हम नहि साधु-संन्यासी,
नहि जोगी-तपसी-संत
चंचल म'न कोना चुप बैसत,
एलइ ऋतु वसंत
धरती शृंगारित युवती सन,
पहिरल हरियर सारी
केस सजौने फूलक गजरा,
नवबंधु उनमत्त नारी
मद मातल नैना सँ ताकै,
कोना बनीं हिय हंत
चंचल मोन कोना चुप बैसत,
एलइ ऋतु वसंत
स्व प्रकृति सजि-धजि क',
कामुक नयन सँ रहलि निहारि
छोड़ि अपन पुरुषार्थ कोना,
कहूं हम बैसी हारि
ई मधुमय मौसम मे मिलिक',
करबै जग-जीवंत
चंचल मोन कोना चुप बैसत,
एलइ ऋतु वसंत
मद मातल बहि रहल झुमि क',
सन-सन पुरिबा बसात
सिहरल देह त'अ देखल,
चुमिक' भागल हमरो गात
सुखलो गाछ सँ निकलल पनकी,
आनंद -उमंग -अनंत
चंचल मोन कोना चुप बैसत
एलइ ऋतु वसंत
— विजय इस्सर 'वत्स'