नव दिल्ली: मैथिली हमर सभक मातृभाषा अछि. अपन भाषा लेल सबकें मोनमे अनन्त अनुराग होइत अछि. महाकवि विद्यापति मातृभाषाक महत्वकें रेखांकित करैत लिखने छथि, ‘देसिल बयना सब जन मिट्ठा' – माने, अपन भाषा सबकें मीठ लगैत अछि. हमरा सभक लेल ई गौरवक गप अछि जे मैथिली साहित्यक स्थान भारतीय भाषा मध्य महत्वपूर्ण अछि. मैथिली भाषाक स्वतंत्र अस्तित्व अछि. एकर व्याकरणक विशिष्ट पहचान अछि. एकर अपन लिपि अछि. एकर साहित्य समृद्ध अछि.
मैथिली साहित्यक परिदृश्य पर दृष्टिपात करैत मिथिलाक सेनानी ओ विद्वान डॉ. जयकान्त मिश्र'क कथन छनि जे –
मैथिली एक स्वतंत्र समृद्धशाली भाषा-साहित्य थीक. एहिमे सुदीर्घ, अविच्छिन्न आ क्रमबद्ध साहित्य-लेखनक परम्परा रहलैक अछि. मैथिली जीवन्त भाषा-साहित्य थीक. निरन्तर साहित्य-लेखन चलि रहल छैक. मैथिलीक अपन लिपि आ व्याकरण छैक. शब्द आ लोकोक्ति छैक. विपुल लोकसाहित्यक भंडार छैक."
बहुत रास मैथिली सेनानी आ साहित्यकार निरंतर त्याग करैत रहला, निरंतर सृजन करैत रहला तखन जा क' मैथिलीक एहन गौरवशाली परिदृश्य बनल. कविता, कथा, उपन्यास, नाटक, आलोचना, अनुवाद सहित साहित्यक सभ विधामे भरपूर साहित्य सृजन कएल गेल.
चौदहम शताब्दी सं मैथिली साहित्य समृद्ध होबय लागल. एहि कालमे ज्योतिरीश्वर ठाकुर ऐतिहासिक 'वर्ण रत्नाकर' ग्रंथक रचना कएलनि ओकर बाद विद्यापतिक साहित्य साधना सर्वविदित अछि. अनेक पत्र-पत्रिका बहराएल. सर्वप्रथम मिथिलेत्तर क्षेत्र जयपुर सं 'मैथिल हित साधन (1905)' पत्रिका बहराएल. पत्र-पत्रिका जगतमे 'मिथिला मिहिर (1907)क' योगदान उल्लेखनीय रहल. अपन माटी आ भाषाक प्रति समर्पण-भावक कारण कलकत्ता, रांची, धनबाद, जमशेदपुर, आगरा, वाराणसी, इलाहाबाद, अजमेर, जयपुर, राउरकेला, मुंबई सहित देशक अनेक महानगरमे मैथिल प्रवासी सभ अदम्य जीवटताक परिचय देइत अनेक दिक्कतक बादो मैथिली साहित्यिक पत्रिका बाहर करैत रहला. हं, ई अवश्य छल जे कोनो, पत्रिका, एक साल, कोनो दू साल बहराइत छल, मुदा फेर किछुए दिनक बाद नव पत्रिका शुरू भ' जाइत छल.
मैथिलीक विकास लेल किछु प्रमुख संस्था ऐतिहासिक काज कएलक. जाहिमे अखिल भारतीय मैथिल महासभा, मैथिली साहित्य परिषद्, मैथिली साहित्य समिति आ चेतना समितिक भूमिका उल्लेखनीय रहल. ई प्रश्न सहज उपस्थित कएल जा सकैत अछि जे बहुत रास मैथिली साहित्यिक संस्था अछि तखन फेर एकटा नव संस्था किएक? एकर की विचारधारा रहत? एकर कार्यपद्धति की होएत? मैथिली आंदोलनक प्रवाहमे ई एकटा अवरोध सेहो मानल जाएत अछि, जे एक के बाद एक नव संगठन बनैत अछि आ किछुए दिन बाद निष्क्रिय भ' जाएत अछि. दिल्लीमे लाखो प्रवासी मैथिल छथि. ई खुशीक बात जे एहि ठाम अनेको स्थान पर भव्य तरीका सं 'विद्यापति पर्व' आयोजित भ' रहल अछि. मैथिल रंगमंचक स्थिति प्रभावी अछि. मुदा, सक्रिय साहित्यिक संस्थाक अभाव. कोनो समाज साहित्य द्वारा संस्कारित आ जाग्रत होइत अछि. वैश्वीकरण आ बाजारवादक जमानामे साहित्य मनुखताकें जीवित रखैत अछि. साहित्यसं अन्यायक प्रतिरोध होइत अछि त' सकारात्मक परिवर्तनो साकार होएत अछि.
मैथिली प्राचीन आ साहित्यिक भाषा अछि. एकर संरक्षण आ संवर्धन एवं मैथिलक बीच सामूहिक चेतना जाग्रत करय लेल एकटा नव संस्था 'मैथिली साहित्य महासभा, दिल्ली'क गठन प्रस्तावित अछि. ई संस्था दलगत राजनीति आ जाति-मजहबक भेदसं मुक्त भ' काज करत आ मैथिलीकें प्रोन्नतिशील बनाएत.
मैथिली साहित्य महासभाकें निम्न गतिविधि रहत - मैथिलक मध्य साहित्यिक अभिरूचि उत्पन्न करब, मिथिलाक्षर लिपि केर विकास, काव्य गोष्ठीक आयोजन, मैथिली पोथीक प्रकाशन, मैथिली पोथी क्रय-विक्रय केंद्र, मैथिली पुस्तकालय आ वाचनालयक स्थापना, मैथिली साहित्य उत्सवक आयोजन, मैथिली साहित्यकारक आर्थिक सुरक्षा लेल कोष समितिक गठन, विद्यापति स्मृति व्याख्यानमाला केर आयोजन आ डॉ. जयकान्त मिश्र एवं भोलालाल दास स्मृति पुरस्कार.
आगामी 21 फरवरी 2015 (शनि दिन)कें डिप्टी स्पीकर हॉल, कंस्टीट्यूशन क्लब, नई दिल्लीमे प्रात: 11 बजेसं दुपहर के 2 बजे धरि 'मैथिली साहित्य महासभा, दिल्ली' केर 'स्थापना समारोह' आयोजित होबय बला अछि. एहि कार्यक्रममे रवींद्रनाथ ठाकुर, गंगेश गुंजन, डॉ. उदयनारायण सिंह 'नचिकेता', श्रीमती शेफालिका वर्मा, पद्मश्री उषाकिरण खान, डॉ. महेंद्र नारायण राम, बुद्धिनाथ मिश्र, डॉ. देवशंकर नवीन प्रभृति वरिष्ठ मैथिल साहित्यकारगणक मार्गदर्शन संबोधन होएब निश्चित भेल अछि.
(रिपोर्ट : संजीव सिन्हा)