली बजबाक हुनक छटपटाहटि सहजे देखल गेल. मुदा मैथिली के प्रोमोट करबाक लेल की कयलनि, आ की क' रहलाह अछि, से बेसी महत्वपूर्ण.
सक्षमे दिस संसार अपेक्षाक दृष्टि सं तकैत छैक. मैथिलीक अउनाहटि एही सं पता लगाओल जा सकैत अछि जे मैथिली अपना संसार मे जतेक हाथ-पयर मारबा मे सक्षम अछि, मारिये रहल अछि संगहि आन-आन भाषा-क्षेत्रक प्रिंट-इलेक्ट्रोनिक मीडिया मे सेहो घुसपैठ क' रहल अछि. जेना हिन्दी चैनेलक धारावाहिक सभ मे मैथिली गीत ओ संवाद सुनबा-देखबा मे आबि जाइत अछि त' भोजपुरी चैनेल महुआ पर त' कतेको चिन्हार मैथिली कलाकार रोजगाररत छथि त' एही चैनेल पर कहियो-काल मैथिली गीत-सिनेमा देखबा लेल सेहो भेटि जाइत अछि.
आब प्रश्न उठैत अछि जे आख़िर कहिया धरि घुसपैठे स' काज चलबैत रहब? समाचार पत्र, टीवी चैनल, सिनेमाक क्षेत्र मे ठोस काजक नितांत आवश्यकता अछि. कारण एहि सं भाषाक प्रसार व्यापक रूपे होइत छैक. मैथिली घेंट उठौलक अछि. कोलकाता सं मैथिली दैनिक पत्र (मिथिला समाद) आ दिल्ली सं टीवी चैनेल (सौभाग्य मिथिला) शुरू भेल अछि. एहि दुनूक आगां अपन प्रसार व्यापक करबाक चुनौती छैक. मिथिला क्षेत्रक लोक माछ खा शरीरे बलिष्ट आ दिमागे तेज होइत अछि त' पान खा स्वरक प्रखरता सेहो बनल रहैत छैक. संगहि एहि क्षेत्रक लोक मे मखान सं सादगी सेहो देखबा मे अबैछ.
मैथिलीक चर्चा अबिते विद्यापतिक छवि दृष्टि पटल पर नाचय लगैछ. विद्यापति मैथिलीक प्राण छथि, ताहि मे कोनो दू मति नहि. मुदा हमरा लोकनि कहिया धरि विद्यापतिये सं काज चलबैत रहब? हमरा लोकनि के गोसाओनिक घर सं निकलि बाहरोक बसात लगयबाक चाही. आधुनिक युगक मांगक अनुरूप अनुकूलित होयब आवश्यक.
आब प्रश्न उठैत अछि जे आख़िर कहिया धरि घुसपैठे स' काज चलबैत रहब? समाचार पत्र, टीवी चैनल, सिनेमाक क्षेत्र मे ठोस काजक नितांत आवश्यकता अछि. कारण एहि सं भाषाक प्रसार व्यापक रूपे होइत छैक. मैथिली घेंट उठौलक अछि. कोलकाता सं मैथिली दैनिक पत्र (मिथिला समाद) आ दिल्ली सं टीवी चैनेल (सौभाग्य मिथिला) शुरू भेल अछि. एहि दुनूक आगां अपन प्रसार व्यापक करबाक चुनौती छैक. मिथिला क्षेत्रक लोक माछ खा शरीरे बलिष्ट आ दिमागे तेज होइत अछि त' पान खा स्वरक प्रखरता सेहो बनल रहैत छैक. संगहि एहि क्षेत्रक लोक मे मखान सं सादगी सेहो देखबा मे अबैछ.
मैथिलीक चर्चा अबिते विद्यापतिक छवि दृष्टि पटल पर नाचय लगैछ. विद्यापति मैथिलीक प्राण छथि, ताहि मे कोनो दू मति नहि. मुदा हमरा लोकनि कहिया धरि विद्यापतिये सं काज चलबैत रहब? हमरा लोकनि के गोसाओनिक घर सं निकलि बाहरोक बसात लगयबाक चाही. आधुनिक युगक मांगक अनुरूप अनुकूलित होयब आवश्यक.
एकैसम शताब्दी मे मिथिलाक कराह-स्वर दरभंगा होइत सोझे दिल्ली पहुँचि रहल अछि त' मैथिलीक छटपटाहटि सहजहि अनुभव कयल जा सकैत अछि. आशा अछि मैथिल एहि बात के बुझैत अपन माय, मातृभूमि आ मातृभाषाक मान बढ़यबाक प्रबल प्रयत्न करताह.
हमरा लोकनि कें संयुक्त प्रयास सं एहन मिथिलाक सृजन करबाक अछि, जकर गमक सं वातावरण गमगमा जाय, जकरा देखने नयन तिरपित भ' जाय आ जकरा सुनने कर्णपटल धन्य भ' जाय. हमरा लोकनि कें एहन बसात बहयबाक अछि, जकर अनुभव मात्र सं ओकर पहिचान कयल जा सकय. हमरा लोकनि कें एहन परिवर्तन अनबाक अछि जाहि सं कम सं कम मैथिल मैथिल कें चिन्हबा मे धोखा नहि खा सकथि. हमरा एहन मिथिला बनेबाक अछि जाहि सं कोनो उदित नारायण के ई नहि पूछय पड़नि जे 'अहाँ मैथिली बजै छी की ?'
— रूपेश त्योंथ
(साल 2009 मे मैथिली दैनिक 'मिथिला समाद' लेल लिखल आलेख)
#पेटारमेसं