तीत वस्तु कें मधुर चासनी मे बोरि प्रस्तुत करबाक विधि भेल व्यंग्य. जेना नेना कें आदक रस पियेबाक हेतु ओहि मे मधु मिलाओल जाइछ तहिना राज-समाजक कटु सत्य कें, ताहि मे सुधारक अपेक्षा सं, रुचिगर रूपें कहबाक विधा थिक व्यंग्य. ई गद्य किंवा पद्य कोनो तरहें भ सकैत अछि. व्यंग्य पढ़ैत काल मन मे भले गुदगुदी लागओ, धरि पढ़ि गेलाक बाद मस्तिष्क पर चोट सन अनुभव होइछ. एकरा माध्यमे मनुष्यक विचार, व्यवहार ओ व्यवस्थाक विभिन्न विडंबना कें सुधारबाक ओ जड़ता कें तोड़बाक चेष्टा कएल जाइछ.
मैथिल स्वभावे सं विनोदी होइत छथि. हंसी-ठट्ठाक नान्हि सं नान्हि अवसर ओ गमाबए नहि चाहैत छथि. एहि लेल परंपरागत रूपें सेहो कइएक अवसर ओ संबंधक विधान भेल अछि. से, एहन परिवेश नहि रहने गोनू झा नहि भ’ सकैत छलाह. एखनो हज्जारो गोनू झा विभिन्न भेष मे गामे-गाम भेटि जएताह. आ से हास्य-विनोदक क्रम मे व्यंग्य सेहो भेटैत रहत. खास क’ मैथिल समाज मे सोझ उक्तिक संगहि वक्रोक्तिक खूब प्रयोग होइछ आ अधिकांश वक्रोक्ति मे व्यंग्य निहित रहैछ.
मुदा, जखन व्यंग्य रचनाक बात होइत अछि त’ से एतेक सोझ-सरल नहि अछि, अपितु आन कइएकटा विधा सं बेसी कठिनाह अछि. आ ताहू पर व्यंग्य यदि ककरो रोजीना लिखय पड़इ तखन त’ आर बेसी झंझटियाह. से, एहने कठिन आ झंझटियाह काज करब गछलनि रूपेश त्योंथ.
जखन मैथिली दैनिक मिथिला समाद मे काज करैत रहथि त’ पत्रक हेतु नियमित व्यंग्य लिखबाक भार उठओलनि आ तकरा कुशलतापूर्वक निमाहलनि. ई नवकृष्ण एहिकक छद्म नामे व्यंग्य स्तंभ खुरचनभाइक कछमच्छी नियमित भ’ लिखैत रहलाह.
मैथिली मे व्यंग्य ओहुना बड्ड कम लिखल जाइत अछि. आ सेहो दैनिक रूपें व्यंग्य लेखन त’ गनले-गूथल भेल अछि. हमरा प्रसन्नता अछि जे रूपेशजी 'मिथिला समाद' मे छपल अपन व्यंग्य सभ मे सं पचास गोट बीछल व्यंग्यक एकटा संग्रह खुरचनभाइक कछमच्छी (स्तंभहिक नामे) शीर्षक सं प्रकाशित करबओलनिहें. मैथिली व्यंग्य साहित्य हेतु ई बड्ड सुखद बात थीक.
एहि संग्रह मे खुरचनभाइ मुख्य पात्र छथि. आ अपन समाज, राष्ट्र सं ल’ परदेश धरिक विभिन्न घटना, व्यवहार आ विचारक विडंबना पर कछमछाइत छथि तथा नहि रहि होइ छनि त’ चोटगर प्रतिक्रिया देइत छथि. एहि मे हुनक सहायक पात्रगण मे लेखकक अतिरिक्त सुटकुन, सुगना, बिल्टू, बिन्देसरा, फसादी, सुट्टा, गुलटन आदि प्रमुख अछि. खुरचनभाइक संगहि आन पात्रक नाम सभ मिथिलाक बेस प्रचलित पारंपरिक नाम सभ अछि आ ई नामहि सं व्यंग्य-विनोदक अटगर लगैत अछि. खुरचनभाइक चिंतन आ ताहि पर व्यंग्य मे मैथिलक कुटचालि, हड़ताल, दहेज, भ्रष्टाचार, ईष्या, ओछ राजनीति, महगी, पड़ोसी देशक चालि-प्रकृति, अंतरराष्ट्रीय घटना आदि विभिन्न तरहक बिंदु सभ अछि जे सामान्य पाठक कें आकषित करैत अछि. एहि मे विभिन्न नेता पर फेकल जाएबला चप्पल-जूताक चर्चा सेहो अछि, त’ गामघर मे हांसू-खुरपी-लोटा आदि आवश्यक वस्तु मांगि क’ ल’ जाएब आ तकरा हेरा देबाक प्रवृत्ति पर व्यंग्य सेहो अछि.
व्यंग्य रचनाक शीर्षक सेहो खास महत्व रखैत अछि. प्रस्तुत संग्रहक किछु शीर्षक देखू जे कतेक प्रासंगिक अछि, जेना-चुप्प सुटकुनमा, टेबुल-कुर्सी सब पास, शोकतंत्र मे, नेताजीक नेत, उन्नत भेल अछि घेंट, पद्मश्री वा पैसाश्री, जूता न्यायक बेर, जेबी मे जोगार, मंगला मंगलक की, हुहुआइत जमाना, नमरा देलक नमरी, भगवान देलनि खौंसी इत्यादि.
एहि संग्रह मे ठेठ आ बातचीतक शब्दावलीक नीक प्रयोग भेल अछि. मैथिलीक वाक्य विन्यास, लोकोक्ति आ मोहाबराक प्रयोग चिक्कन अछि. मुदा सभ सं महत्वपूर्ण अछि गंभीर बात कें चौल बना कहि देब आ ताहि मादें पाठक कें सोचबा पर बाध्य करब. संगहि दैनिक जीवनक छोट-छोट विडंबना कें व्यंग्यक माध्यमे उजागर करब. लोकोक्तिक किछु उदाहरण देखू – दियाद आ दालि जते गलय तते नीक, कुकुरक नांगरि कतहु सोझ भेलैक अछि. अन्हराक जगने की...आदि.
मैथिलीक अप्पन वाक्य विन्यास ओ छटा बेस उजियाएल अछि. एकरो किछु उदाहरण देखू – तमसायल भेल घुरैत रहैत छी, टीक नब्बे डिग्रीक कोण बनबैत ठाढ़ भ’ जाइत छलनि, अहूं कें लगैत अछि जेना जीबिते भरि कष्ट अछि, जूता पहिरलनि से त’ नीके मुदा लुंगी-गंजी पहिरने भाइक पएर मे जूता कोनादन लगैत छल, हमर करेज पिसिया मसीन जकां धक-धक करय लागल, इत्यादि.
एहि व्यंग्य संग्रहक मादें कहि सकैत छी जे मैथिली व्यंग्यक ई एकटा उपलब्धि थीक. एकर भाषा, शिल्प, शब्द, वाक्य-विन्यास, कथाक परिवेश, कथोपकथनक शैली आदि दृष्टिएं ई मिथिला समाजक लग मे अछि त’ विषयक दृष्टिएं एहि मे विविधता छै. दरबज्जा, टोल, गाम, समाज, प्रदेश सं होइत राष्ट्र आ विश्वक चिंतन एहि मे छै. मैथिलक उकठपना छै, गप्प मारबाक प्रवृत्ति छै, बाट छेकबाक प्रकृति छै आ एहि सभटापर व्यंग्य क’ ताहि सं उप्पर उठबाक लक्ष्य छै. समस्त रचना शीर्षक सं अंत धरि संपूर्ण अर्थ मे व्यंग्य अछि. एकर अवरण रेखाचित्र संतोष मिश्रक बनाओल छनि जे एहि संग्रहक हेतु बेस आकर्षक आ उपयुक्त अछि.
एहि समस्त सुखद विशेषताक संग एकटा प्रमुख कमी अछि जे समस्त व्यंग्य रचना धरगर नहि बनि सकल अछि. ओना, ई कमी दैनिक स्तंभ लेखन मे स्वाभाविक थिक, से बात फराक. ताहि संगे बहुत रास पाठक कें एहि मे प्रयुक्त किछु शब्दक वर्तनी पर आपत्ति भ’ सकैत छनि, से मुदा व्यंग्य-प्रवाह कें अबाधित रखबाक हेतु भेल अछि. वाक्य सभ नमहर बनि गेल अछि आ पाराग्राफ सेहो बहुत कम देल अछि, एहि दिस धियान देल जा सकैत छलैक. एहि संग्रहक हेतु रचनाकार कें अशेष शुभकामना देइत छिअनि.
पोथीः खुरचनभाइक कछमच्छी
विधाः व्यंग्य
लेखकः नवकृष्ण ऐहिक
प्रकाशकः मैलोरंग, दिल्ली (2015)
कुलपृष्ठः 144
दामः 120 टाका
समीक्षा: मिथिलेश कुमार झा