सुनू दिमाग कहल संसार बड बढलै
जराउ दीप हियक अन्हार बड बढलै
कमाइ कम रहत कोना कँ चलतै की
कने विचार करू खेबार बड बढलै
सदति प्रयास करब आ हारि नै मानब
तँ जीत हैत सभक औजार बड बढलै
हँसी ठठामे रहि गेलहुँ बझल सभ क्यउ
किएक सोह रहत व्यापार बड बढलै
मसान साधि रहल राजीव जे सदिखन
तकर बिलमि कँ मुदा जयकार बड बढलै
— राजीव रंजन मिश्र