कलकत्ता/ दड़िभंगा. मैथिली सिनेमाक इतिहासमे 'डमरु उस्ताद' भरिसक पहिल फ़ीचर फ़िल्म होयत जे एक संग तीन भाषा (मैथिली, भोजपुरी आ नेपाली) मे बनायल गेल अछि. श्री राम जानकी फ़िल्म्स बैनरक ई फ़िल्म मिथिला संस्कृति, माटि-पानिसं ओतप्रोत अछि जाहिमे फ़िल्ममे मिथिला समाजक सब पक्षकें समेटबाक एकटा सहज प्रयास कएल गेल अछि. परिवारिक फ़िल्म 'सिन्दुरदान'क बाद, डीडी 1 सं 21 बर्खसं जुड़ल स्थापित लेख़क आ निर्देशक अनूप कुमार केर ई दोसर निर्देशन छी. सुन्नर ओ आकर्षक स्थान पर फ़िल्माओल गेल ई फ़िल्म पुरुष प्रधान समाजमे अबला नारीक दयनीय स्थिति, त्याग, बलिदान, दया, शक्ति, महत्व आदि पर आधारित अछि. विश्वसनीय सूत्रसं प्राप्त सूचनाक आधार पर “डमरु उस्ताद”क डुगडुग्गी (सिनेमा हॉलमे प्रदर्शन) फ़रबरी 2014 मे सुनाइ पड़त.
फ़िल्मक कलाकारमे अनिल मिश्र, नेहाश्री (“भंवर”, “ठोर”, “साजन चले ससुराल”, “हमर सौतीन”क अभिनेत्री), शुभनारायण झा, कल्पना मिश्र, विजय मिश्र, मिस्टी सिंह (‘खुरलुच्ची’क अभिनेत्री), मीना (“हमर सौतीन” आ “घोघमे चान्द”क अभिनेत्री), नीलेश दीपक (“जंगला मंगला”क जंगला), संतोष झा (“छूटत नहिं प्रेमक रंग”क निर्देशक), स्नेहा (‘सिन्दुरदान’क दोसर लीड अभिनेत्री). एहि फ़िल्ममे संगीत द' रहल छथि लोकप्रिय गायक आ संगीतकार पवन नारायण.
“डमरु उस्ताद”मे अपन नीक अभिनयसं आह्लादित प्रसिद्ध रंगकर्मी आ अभिनेता शुभ नारायण झा कहैत छथि 'एहि फ़िल्ममे काज क’ हमरा बड्ड संतुष्टि भेटल अछि. हमरे नहि, शेष सब कलाकार अपन अभिनय, कथानक, चरित्रसं बड्ड संतुष्ट छथि. “फ़िल्मक सब कलाकार अपन-अपन चरित्रसं यथोचित न्याय केने छथि. फ़िल्मक मुख्य विषेषतामे सं एकटा अछि सर्वहारा मैथिल द्वारा बाजल जायबला मैथिलीक उत्कृष्ट प्रयोग. एखन धरि बनल मैथिली फ़िल्ममे प्रयुक्त भाषा सं हटि एहि फ़िल्ममे एहन भाषाक प्रयोग कएल गेल अछि जे मध्य मिथिलाक बाहर बाजल जायत अछि जाहि माध्यमसं मिथिला समाजके सब वर्ग कें प्राथमिकता देइत ओकरा जोड़बाक प्रशंसनीय प्रयास कएल गेल अछि. फ़िल्ममें अभिनयक अनुरूप ई बात कहबामे कोनो अतिशयोक्ति नहि जे “डमरु उस्ताद” अनिल मिश्र कें एकटा माजल अभिनेताक रूपमे नव पहिचान देत. आशा कएल जा रहल अछि जे एहि फ़िल्मक सफ़ल प्रदर्शनसं मैथिली सिनेमाक नव रूप देखबाक भेटत. (Report/Photo : भास्कर झा)