रोड़ा-खपटा काँट-कूशकेँ देख कतहु नै थमि जो
सत्त बाटपर चलैत-चलैत तूँ नीक बटोही बनि जो
जाहि बाटपर चलैत-चलैत एक पुरुख बनल महापुरुख
ओहि बाटक रज माँथ सटा कूदैत-फानैत तू चलि जो
सकदम भेने नै काज सफल हाथ-पएर चलाबऽ पड़तै
दू ठोप चुआ कऽ घाम सुधा तू जिनगी गमगम कऽ जो
तोरामे छौ शक्ति अपार छिड़िआएल मुदा छौ जहिं-तहिं
शक्ति संचित कऽ डेग बढ़ा लक्ष्य देखि कऽ तन तनि जो
जँ नै भेटतै कतहु बाधा तँ जिनगी निरस, मस्ती कहाँ?
कर बाधाकेँ चूर-चूर तू जिनगीक अर्थ बुझैत जो
— अमित मिश्र