बाम भाग सँ बंगाली कवि प्रशान्त सरकार, असमिया कवि विक्टर राजकुमार आ मणिपुरी कवि ख.कृष्णमोहन सिंहक बीच मे हम. |
विगत 28-29 मइ केँ अगरतला मे 'अखिल भारतीय युवा लेखक महोत्सव'क आयोजन भेल. आयोजक छल, साहित्य अकादेमी. एहि महोत्सव मे चौबीसो मान्यता प्राप्त भाषाक अलावे तीन गोट पूर्वोत्तर भारतक जनजातीय भाषा-कोकबोरॉक, चकमा आ मोग केँ सेहो प्रतिनिधित्व छल. सौभाग्यवश एहि खेप मैथिलीक प्रतिनिधित्व करबाक अवसर हमरहि भेटल.
विभिन्न भाषा-साहित्यक प्रतिनिधि समानधर्मा लोकनि सँ साक्षात्कारक उल्लास आ भारतीय भाषा-साहित्यक समकालीन गतिविधि केँ चिन्हबाक-जनबाक जिज्ञासाक संग जखन 27 मइ केँ प्रायः चारि बजे अपराह्न मे अगरतला एयरपोर्ट सँ बहरेलहुँ, तँ सभ सँ पहिने भेटलीह पंजाबीक प्रतिनिधि-डॉ. शालू कौर. औपचारिक अभिवादनक पश्चात दुनू गोटे गाड़ी मे बैसि होटल दिस विदा भेलहुँ. एयरपोर्ट सँ होटल धरिक करीब 7 किलोमीटरक यात्रा मे शालू जीक बहुमुखी प्रतिभाक परिचय पओलहुँ. जखन ओ स्नातक केर छात्रा छलीह तखनहि सेना मे लेफ्टिनेंट पद पर नियुक्ति पओलनि. चारि वर्षक सेवाक बाद त्यागपत्र दए पुनः आगाँक अध्ययन मे जुटलीह. पंजाबी साहित्य मे पीजी कयलनि. पश्चात एम.फिल. आ पी.एच.डी.क उपाधि सेहो अर्जित कए, सम्प्रति दिल्ली विश्वविद्यालय मे अध्यापन करैत छथि. इहो जानल जे फैमिनिज्म आ सूफीज्म हुनक प्रिय विषय छनि, जकर प्रभाव पश्चात हुनकर कविता सभ मे सेहो पाओल. पंजाबी साहित्य मे सूफी परम्परा हुनक शोधक विषय सेहो छलनि. एकर अलावे शालू पिस्टल शूटिंग मे राष्ट्रीय स्तरक खेलाड़ी सेहो छथि. महत्वपूर्ण इहो जे शालू जे केलनि, पूरा मनोयोग सँ केलनि. सभ क्षेत्र मे प्रशंसनीय सफलता पओलनि. तकर प्रमाण देखल हुनकर मोबाइल मे-हुनका प्राप्त सोरहि सँ अधिक स्वर्ण-पदकक फोटो.
विक्टर राजकुमारक असमिया कविता केँ एकाग्रचित्त भऽ सुनैत मणिपुरी कवि ख.कृष्णमोहन सिंह |
28 वर्षीया शालूक प्रतिभा-परिचय सँ मुग्ध भेल होटल पहुँचलहुँ. नियत स्थानपर डेरा खसाओल. संध्याकाल जखन डाइनिंग हॉल मे पैसलहुँ तँ ओतय परिचय भेल असमिया कवि विक्टर राजकुमार आ मणिपुरीसेवी- ख.कृष्णमोहन सिंहसँ. विक्टर मूलतः साफ्टवेयर इंजिनीयर छथि आ अपन कम्पनी चलबैत छथि. कृष्णमोहन एखन छात्रजीवने व्यतीत कए रहलाह अछि मुदा, भाषा-साहित्यकर्मीक रूपमे बेस ख्यातिलब्ध छथि। तीनू गोटे भोजन करैत रही, हठात् असमिया आ मणिपुरीक साहित्यिक गतिविधिक प्रति जिज्ञासा भेल आ दुनू गोटेसँ समवेत पुछलियनि- एकटा रचनाकारक रूप मे अहाँ लोकनि केँ अपन साहित्यक सभ सँ पैघ समस्या की अभरैत अछि? अपेक्षा छल जे उत्तर भेटत- पाठकक अभाव, प्रकाशकक अभाव, वितरण व्यवस्थाक अभाव...... तावत् कृष्णमोहन उत्तर देलनि- हमर सभक पाठकक अति-संवेदनशीलता। विक्टर सेहो समर्थनमे मूड़ी डोलौलनि. हमरा उत्तरक गंभीरता, कही तँ निहितार्थक भाँज नहि लागि रहल छल. भेल जेना प्रश्न टारबाक लेल किछु कहि देलनि अछि, मुदा विक्टरक सहमति हमरा अपनहि आशंका सँ असहमति करा रहल छल। पुनः हमर जिज्ञासा छल- कने विस्तारसँ कहू।
कृष्णमोहन अत्यंत पीड़ित स्वर मे कहय लगलाह- हम सभ अपन आस-पास जे देखैत छी, जे अनुभव करैत छी, जे भोगैत छी तकर यथावत् चित्रण अपन साहित्य मे नहि कए पबैत छी। कारण ई बात हमरा एतुका घोषित-अघोषित सत्ता केँ अखरैत छैक....
हम टोकलियनि- तकर माने जे ओ सब डेराइत अछि अहाँ लोकनिक कलमक बल सँ?
विक्टर स्पष्टीकरण दैत बजलाह- डेराइत तँ अछि सत्ते मुदा डेरायल देखाय नहि चाहैत अछि. अपन डर केँ नुकेबाक हेतु हमरा सभ केँ डेरबैत अछि. जँ हमरा लोकनि एहि सत्ता-व्यवस्थाक विरुद्ध कोनो बात लिखैत छी तँ चौबीस घण्टाक भीतर समाद भेटैत अछि-जँ खएर चाहैत छी तँ अपन रचनाक स्पष्टीकरण छापि मूल बात केँ काटू. अन्यथा तीन दिनक भीतर....!
बजैत-बजैत विक्टर रुकि गेलाह. हमरा लेल ओहि अव्यक्त अभिव्यक्तिक व्यक्त भाव केँ ठेकानब मोसकिल नहि छल. अभिव्यक्तिक स्वतंत्रता पर कुठाराघातक संत्रास ओ अपन भुक्त-अनूभूत पीड़ाक अव्यक्त रहि जयबाक अतृप्ति आ टीस, एहि दुनू नवतुरिया साहित्यकारक मुँह पर स्पष्ट झलकि रहल छल. मुदा, हम वातावरणक गंभीरताक परिधि केँ फानि पहुँचि गेल रही अपन साहित्यांगन मे. एकाएक हमरा मुँह सँ बहराय गेल- अहाँ सभ अति-संवेदनशीलता सँ पीड़ित छी आ हम सभ असंवेदनशीलता सँ! हुनका लोकनि केँ हमर संकेत बुझबा मे भाङ्गठ नहि भेल रहनि. एकटा ठहक्का मुखरित भेल. हँसल हमहूँ रही. मुदा मनेमन ताहि सँ अधिक कानल रही अपनहि लोकक बीच अपन उपेक्षाक स्वर अकानि. अंतरात्मा सहसा बाजि उठल छल- हमरो गप पर किओ कान दितैक एहिना...!!!
वातावरण मे पुनः आत्मीयता आ उल्लासक प्रवेश भऽ गेल छल. डाइनिंग हॉल सँ बहराय हमहूं एहि दुनू कविक काव्यलोक मे फेर दुपहर रातिधरि विचरण करैत रहलहुँ. (क्रमशः)
— चंदनकुमार झा