कलकत्ता : नाट्य संस्था मिथियात्रिक झंकार दिस सं कोलकाताक मैथिलवृन्द एवं अपन पावन भूमि मिथिलाक माटि पानि सं समस्तरूपेन जुडल विश्वक समस्त मैथिल कें दुर्गोत्सव/विजयादशमी/कोजागराक हार्दिक शुभकामना एवं मां केर शारदीय अभिनंदन केर संग गौरवक बोध क’ एकटा विशिष्ट सूचना प्रसारित कयल जा रहल अछि जे गत वर्षक भांति एहू वर्ष मैथिल नाट्य संस्था मिथिलायात्रिक झंकार 27 दिसंबर 2015क रविक दिन सायं 6 बजे सं संगीत कला मंदिरक अन्तर्गत कलाकुंज केर तलकक्षक प्रेक्षागृह मे कार्यक्रम सुनिश्चित कयलक अछि.
उक्त नाट्यानुष्ठान मे प्रस्तुत नाटक मिथिलाक सुविख्यात लेखक महेन्द्र मलंगीया रचित एवं लब्धप्रतिष्ठित निर्देशक शंभूनाथ मिश्रा निर्देशित नाटक “काठक लोक” प्रदर्शित होयत जकर पूर्वाभ्यास प्रक्रियाक शुभारंभ होमय जा रहल अछि. ई नाटक “काठक लोक” मिथिलाक लोक कथा पर आधारित अछि. एहि नाटकक माध्यम सं नाटककार सत्य कें उजागर करबाक प्रयास कयलनि अछि. लेखक खोलक भीतर नुकायल राक्षस कें बाहर आनि ओकर सत्य विदित क’ जनमानस कें सतर्क करबाक चेष्टा कयलनि अछि. समाजक भीतर आर बाहर किछु एहने लोक छथि जे खोलक भीतर आ बाहर दुनू ठाम जीबैत अछि. सामाजिक प्राचीन परम्परा एवं धार्मिक अनुष्ठान अवलम्बित मनुक्ख अतीत सं इमानदार रहितहु खोल-प्रवृति आ प्रकृति मे नुकायल मनुक्ख द्वारा सतत प्रताड़ित होयत अयलाह. ओकरा सं मुक्ति दियेबाक हेतु लेखक मलंगियाजी कोनो कसरि नहि छोड़लनि अछि. नाटकक कथानक मे असत्यक साम्राज्य रहितहु एक दिन असत्यक दुर्ग भड़भड़ाक’ ढहि जायत अछि, तकर अत्यंत विलक्षणता सं प्रकट कयल गेल अछि. सरिपहु सत्य गंगा जकां पवित्र आ अक्षुण्ण होयत अछि, एकर अंत कदापि नहि भ’ सकैत अछि. पुरुष प्रधान समाजक चौकठि पर ठार एकटा नारीक निश्छ्लता, पति’क प्रति पवित्रता, अगाध प्रेम आ निष्ठा सं ओतप्रोत ई नाटक “काठक लोक” मानवीय मूल्यक आंतरिकता सं अवलोकन करबायत. समाजकें सत्यक पथ पर प्रशस्त होयबाक हेतु प्रणेता भ’ प्रेरित करबैत अछि.
(रिपोर्ट : भास्कर झा)