मैथिली रंगकर्मी, निर्देशक ओ मैथिलीसेवी गंगा झा मूलतः परजुआरि डीह टोल (मधुबनी)क रहनिहार आ वृत्तिक हेतु कोलकाताक प्रवासी छथि. मैथिली रंगमंचसं संबंधित विभिन्न बिंदु आ आन कइएक संदर्भमे हुनकासं मिथिमीडिया लेल बातचीत केलनि मिथिलेश कुमार झा.
नाटकसं अपनेक रुचि कोना भेल?
बाल्यकालेसं, जखन गाम पर छठामे पढैत छलहुं, कृष्णाचन्द्र झा 'रसिक' सभ नाटक करथिन. हुनका सबहक रिहर्सलमे राति भरि बैसि जाइ आ कहियनि हमरो पाट दिय. जाहिमे बाल कलाकारक भूमिका होइ ताहिमे हमरा पाट देथि आ खूब बढ़ियासं यादिक' मंचप्र बाजि आबी. तकर बाद जखन हम सभ नाटक करय लगलहुं त' कन्याक भूमिका, कृष्णक भूमिका करय लगलहुं. गाममे विवाह कीर्तन होइ त' हमरा राम सजाओल जाए. यानि नाटकमे रुचि नान्हियेटासं छल.
निर्देशनक आरम्भ कोना कएल - सुनियोजित ढंगसं किंवा परिस्थितिवश? आ से कहिया तथा कोन नाटकसं?
परिस्थितिवश. एहि ठाम मिथिला सेवा संस्थान नामक एकटा संस्था देवकांत राय बनओने रहथि. ओ नाटकक कार्यक्रम रखलनि. ओहि समय दयानाथजी अस्वस्थ भ' गेलाह. तखन सभ गोटे हमरा निर्देशन करबाक आग्रह केलनि. उएह छल हमर पहिल निर्देशन - १९८७मे. कृष्णचन्द्र झा 'रसिक' लिखल नाटक 'विवाह एक समस्या' केर मंचन भेल छल. मंचनसं बाबूसाहेब चौधरी अतिशय प्रभावित भेलाह आ हमरा मानसिक बल भेटल. निर्देशानक लेल हमरा तैयारी करय पडल छल. किएक त' ई हमर पहिल कार्य छल. हम बहुत रास पोथी किनलहुँ-मंच सज्जा, रूप सज्जा, प्रकाश आ निर्देशकीय विषयक. बांग्ला आ अंगरेजीमे, एहि सबहक प्रयोग कएल जकर फल भेल हमर सफलता.
निर्देशनक क्षेत्रमे अपनेकें किनका सभसं सिखबाक अवसर भेटल? सर्वाधिक प्रिय निर्देशक के भेलाह? एहि क्षेत्रमे अपन गुरु किनका मानैत छी अथवा किनकासं सर्वाधिक प्रभावित छी?
सिखबाक लेल त' हम एखन धरि जतेक नाटक देखने छी - बांग्ला, हिन्दी वा अंगरेजी - ताइ सब निर्देशकसं किछु ने किछु सिखने छी. तखन गुरु बनि केओ सिखओलनि से कहब कठिन अछि. हमरा लेल त' सभ गुरु छथि. तहन नाटक सभ विषय पर जओं अधिक ज्ञान प्राप्त करबाक सुयोग देलनि से छथि कृष्णचन्द्र झा रसिक आ दोसर नाम कही त' से छथि दयानाथ झा. मैथिली नाटकक विषयमे कही त' हम देखने छी कर्णजी, त्रिलोचन झा, श्रीकांत मंडल एवं रामलोचन ठाकुरक प्रस्तुति.
एखनधरि कतेक नाटक निर्देशित केने छी?
पहिल त' यएह भेल. दोसर छल मधुरलाल मंडलजीक संस्थामे हिनके लिखल नाटक 'नवजागरण'. तकरा बाद कलाकार लोकनि अपन संस्थामे नियमित नाटक करबाक प्रस्ताव रखलनि. फलस्वरूप कोकिल मंचक स्थापना भेल आ नियमित नाटक होमय लागल जकर निर्देशक करैत आबि रहल छी. एखन धरि 32टा नाटक एहि ठाम केलहुं. संगे गाम पर सेहो प्रत्येक वर्ष कालीपूजामे नाटकक निर्देशन कए रहल छी जे लगभग 25 सालमे 30टा नाटक हएत.
अपन निर्देशित नाटक सभमे सर्वाधिक सफल नाटक अपने ककरा मानैत छी?
धूर्तसमागम, लोढानाथ आ बांग्लासं अनुदित नाटक वाह रे बच्चाराम.
मंचन हेतु कृतिक चयन कालमे की सभ ध्यानमे रखैत छियैक?
बहुत किछु ध्यानमे राखय पडैत छै. पहिल कलाकारक संख्या एवं क्षमता जाहिमे मुख्य रूपसं महिला कलाकार जे मैथिलीमे दुर्लभ अछि, तकरा बाद कथा.
नाट्यकारमे सर्वाधिक नीक के लगै छथि?
नाट्यकार लोकनिक अपन विशेषता होइ छनि. सभ रचनाकारमे अद्भुत क्षमता होइ छनि. सभ तरहें पूर्ण कहब कठिन अछि मैथिलीक लेल. जेना मलंगियाजीक नाटक विशुद्ध गामक परिवेशमे लोकभाषाक विशिष्टता रखैत छनि. डॉ. अक्कूजीक नाटकमे विविधता भरल विषय एवं संरचना छनि. शहर, गाम तथा शोधमूलक विषय पर सहज भाषाक प्रयोग रुचिकर छनि. अइसं हटिक' जे हमरा सभ सं बेसी आकर्षित केलनि से सुधांशु शेखरजी एवं पंडित गोविन्द झा जे कथा एवं चरित्रकें सुनियोजित ढंगसं सीमित संवादमे तह धरि पहुंचा देइत छथिन.
नाट्य-विशेषक मंचन-निर्देशन, अपना पसीनक कलाकारक चयन अथवा तकनीकक प्रयोग आदि विभिन्न सन्दर्भमे कोन अथवा कोन-कोन सेहन्ता बांचल अछि?
सेहंताक अंत नहि. अपना मोनसं सभ किछु होयत सेहो संभव नहि. कलाकारक चयन संगे ओइ व्यक्तिक संस्थागत सहयोग संगे समझौता. तकनीकी प्रयोगक उपयुक्त साधन. सबहक संगे अर्थ आ सबहक समय. अर्थात एकटा प्रस्तुति केर सफलताक संग प्रदर्शन करबाक लेल बहुत रास समझौता. किछु तीत किछु मधुर. जतय अर्थ, स्थान ओ सहयोग अपर्याप्त होइ.
एखन धरि एहन स्थिति आएल अछि जे कोनो विषय पर मंचन करय चाहैत होइ मुदा ताहि पर नाट्य कृति अनुपलब्ध हो?
एहन होइ छै. एतय जे आन भाषामे आधुनिक विषय पर नाटक होइ छै, जाकर प्रदर्शन हम देखि नेने रहै छी, तहन मोनमे होइए किछु एहने विषय पर मैथिलीमे पोथी रहितैक. जेना धार्मिक अंधविश्वास, मानवीय मूल्याक ह्रास, संवेदना, जिजीविषा, राजनितिक व्यंग्यवा अन्य व्यंग्यात्मक कथाआधारित आदि. पारिवारिक-सामाजिक समस्या सभपर त' नाटक अछिए.
मराठी ओ बांग्ला रंगमंच सम्प्रति बड्ड अगुआएल अछि. सुनै छियै जे मराठीमे एकहक नाटकक चारि-चारि हजार प्रस्तुति भेल छै. मैथिली रंगमंच एहि दुनू रंगमंचसं सैकड़ो बरख पुरान रहितो एहन सोचियो ने सकैत अछि. एहि सन्दर्भमे अपने की कहबैक?
एकटा नाटकक बेसी प्रदर्शन हो ताहि लेल जरूरी छै दर्शक. कलकत्ताक दर्शक छिडियाएल अछि. नाटक हॉल सेहो कम छै. दोसर छै नाटकक तैयारी लेल कलाकारक संगे आर्थिक सहयोग. दर्शक पाइ खर्चक' नाटक देखबाक आग्रही कम छथि. एखन जे देखै छी ताइमेएकटा नाटक करब आ एकरा लेल दर्शक जुटाएब भारी पडै छै.
मैथिली रंगमंचकें पछुअएबाक कारण आ तकर निवारण की छै?
सामाजिक सोच! नाटक बौद्धिक वर्गक विषय छै. एहिमे बेसीसं बेसी लोकक जिज्ञासा नहि भेने अगुआएब कठिन छै. अपना स्तर पर ठाढ़ राखि सकी ततबे बहुत छै. रचनात्मक प्रतिभा जिनका लगमे छनि से कथा, कविता वा आन विधा केर वस्तु लिखि लेताह परन्तु नाटक लिखनाइ आ एकरा मंचित करेबाक चेष्टा नहि करताह. तखन की आशा क' सकै छी!
समकालीन मैथिली रंगमंच सभमे कोन मंच अपनेकें बेस संभावनाशील लगैत अछि?
नियमित रंगमंच केर संख्या धीरे-धीरे कम भ' गेल छै. कलकत्ताक अतिरिक्त दिल्ली आ पटनामे सक्रियता देखल जाइ छै. जाहिमे प्रकाश झा (मैलोरंग-दिल्ली) केर कार्य क्षमतासं विशेष आशा कएल जा सकैत अछि.
विभिन्न माध्यममे रंग्मंचक विकास हेतु देल जाएवला सरकारी सहायताक लाभ मैथिली रंगमंच कहां धरि उठा पबैत अछि?
सिवाय मैलोरंग, दिल्ली कें आर कोनो रंगमंच सरकारी सहायता नहि ल' पबैत अछि. कारण, कार्यकर्ता. सहायता पएबाक लेल ओकर बहुत रास नियम छै जकरा अनुपालन हेतु बहुत बेर पदाधिकारीसं संपर्क करय पड़ैत छै, जकरा लेल उपयुक्त व्यक्तिकें समय नहि भेटैत छनि. जीवन यापनसं जुड़ल लोक लेल सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक हेतु समर्पण कठिन होइ छै.
मैथिली रंगमंचक व्यवसायीकरणमे बाधक तत्व की सभ छै?
रंग्मंचक व्यवसायीकरणमे बाधक केओ नै छै. एकरा लेल चाही प्रयास आ अपसंस्कृतिक निवेश. उदाहरण लेल, कलकत्तामे बहुत रास थियेटर चलै छलै, जाइमे दूटा नृत्य (अपनृत्य) रहै छलै. एखन ओ नृत्य बन्न भेलासं सभटा थियेटर बन्न अछि. मात्र ग्रूप थियेटरक नाम पर किछु संस्था नाटक क' रहल अछि.
मैथिली रंग्मंचक किर्तनिया शैलीक वर्त्तमान अवस्था पर अपनेक की कहब अछि? मैथिली मंचक एहि पहिचान कें जिया क' राखब कतेक प्रयोजनीय?
इतिहासमे जाकर उल्लेख छै से अपने जीबै छै. समयक अनुसार दर्शक परिवर्तन चाहैत छै. पुरान वस्तु दर्शनीय रहि जाइ छै, उपभोगक नहि. ओकर उपयोग करबाक लेल ओकरामे नवीनता आनय पड़तैक. हूबहू वैह वस्तु नै रहतै. नाटकक बहुत रास शैली छलैक आ एखनो नव-नव शैली छै.
आधुनिक मैथिली रंगमंचमे गौरवशाली पृष्ठभूमिक अछैतहु कोलकाता सम्प्रति पछुआ गेल अछि. एकरा पुनः कोना अगुआएल जाए?
समय चक्रक प्रभाव. पहिलका समयकें सभ दिन नीक आ गौरवशाली कहल जाइत रहलइए. कहबी बनि गेल छै-ताइ दिन...एखन त'. ओहि समयक परिस्थिति आ समस्या कें ओहि तरहें देखल गेलैक. एखुनका समय अलग छै. एहिसं निदान पओला उत्तर आगामी पीढ़ी एकरा गौरवशाली मानतैक. तैं कार्य करैत रहब आवश्यक.
अपनेक निर्देशनमे अभिनय करैत एखन धरि के' सर्वाधिक प्रभावित केलनि अछि?
जे रंगमंच पर अभिनय करैत छथि से सब प्रभावित करैत छथि. तहिना प्रतिभा सबहक सामान नै होइ छै. क्षमताक आधार पर कलाकार भूमिका निमाहैत छथि. के' कम आ के' बेसी से कोना कहू! एकटा नाटकक प्रस्तुतिमे मंच पर वा नेपथ्यमे सब सहयोगीक योगदान हमरा प्रभावित करैत अछि. एहि ठाम ओहि उदाहरणकें लिय जे एक लुक्खी रामेश्वारक सेतु बान्हमे सहयोग केने रहनि आ राम प्रभावित भेल छलाह.
निर्देशनक क्षेत्रमे अपन अगिला खाढ़ी तैयार करबामे कहां धरि सफलता भेटल अछि?
ककरो ठाढ़ नै कएल जा सकै छै. मेधावी व्यक्ति अपने ठाढ़ भ' लगाम पकड़ि लै छथि. ओना बेसी मनुक्ख जिम्मेवारीसं दूर रहि प्रतिष्ठाक लालची होइए. कम क' बेसी पाबए चाहइए. निर्देशनक क्षमता रहितो सभ सदस्यकें समटिक' चलब कठिन होइ छै. निर्देशनक भार जे केओ उठओलनि अछि जे अपन क्षमता पर. हम कोना कहि सकै छियै जे हम बनओलिअनि.
मंच निर्देशनक क्षेत्रमे कोनो विशेष अनुभव जे कहि सकी?
प्रत्येक मंचन आ निर्देशनमे एकटा नव अनुभव होइ छै. अनुभवे त' निर्देशकक पूजी होइ छै. बहुत रास अनुभवक सार माथमे बैसि जाइ छै. किछु नीक, किछु बेजाए. किछु कहयवला आ किछु नै.
अपने कविता लिखैत छियै. संपर्कमे कविताक पाठ सेहो करैत छियै. किन्तु एखन धरि कविता सबहक प्रकाशन नहि भेल अछि. तकर की कारण?
असलमे संपर्कमे सभ साहित्यकार बैसैत छथि. देखांउसे हमहूँ लिखय लगलहुँ. संपर्कमे पढैत सेहो रहलहुं. ठाकुर जी (रामलोचन ठाकुर) कहितो छथि जे ई पुर्जी पर लिखै छथि. से हम 100सं बेसी कविता लिखने होयब आ से सभटा पुर्जी सभ मे राखल अछि. एकटा नीक संकलन भ' सकैत अछि. कहियो फुरयबो करैए मुदा आलसक कारणें एखन धरि अगुआएल नै अछि. दोसर बात जे कविता सं ना-यशक आकांक्षा सेहो नहि अछि जे कविता छपय आ ना होअय.
अपने स्वयं नाटक लिखबाक चेष्टा कहियो कएल अछि? जओं नहि त' किएक?
नाटक लिखबाक चेष्टा केलहुं. एकटा एकांकी लिखबो केलहुं. नाटको लिखि सकै छी. मुदा बात ई अछि जे अपने संस्था, अपने निर्देशक आ अपने लिखल नाटको रहय से हमरा नीक नै लगइए. इहो भय होइए जे लोक कहत जे हिनकर मोनोपोली भ' गेल छनि. यदि आन संस्था खेलाइत त' चेष्टा जरूर करितियैक. ओना दूटा हिन्दी नाटकक मैथिली अनुवाद (शरद जोशीक 'आन्हर आर हाथी' तथा शंकर शेषक 'चेहरे'क खोल नामे) केने छी. एकटा उपन्यास-अंश (कन्यादानक सभागाछीवला प्रसंग)क नाट्य रूपांतरण आ मंचन कएने छी.
कोलकाताक नाट्य संस्था कोकिल मंचक संस्थापक लोकनिमे अपने प्रमुख छी. ई संस्था रजत जयंती मनाबए जा रहल अछि. की योजना अछि?
रजत जयंती वर्षक कार्यक्रम घोषित अछि. 31 जनवरी आ 1 फरवरी 2015कें विद्यामंदिर प्रेक्षागृहमे आयोजन होयत. प्रयास छल जे बाहरसं नाट्यदल मंगायब आ चारिटा नाटकक प्रस्तुति करब. परन्तु प्रयोजनीय अर्थक व्यवस्थामे असफलतासं एकटा नाटकक मंचन भ' रहल अछि. गीतनादक संग उत्सवक आयोजन होयत.