कविचूड़ामणि काशीकान्त मिश्र ‘मधुप’क पैतृक मधुबनी जिलाक कोइलख गाम छलनि. हिनक जन्म हिनक मातृक दरभंगा जिलाक कोर्थू गाम मे आश्विन शुक्ल पूर्णिमा (कोजगरा), मंगल दिन, 1314 साल तदनुसार 2 अक्टूबर 1906 कें भेल छलनि. हिनक पिता कीर्तिनाथ मिश्र, उच्चकुलीन ब्राह्मण छलाह जिनका छओ गोट विवाह छलनि. 'मधुप'क जन्म कीर्तिनाथ मिश्रक छठम पत्नी ‘भामादाइ’क कोखि सँ भेल रहनि. मधुपक बाल्यावस्था हिनक मातृक मे नाना लाल ठाकुरक देख-रेख मे बितलनि. ओतहि हिनक पढ़ाइ-लिखाइ सेहो आरंभ भेल जतय ई दू वर्ष धरि हिन्दी, गणित ओ मिथिलाक्षर सिखलनि. बाद मे नवादाक जयभद्र झा सँ हिन्दी ओ अंग्रेजीक शिक्षा भेटलनि. पं. नेवालाल झा सँ लघुकौमुदीक अध्ययन केलनि.
बारह बरखक उमेर मे पहिल बेर ई अपन पैतृक गेलाह. ओतए अध्यापक जयसिंह ठाकुरक देख-रेख मे ई भद्रकाली पाठशाला मे 1923 मे व्याकरणक प्रथमा परीक्षा द्वितीय श्रेणी सँ उत्तीर्ण भेलाह. एही पाठशाला मे हिनका सुरेन्द्र झा नामक छात्र सँ भेंट भेलनि जे बाद मे आचार्य सुरेन्द्र झा 'सुमन' नाम सँ मैथिली साहित्य जगत मे ख्यात भेलाह. मध्यमाक अध्ययन हेतु मधुप लोहना स्थित संस्कृत विद्यापीठ मे नामांकन करौलनि. मुदा विभिन्न पारिवारिक समस्या ओ अर्थाभावक कारणें एतय हिनक पढ़ाइ बाधित भऽ गेलनि. 1925 मे मध्यमा परीक्षा मे असफलताक बाद ई बैद्यनाथधामक बालानन्द ब्रह्मचारीक आश्रम मे पहुँचलाह जतय सँ 1926 मे मध्यमाक परिक्षा मे उत्तीर्ण भेलाह. 1928 मे आगाँक अध्ययन हेतु ई काशी गेलाह मुदा, स्वास्थ्य ठीक नहि रहने 1929 मे ओतयसँ घूमि अएलाह. एही अल्पावधिक काशी प्रवास मे हिनका कविवर सीताराम झा, ज्योतिषी बलदेब मिश्र, यात्री, किरण, आदि अग्रज ओ सहपाठी सँ सतसंग भेलनि जे बाद मे हिनक काव्य प्रतिभाक विकास मे सहायक भेलनि.
काशी सँ घुमलाक बाद ई पुनः आगाँक पढ़ाई करबा लेल लोहना विद्यापीठ गेलाह. मुदा, किछुए दिनक पश्चात हिनका पितृशोक भेलनि आ एकबेर फेर हिनकर पढ़ाई बाधित भेल. पिताक स्वर्गारोहणक बाद मधुप जी अपन मातृकेमे बसि गेलाह आ पुनः बैद्यनाथ धामक विद्यापीठसँ १९३३ई.मे साहित्यशास्त्री ओ १९३४ई.मे व्याकरणशास्त्रीक परीक्षामे सफलता प्राप्त केलाह. आचार्यक अध्ययन हेतु ई मुजफ्फरपुरक धर्मसमाज संस्कृति कॉलेजमे नामांकन करौलनि. ओतहि हिनका 'भुवन', आरसी प्रसाद सिंह आदि साहित्यकारसँ परिचय बढ़लनि. ओतय कविशेखर बदरीनाथ झा हिनक अध्यापक छलखिन. एतहिसँ मधुप'क काव्यधाराक प्रवाह जेना निर्वाध भऽ गेल. १९३६ई.मे साहित्य ओ १९३७ई.मे व्याकरणसँ आचार्य केलनि. १९३९ई.मे वेदान्त शास्त्रीमे सफलताक बाद ई सिमरा (मुजफ्फरपुर)क संस्कृत विद्यालयमे प्रधानाध्यापक पद पर नियुक्त भऽ गेलाह. १९३९ई.मे वेदान्त शास्त्रीक दोसर खण्डमे सफलताक संगहि हिनकर अध्ययन समाप्त भेल.
एहि बीच १९२७ ई.मे हिरणीक नन्दकिशोर चौधरीक भगिनी चन्द्रमुखी देवीसँ हिनक विवाह भेलनि. हिनकर मूल सासुर उमरी-बलिया छलनि एवं भागवत झा हिनक ससुर छलथिन. मधुप जीकेँ आठ गोट संतान , पाँच कन्या ओ तीन बालक भेलनि. १९४०ई.मे ई अपन गामक समीप जयानन्द उच्च विद्यालय बहेड़ामे संस्कृतक अध्यापकक रूपमे नियुक्त भेलाह. एतय सैंतिस बरखक सेवाक बाद ५ अप्रैल १९७७केँ सेवा निवृत भेलाह. बहेड़ा हाई-स्कुलक वातावरणमे हिनक काव्य-प्रतिभाक अद्भुत विकास भेलनि.
कांचीनाथ झा 'किरण' द्वारा चलाओल जा रहल हस्तलिखित पत्रिका 'मैथिली सुधाकर'मे हिनकर सर्वप्रथम 'मधुप'क उपनामसँ रचना प्रकाशित भेल छल. एहिसँ पूर्व 'सुमन' जीक संग पत्राचारक क्रममे ई 'मधुप' उपनामक सर्वप्रथम प्रयोग कएने छलाह. मैथिली भाषाकेँ हिन्दीक संक्रमणसँ बचेबाक लेल एवं एकर लोकप्रियता बढ़ेबाक हेतु मधुप जी साहित्य-समाजक उपहासक बादो 'अलि' छद्मनामसँ फिल्मी भासपर गीत लिखलनि जे अत्यंत लोकप्रिय भेल आ 'पचमेर' संग्रहमे प्रकाशित भेल. मुदा, हिनकर ई छद्मनाम बेसी छपित नहि रहि सकल.
बादमे ई 'मधुप' उपनामसँ परंपरागत ओ नवीन शैलीमे अगणित गीत, कविता, अनेक कथाकाव्य, खण्डकाव्य ओ प्रबंधकाव्य’क रचना कएलनि. हिनकर करीब तीस गोट प्रकाशित-अप्रकाशित पोथी छनि जाहिमे, राधाविरह, मुक्त-मधुप (महाकाव्य), द्वादशी (कथा-काव्य), अपूर्व रसगुल्ला, टटका जिलेबी, पचमेर, गीत-मंजरी, चौंकि-चुप्पे, विदागीत, (गीत-संग्रह), शतदल, झांकार, गंगा तरंगावली, मधुप शप्तशती, परिचय शतक (मुक्तक काव्य), प्रेरणा-पुञ्ज (संस्मरण), ओ दुर्गा सप्तशती मैथिली सुधा (अनुवाद) किछु प्रमुख पोथी थिकनि. राधा-विरह पर हिनका १९७०ई.मे साहित्य अकादमी सम्मान भेटलनि. एकर अलावे हिनका कतिपय पुरस्कार भेटलनि. प्रायः १९४८-४९ई.क मैथिली महासभाक सहरसा अधिवेशनमे हिनका द्वारा राधाविरहक पाठसँ आह्लादित भऽ तत्कालीन राजपण्डित स्व. बलदेव मिश्र हिनका कविचूड़ामणि'क उपाधिसँ विभूषि कएने छलाह.
मैथिली काव्य-साहित्यक इतिहासमे कविचूड़ामणि काशीकान्त मिश्र 'मधुप'क काव्यक लोकप्रियता कविपति विद्यापतिक बाद प्रायः सर्वाधिक अछि. मधुप जी विशुद्ध रूपेँ कवि छलाह. हिनका पद्य लिखब सर्वाधिक रूचैत छल. गद्यलेखन हिनका कहियो नहि सोहेलनि. मधुपजीक विशिष्टता छल जे ई पत्राचारो कवितेक माध्यमसँ करैत छलाह. हिनक कविता सभमेँ एकहि संग संस्कृतनिष्ठ ओ ठेठ शब्दाबलीक विलक्षण प्रयोग भेटैत अछि. हिनकर रचित काव्य-संसार भाषा ओ विषय-विविधताक विशाल भंडार अछि. 'मधुप'क सम्मोहक व्यक्तित्व ओ कृतित्वक प्रभाव हिनकर परवर्ती साहित्यकार लोकनिपर सेहो पड़ल अछि. मणिपद्म, बहेड़, अणु, किसुन, अमर आदि स्वयं स्वीकार कएने छथि जे ओ लोकनि हिनके प्रेरणासँ मैथिली रचना दिस प्रवृत भेलाह.
ई हिनक मातृभूमि ओ मातृभाषाक अनुरागेक परिणाम छल जे संस्कृत ओ हिन्दीक क्षमतावाद साहित्यविद रहितहुँ ई मिथिला-मैथिलीक सर्वांगिण विकास हेतु सदैव अपन लेखनीक संग तत्पर रहलाह. अपन कवि-व्यक्तित्वक बिनु परबाहे मैथिलीक घर-घर प्रचार हेतु फिल्मी तर्जपर गीत लिखैत रहलाह. मधुप जीक व्यक्तित्वमे एकहि संग परंपरा ओ प्रगतिवादक छाप भेटैत छल. संस्कृति-संस्कारक रक्षाक पक्षधर मधुप नहिए परंपराक अंधभक्त छलाह आ नहिए आधुनिकताक. समयक अनुरूप आचार-विचारकेँ बदलब हिनक प्रवृति छल. तहिना हिनकर साहित्यहुँमे एकदिस जतय पारंपरिक छन्द-शास्त्रक बेजोड़ प्रयोग भेटैत अछि ओतहि दोसरदिस मुक्तक, गद्यकाव्य, गजल, आदि नव-नव काव्य विधानक अनुशरण सेहो भेटैत अछि.
मधुप जी वस्तुतः एकटा एहन आशुकवि छलाह जिनका कविता लिखबाक हेतु समय, स्थान, कि वातावरण आदिक जरूरति नहि पड़ैत छलनि. ओ स्वयं अपना हिसाबेँ तकर निर्माण करैत छलथि. मधुपक साहित्य साधना आम जनता लेल समर्पित छल. समकालीन कविक मध्य 'मधुप' एकमात्र कवि भेलाह जिनकर रचना आम ओ खास दुनू वर्गमे समान रूपेँ सम्मानित भेल. हिनकर काव्यक लोकप्रियता देखि हिनका 'अभिनव विद्यापति' कहल जाए लगलनि. करुणरसक एहि रससिद्ध कवि व्यक्तित्व ओ कृतित्व दुनूमे विविध रस-भण्डार भेटैत अछि.
मिथिला ओ मैथिलीक एहि कवि, गीतकार, अनुवाद, महाकवि, गजलकार, भक्त, चिन्तक, सुधारक ओ मैथिली आंदोलनक एकटा कर्मठ सिपाही कविचूड़ामणि काशीकान्त मिश्र 'मधुप'क जीवन यात्रा पूर्णिमासँ आरंभ भए अमावस्या धरि पहुँचलनि जखन ओ पूसमास, रवि,१३९५ साल, तदनुसार २० दिसंबर १९८७ई.क कारी रातिमे अपन नश्वर शरीरकेँ त्याग कएलनि. आइ हुनक २७म पुण्यतिथिपर हुनका कोटि-कोटि श्रद्धां सुमन अर्पित करैत छी.
— चंदन कुमार झा
— चंदन कुमार झा