आजुक युगमे विद्वता प्रदर्शित करबाक अभिलाषा सबकें होयत अछि. विद्वताक प्रदर्शन जीवनक प्रत्येक क्षेत्रमे कएल जाएत अछि. साहित्य जीवनक प्रमुख क्षेत्र मानल जायत अछि जाहिमे अपन मोनक भावकें व्यंजित-अभिव्यंजित करबाक सदति यथेष्ट चेष्ट होयत आबि रहल अछि. विकसित मानव के लेल दुरुहतासं भरल मोटका मोटका पोथी लिखल जा रहल अछि. परिणामतः मैथिली बाल साहित्य ओतेक समृद्ध नहि भ’ सकल जतेक कि होएबाक छल. मुदा एहि सबसं फ़राक, बाल-व्यक्तित्वक समुचित विकासमे बाल-साहित्यक संग संग मातृभाषाक असीम महत्ताकें बुझैत कवि मिथिलेश कुमार झा मैथिलीमे बाल-साहित्यक खाली भंडारकें भरबाक भागीरथी प्रयास सराहनीय आ प्रशंसनीय अछि. मिथिलेश जीक सुन्नर हॄदय नेना-भुटका सबहक प्रति जागल स्नेह, प्रेम, लगाव, वात्सल्य आदि मानवीय भावनाक सारस्वत तत्वसं परिपूर्ण अछि. शिक्षण वृत्तिक परिणामे एहि कवि केर हृदय शिशु स्नेहसं रसाप्लावित अछि जकरे चरमोत्कर्षक रचनात्मक ओ काव्यात्मक परिणाम थिक “सोना आखर”. एहि समीक्षाधीन कविता संग्रहक प्रकाशकीयमे फ़रिछा क’ कहल गेल अछि —
“धिया-पुता कोनो भाषा, साहित्य, संस्कॄति, समाज ओ राष्ट्रक भविष्य होयत अछि. तैं धिया- पुताक संस्कार, विचार, व्यवहार आदि पर समुचित ध्यान देब आवश्यक.“
समकालीन मैथिली साहित्यक धरा-धाम पर मिथिलेश झा जीक कविक रूपमे अवतरण अनायास नहि. प्रारंभहिसं हुनक मैथिली आ हिन्दी बाल कविता, बाल-कथा, कविता, कथा, गीत, गजल, साक्षात्कार, आन साहित्यिक ओ गैर-साहित्यिक निबंध आदि विभिन्न पत्र-पत्रिकामे प्रकाशित होयत रहल अछि. काव्यात्मक प्रतिभा बले हुनका मिथिला सांस्कृतिक परिषद, कोलकाताक तीन गोट स्मारिका (स्वर्ण जयंती विशेषांक सहित) केर सम्पादन करबाक श्रेय प्राप्त छनि. संगे, श्री मिथिलाकें सह-सम्पादनक रूपमे हुनक योगदान उल्लेखनीय अछि.
कुल 23 गोट बाल कवितासं सुसज्जित आ सुवर्णित “सोना आखर” मिथिलेश जीक पहिल बाल-कविता संग्रह थीक जेकि प्रकृति ओ परिवेश आ ओकर सौन्दर्य, सामाजिक परम्परा आ परिवारिक संस्कार, जीवन मूल्य आ नैतिकता, देशप्रेमक भावना आदि जेहन गंभीर विषय-वस्तु पर केन्द्रित अछि. एहि कविता संग्रहक पहिल कविता “कोईलीक अंडा” बाल मोनमे सहक जिज्ञासा समुपस्थित करैत अछि. बोधगम्य शब्द संयोजनक माध्यमे कोईली आ कौआक संदर्भक माधयमे नैतिक शिक्षा दs रहल अछि. “कौआ” प्रवॄत्ति पर गहीर दॄष्टिपात कएल गेल अछि. समाजमे अधलाह व्यक्ति उत्कृष्ट बनबाक कतबो दंभ भरैत रहय, हुनक क्षद्म रूप आ व्यवहार अंततोगत्वा जगजाहिर भs जायत अछि. एहने व्यक्तिक अधोगति निश्चित अछि. एकटा नीक शिक्षाके ध्यानमे राखि लिखल ई कविता बहुत शिक्षाप्रद अछि-
“सेवत लागल कौआ
कोईलीक अंडा
बच्चा बहरायल तें
फ़ूटि गेल भंडा।“
“मोतीक बरखा” मे प्रकृतिक सौन्दर्यक एकटा अनुपम दृष्य परिदर्शित होयत अछि. कटु यथार्थक परिवेशमे तप्त आ दग्ध हृदयकें जहन प्रेम, सहानुभूति आ मधुर शब्दक फ़ुहाड़ पड़ैत छैक तहन भावनात्मक रूपे कतेक हर्ष भेटैत छैक तकर नीक उदहारण भेट रहल अछि निम्न पांतिमे-
“रौदो उगल छै
बुन्नी पड़ै छै.
रौदी मे चम-चम
मोती झड़ै छै.“
रौदमे पड़ैत बुन्नी द्वारा प्रस्तुत सुन्नर चित्र बच्चे नहि, प्रत्येक मनुखक हृदयमे अपना प्रति अनुराग उत्पन्न क’ दैत अछि!
“एकता मे बल” एकताक भावनामे विश्वास व्यक्त-अभिव्यक्त अछि. “डेगा-डेगा” चलैत जीवन पथ पर सदति चलबाक आ कटहा कुकुरसं सावधान रहबाक सनेस देल गेल अछि. “बकुला ध्यान” माध्यमे शिक्षा दैत कहैत छथि-
‘अहूं सब बौआ दS लिअS
ई हमर बात के कान-
पढब-हुनब अहूं एहिना
लगा नित्य बकुला ध्यान.“
“पढुआ बौआ” देशमे चलि रहल सर्वशिक्षा अभियानक नाराकें आओर सशक्त करैत शिक्षाप्रिय कविक बाल मोन कहि उठैत अछि-
“हमहुं स्कूल जेबै
पढुआ बाबू हेबै
बाबाक दुलरुआ हम
देशक मान बढेबै.“
उक्त कवितामे देशप्रेमक भावना, शिक्षाक प्रति आदर व्यक्त भेल अछि. संगे, बच्चाकें “देश समाजक “रखबार” कहल गेल अछि. ओहि ठाम एकटा आओर कविता “ हमहुं सिपाही बनबै”मे शिशु हॄदय मे देशभक्तिक भावना अभिव्यक्त भेल अछि. जागरुकता, देशप्रेम ओ सेवा आदिक तत्व परिलक्षित भेल अछि-
“माय हमरा बंदूक कीनि दे
हमहुं सीपाही बनबै.
पहिरि कS टोप, बूट आ बरदी
दुश्मन पर से तनबै.“
‘देखू-देखू बानरक खेल” पढला सं किनको गमैया परिवेशकक सहज स्मरण भ' जेतनि. बानर द्वारा देखायल जा रहल किसिम किसिमकें खेल बाल मोनमे एक तरहक हर्खक तरंग आनि दैत अछि जेकि आई आयनॉक्स वा मल्टिप्लेक्समे सिनेमा देखलो ओ नैसर्गिक आनन्द नहि भेट पाबैत अछि.
“गामक पेठिया”मे गामक हाट बजारक परिदॄश्य समुपस्थित कएल गेल अछि. पांति पढलाक बाद गामसं कटल पाठक केर मन मस्तिष्क पर गामक पेठिया सहजे उकड़ि जायत अछि. कवि पेठियाकें विभिन्न प्रकारक वस्तुक केर खरीद बिक्रीक संगे आपसी भेंट-घाटक सहज माध्यम सेहो मानि रहल छैथ –
“केन-बेच लए लोक जुटल छल,
परस्पर भेटों-घांट.“
बच्चा भविष्यक धरोहर छी. देशक प्राण शक्ति छी. राग-द्वेष, छल कपट्सं दूर बाल मोन निश्छल, निर्मल आ कोमल होयछ. “हम वीर बालक“मे जातीयता आ धर्मक बंधनसं मुक्त बाल महत्व पर हुनक दॄष्टि समीचीन प्रतीत भ रहल अछि, जहन ओ कहैत छैथ-
“हमहीं भविष्य
देशक उज्ज्वल
हम बालक छी
निर्मल निश्छल.“
“अज्ञान तिमिरमे नहि बौआह”, ‘कामना” आ संग्रहक अन्तिम कविता “सोना आखर” कविक उच्च विचारक कसौटी अछि जाहिमे बाललीला मादे अपन वैचारिकता, दृष्टिकोण, गहीर भाव आदि व्यक्त केने छैथ. “अज्ञान तिमिरमे नहि बौआह”मे बाल मन आब मानव मन बनि गेल अछि कविक लेल. गामक बाट पकड़ने बच्चा आब विज्ञानक बाट ध’ लेने अछि. मुदा तइयो कविक बाल प्रेम एहि प्रकारे ललकारा दs रहल अछि-
“मानव, तों विज्ञानक बाट पर
“मानव, तों विज्ञानक बाट पर
सदिखन आगू बढिते जाह,
नहि थाकह तों, न हारि बैसह,
पौरुष-शक्ति सं आगू बढह,
आगू बढि कर्तव्य करह,
फ़ल भेटतह, तों नहि अगुताह.“
देशदशाक चित्रणक संगे समसामयिकता परिवेशक नीक उदाहरण भेट रहल अछि उनक कवितामे मानवता ओ समाजक प्रति हुनक गंभीरता ओ प्रतिद्धताक एकटा छोट छिन नमूना अछि “कामना” जाहिमे ओ अपन समाजक, अपन राष्ट्रक विकासक लेल कामना कs रहल छैथ –
मानव-मानवमे नेह बढय
आर राग-द्वेष केर हो अन्त.
सबहक हित हो, सभकें सुख हो
पीड़ा दीनता केर हो अन्त”
उपरोक्त पांतिं सहज रूपे कविगुरु रावीन्द्रनाथ ठाकुरक कविता “व्हेयर द माइन्ड इज विदाउट फ़ीयर “आ भारतीय दर्शनमे व्याख्यायित “सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया. सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्“ केर महत उदघोष इयाद आबि जायत अछि.
“सोना आखर” कवितामे शिशुक नियमित दिनचर्याकें सम्यक रूपेन करबाक सीख देल गेल अछि. वस्तुत: ई कविता अनुदेशात्मक कविता थीक. एहि कवितामे समयक महत्व पर इजोत देल गेल अछि. कविता दूटा अन्तिम पांति बहुत किछु कहि रहल अछि –
“समय पकड़ि बुधियार कहाबी,
छोड़ि समय ‘बकलेलहा-भाइ’"
उक्त कवितामे “बकलेलहा-भाइ”के रूपमे कवि केर जीनगीक आत्मपरक तत्वक अनुभूति कएल जा सकैत अछि.
एहि प्रकारे मिथिलेश झा जीक समस्त कविता पर गहन चिन्तन, मनन आ मंथन कएलाक बाद हम कहि सकैत छी जे हुनक कवितामे एक दिस शिशु प्रति प्रेम आ अनुराग अछि, शिशु सरोकारक शिक्षा अछि, गमैया परिवेशक उपस्थिति अछि, गाम घरक संस्कृति अछि त दोसर दिस देशप्रेमक गहन अनुभूति अछि, सामाजिक सरोकारक चिन्तन तत्व अछि। “दुइ शब्द” कवि अपने लिखैत छैथ जे
“कविता सभमे बाल-मनोविज्ञान, नेनाक शब्द-क्षमता, ओकर जिज्ञासु प्रवृति, परिवेश आदिकें ध्यानमे राखि सरल शब्द, तुकान्त शैली आदिक प्रयोग कएल गेल अछि. कविता सभक द्वारा परिवेश, प्रकृति, परंपरा, इतिहास, ठेठ शब्द, सामाजिक व्यवहार, दैनिक क्रियाकलाप, जीवन मूल्य, कर्तव्य, ओज एवं वीरताक भावना आदिकें रुचिगर रीतें प्रस्तुत करबाक चेष्टा कएल गेल अछि.“
अन्तमे कही त’ आबय बला समयमे मिथिलेश जीक “सोना आखर’क रूपमे ई योगदान मैथिली बाल-साहित्यमे अविस्मरणीय मानल जायत. संग्रहमे प्रस्तुत कवितामे बाल- मनक निर्मलता ओ निश्छलताक चासनी त’ अछिए, एकर प्रवाहमयता एवं गीतात्मकत सौन्दर्य अप्रतिम अछि. कविता सभमे भाव-गांभिर्यक अलगे रूपमे परिदर्श होयत अछि. कोनो कोनो ठाम आत्मनिष्ठमूलक भावना व्यक्त-अभिव्यक्त भेल अछि. संग्रहक भाषा ‘सहज, रुचिगर आ बोधगम्य’ अछि.
मिथिलेशजीकें हार्दिक शुभकामना दैत हुनक अगिला काव्य-संग्रहक प्रतीक्षा मे…
सोना आखर (बाल कविता संग्रह)
कवि - मिथिलेश कुमार झा
ज्ञानदीप प्रकाशन
प्रकाशन वर्ष- 2013
दाम- 20 टाका