मेघाच्छादित अगरतलाक अकास |
विक्टर आ कृष्णमोहन कविता सुनैत-सुनैत बेस राति भऽ गेल छल. मुदा, सुनबा-सुनयबाक अतृप्ति दुहू-दिस बनले छल. विक्टरक कविता बेस परिपक्व। कम लिखैत छथि. मुदा जे लिखैत छथि से समधानल, किछु तेहने आभास भेल. हुनकर एक गोट कविता 'मुखा' (मुखौटा)क भाव एखनो आँखिक सोझाँ नचैए. कृष्णमोहन धुरझार लिखैत छथि. सभ तरहक लिखैत छथि. हुनकर दू-गोट कविता बड़ प्रभावी लागल. खासक' हुनक ओ कविता जाहि मे क्षेत्रीय अराजकता ओ अशांति सँ कनछी कटैत स्थानीय निवासी आस-पासक इलाका मे विस्थापित तँ होइए मुदा, सभतरि एकहि रंगताल पबैए आ थाकिकऽ सहसा बाजि उठैए-आब कतय जाउ? सामाजिक-राजनीतिक कैनवास पर सँ जखन 'व्यक्ति'क चित्र धोखड़ि जाइत छैक तँ प्रायः इएह परिस्थिति उपजैत छथि सभतरि.
सामान्यतः आठ बजे सँ पहिने हम नहि जगैत छी, मुदा ओहि दिन अबेर सँ सूतलाक बादहुँ छओ बजे आँखि फूजि गेल छल. अपरिचित ओछाओन कि अगरतलाक नैसर्गिक सौन्दर्य केँ भरि पोख निहारबाक उत्कंठा, कारण की छल से जानि नहि. ओछाओन सँ उठि खिड़की लग ठाढ़ भऽ गेलहुँ. अनुपम दृश्य! शहर निपत्ता छल. चारू कात मात्र हरियरी. अर्थशास्त्रक पन्ना मे भनहि एहि क्षेत्रक स्थान सभ सँ पछड़ल होइ मुदा, जीवनक लेल एतुका वातावरण मे अजस्र ऑक्सीजन सहज-सुलभ छैक. थोड़बे काल मे शांत-स्निग्ध भोर केँ मेघ सेहो अपन स्नेह सँ सराबोर करय लागल. हमर मोन जेना मोनेमोन चहकय लागल. होटल सँ बाहर आबि बरखाक आनन्द लेबय लगलहुँ…
नओ बाजि गेल रहैक. शहर सँ हमर परिचिति आब लगभग सत्रह घंटा पुरान भऽ चुकल छल. एहि बीच तीनटा साहित्यकार सेहो मित्र बनि चुकल छलाह. तहिना सभ प्रतिभागी लोकनि छोट-छोट मित्र-मण्डली तैयार कऽ चुकल छलाह. मुदा, वातावरण सँ एखनो औपचारिकताक धुन्ध छँटल नहि छलैक. अपरिचित लोकनि, परिचितिक लोभ मे दहोदिस मुसकी बिलहि रहल छलाह. छोट-छोट टोली ब्रेकफास्ट टेबुल पर बैसल छल. प्रायः सभ किओ एक-दोसराक भीतर झँकबाक-अँकबाक प्रयासरत छल.
बामसँ साहित्य अकादेमीक सचिव, के. श्रीनिवास राव, हम, असमिया साहित्यकार नागेन साइकिया आ बंगला साहित्यकार एवं त्रिपुराक पूर्वमंत्री ब्रजगोपाल राय. |
एकाएक डाइनिंग हॉल मे उज्जर धोती-कु्र्ता पहिरने एकटा बुजुर्गक प्रवेश भेल आ हुनका देखितहिँ प्रायः पूर्वोत्तरक समस्त उपस्थित साहित्यकार हुनकर सम्मान मे ठाढ़ भऽ गेल छल. हमरा एतबा स्पष्ट छल जे किओ असाधारण व्यक्तित्व छथि. मुदा, हुनकर परिचय पयबाक जिज्ञासा भीतर मे हिलकोर मारय लागल. चारुकात अपन सौम्य मुसकी फेरैत, बुजुर्ग एकटा नमहर टेबुलपर बैसलाह. चारूकात पूर्वोत्तरक नवतूर छल. दृश्य अनमन ओहिना छल जेना कोनो भोजनक टेबुलपर एकटा सम्पूर्ण संभ्रान्त परिवार बैसल हो. ब्रेड-बटर संग चाह पीबि, बुजुर्ग अपन ब्रेकफास्ट समाप्त कयलनि. एही बीच आसपासक नवतुरियाक कतिपय जिज्ञासा केँ सेहो गंभीरतापूर्वक शांत कयलनि. मृदु मुसकान मुदा हुनकर मुँहक स्थायी भंगिमा छल. हुनका ओतय सँ विदा होइतहिँ हम सहटि कऽ विक्टर लग गेलहुँ, बुजुर्गक परिचिति पाबय.
-ई छथि प्रसिद्ध असमिया साहित्यकार डॉ.नगेन साइकिया.
विक्टरक स्वर मे गौरवानुभूति स्पष्टतः आभासित भेल. हम आगाँ किछु पुछियनि ताहि सँ पहिनहि विक्टर स्वतः हुनका संबंध मे जे मारिते रास गप जनौलनि ताहि मे किछु महत्वपूर्ण इएह जे सतहत्तर वर्षीय डॉ. साइकिया असमिया साहित्यक एकटा अत्यंत प्रतिष्ठत हस्ताक्षर छथि. शताधिक पोथी लिखने छथि. साहित्य अकादेमी समेत अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार सँ पुरस्कृत छथि. नब्बेक दशक मे राज्यसभाक सदस्य सेहो रहि चुकल छथि. पश्चात् उद्घाटन सत्र मे हिनक विद्वताक साक्षात् दर्शन सेहो भेल, अध्यक्षीय भाषण सुनैत काल. डॉ. नागेन साइकिया केँ सुनब हमरा लेल अत्यंत प्रेरणादायक छल.
साइकिया साहेब केँ देखि हमर दृष्टि मैथिलीक साहित्यांगन मे हुनकहि सन सरल-मृदुभाषी, नवतुरियाक पक्षधर, नवताक संपोषक, सुहृद, प्रबुद्ध ओ प्रतिष्ठित साहित्यकार केँ तकबा मे बाझि गेल छल. भक टूटल जखन शालू कौर टोकलीह. आब हम दुनू गोटे अगरतला आ आसपासक पर्यटनस्थल सभक भ्रमणक योजना बनबय मे बाझि गेल छलहुँ… (क्रमशः)
— चंदनकुमार झा