दुर्गा पूजा प्रमुख पावनि अछि. शक्ति उपासना केर महान उत्सव कें दशमी, दशहरा वा नवरात्र सेहो कहल जाइत अछि. नौ दिन माँ शक्ति केर नौ रूप केर आराधनाक बाद दशम दिन विजयादशमीक रूप मे मनाओल जाइत अछि. बंगालक दुर्गा पूजा बेस नामी अछि त' गुजरात केर डांडिया लोकक धियान आकर्षित करैत अछि. शक्तिक उपासक मिथिला मे ई पावनि बेस विधिपूर्वक कयल जाइत अछि.
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्द्वकृत शेखराम।
वृषारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम॥
श्री दुर्गा केर प्रथम रूप श्री शैलपुत्री छनि. पर्वतराज हिमालय केर धिया छथि तें शैलपुत्री कहल जाइत छनि. नवरात्र केर प्रथम दिन हिनक पूजा ओ आराधना कयल जाइत छनि. हिनक आराधना सं मनोवांछित फल प्राप्त होइछ.
> दोसर दिन माता ब्रह्मचारिणी केर आराधना
“दधना कर पद्याभ्यांक्षमाला कमण्डलम।
देवी प्रसीदमयी ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥“
श्री दुर्गा केर दोसर रूप श्री ब्रह्मचारिणी छनि. ई भगवान शंकर कें पति रूप मे प्राप्त करबाक लेल घोर तपस्या कयने छलीह. नवरात्रि केर दोसर दिन हिनक पूजा-अर्चना कयल जाइत छनि. जे दुनू कर-कमल मे अक्षमाला एवं कमंडल धारण करैत छथि. माँ ब्रह्मचारिणी सदैव अपन भक्त पर कृपादृष्टि रखैत छथि.
> तेसर दिन माता चंद्रघंटा केर पूजा
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैयुता।
प्रसादं तनुते मद्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
श्री दुर्गा केर तृतीय रूप श्री चंद्रघंटा छनि. इनके मस्तक पर घंटा आकार केर अर्धचंद्र छनि. नवरात्रि केर तृतीय दिन हिनक पूजन कयल जाइत अछि. हिनक पूजन सं साधक कें मणिपुर चक्र कें जाग्रत होयबाक सिद्धि स्वतः प्राप्त होइत अछि आ सांसारिक कष्ट सं मुक्ति भेटैत अछि. हिनक आराधना सं मनुक्ख केर हृदय सं अहंकार केर नाश होइत अछि. माँ चन्द्रघण्टा वैभव तथा ऐश्वर्य प्रदान करैत छथि.
> चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा
”सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधानाहस्तपद्याभ्यां कुष्माण्डा शुभदास्तुमे॥“
श्री दुर्गा केर चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा छनि. अपन उदर सं अंड अर्थात् ब्रह्मांड कें उत्पन्न करबाक कारण सं हिनका कूष्मांडा देवी कहल जाइत छनि. नवरात्रि केर चतुर्थ दिन हिनक पूजा कायल जाइत छनि. श्री कूष्मांडा केर उपासना सं हृदय कें शांति एवं लक्ष्मी केर प्राप्ति होइछ.
> पंचम स्कंदमाता
सिंहासनगता नित्यं पद्याञ्चितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
श्री दुर्गा केर पंचम रूप श्री स्कंदमाता छनि. श्री स्कंद (कुमार कार्तिकेय) केर माय होयबाक कारणें हिनका स्कंदमाता कहल जाइत अछि. नवरात्रिक पंचम दिन हिनक पूजा आ आराधना कयल जाइत अछि. सिंह केर आसन पर विराजमान तथा कमल केर पुष्प सं सुशोभित यशस्विनी देवी स्कन्दमाता शुभदायिनी छथि. हिनक विग्रह मे भगवान स्कंद बालरूप मे कोरा मे विराजित छथि. माय कें चारि हाथ छनि. हिनक वर्ण एकदम शुभ्र छनि. ई कमल आसन पर विराजमान छथि तें हिनका पद्मासना सेहो कहल जाइत अछि. सिंह हिनक वाहन छनि. हिनक उपासना सं सभ इच्छा पूर्ण होइत अछि.
> छठम माँ कात्यायनी
चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानव घातिनी॥
श्री दुर्गा केर षष्ठम् रूप श्री कात्यायनी अछि. महर्षि कात्यायन केर तपस्या सं प्रसन्न भ' आदिशक्ति हुनका ओतय पुत्री रूप में जनम लेलनि. तें कात्यायनी कहबैत छथि. हिनक आराधना सं भक्त केर सभ काज सरल एवं सुगम भ' जाइत अछि. चन्द्रहास नामक तलवार केर प्रभाव सं हिनक हाथ चमकैत रहित अछि. श्रेष्ठ सिंह हिनक वाहन छनि.
वृषारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम॥
श्री दुर्गा केर प्रथम रूप श्री शैलपुत्री छनि. पर्वतराज हिमालय केर धिया छथि तें शैलपुत्री कहल जाइत छनि. नवरात्र केर प्रथम दिन हिनक पूजा ओ आराधना कयल जाइत छनि. हिनक आराधना सं मनोवांछित फल प्राप्त होइछ.
> दोसर दिन माता ब्रह्मचारिणी केर आराधना
“दधना कर पद्याभ्यांक्षमाला कमण्डलम।
देवी प्रसीदमयी ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥“
श्री दुर्गा केर दोसर रूप श्री ब्रह्मचारिणी छनि. ई भगवान शंकर कें पति रूप मे प्राप्त करबाक लेल घोर तपस्या कयने छलीह. नवरात्रि केर दोसर दिन हिनक पूजा-अर्चना कयल जाइत छनि. जे दुनू कर-कमल मे अक्षमाला एवं कमंडल धारण करैत छथि. माँ ब्रह्मचारिणी सदैव अपन भक्त पर कृपादृष्टि रखैत छथि.
> तेसर दिन माता चंद्रघंटा केर पूजा
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैयुता।
प्रसादं तनुते मद्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
श्री दुर्गा केर तृतीय रूप श्री चंद्रघंटा छनि. इनके मस्तक पर घंटा आकार केर अर्धचंद्र छनि. नवरात्रि केर तृतीय दिन हिनक पूजन कयल जाइत अछि. हिनक पूजन सं साधक कें मणिपुर चक्र कें जाग्रत होयबाक सिद्धि स्वतः प्राप्त होइत अछि आ सांसारिक कष्ट सं मुक्ति भेटैत अछि. हिनक आराधना सं मनुक्ख केर हृदय सं अहंकार केर नाश होइत अछि. माँ चन्द्रघण्टा वैभव तथा ऐश्वर्य प्रदान करैत छथि.
> चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा
”सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधानाहस्तपद्याभ्यां कुष्माण्डा शुभदास्तुमे॥“
श्री दुर्गा केर चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा छनि. अपन उदर सं अंड अर्थात् ब्रह्मांड कें उत्पन्न करबाक कारण सं हिनका कूष्मांडा देवी कहल जाइत छनि. नवरात्रि केर चतुर्थ दिन हिनक पूजा कायल जाइत छनि. श्री कूष्मांडा केर उपासना सं हृदय कें शांति एवं लक्ष्मी केर प्राप्ति होइछ.
> पंचम स्कंदमाता
सिंहासनगता नित्यं पद्याञ्चितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
श्री दुर्गा केर पंचम रूप श्री स्कंदमाता छनि. श्री स्कंद (कुमार कार्तिकेय) केर माय होयबाक कारणें हिनका स्कंदमाता कहल जाइत अछि. नवरात्रिक पंचम दिन हिनक पूजा आ आराधना कयल जाइत अछि. सिंह केर आसन पर विराजमान तथा कमल केर पुष्प सं सुशोभित यशस्विनी देवी स्कन्दमाता शुभदायिनी छथि. हिनक विग्रह मे भगवान स्कंद बालरूप मे कोरा मे विराजित छथि. माय कें चारि हाथ छनि. हिनक वर्ण एकदम शुभ्र छनि. ई कमल आसन पर विराजमान छथि तें हिनका पद्मासना सेहो कहल जाइत अछि. सिंह हिनक वाहन छनि. हिनक उपासना सं सभ इच्छा पूर्ण होइत अछि.
> छठम माँ कात्यायनी
चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानव घातिनी॥
श्री दुर्गा केर षष्ठम् रूप श्री कात्यायनी अछि. महर्षि कात्यायन केर तपस्या सं प्रसन्न भ' आदिशक्ति हुनका ओतय पुत्री रूप में जनम लेलनि. तें कात्यायनी कहबैत छथि. हिनक आराधना सं भक्त केर सभ काज सरल एवं सुगम भ' जाइत अछि. चन्द्रहास नामक तलवार केर प्रभाव सं हिनक हाथ चमकैत रहित अछि. श्रेष्ठ सिंह हिनक वाहन छनि.
मिथिला भरि मे बेलनत्ती: षष्ठी कें मिथिला भरि मे बेल नओतल जाइत अछि. पूजन अनुष्ठान केर संग बेल नओतल जाइत अछि. आ फेर अगिला भोरहरबा मे बेल तोडि क' आनल जाइत अछि आ दुर्गा प्रतिमा केर सोलहो श्रृंगार कयल जाइत अछि. एकर बादे मायक पट भक्त लेल फुजैत अछि. एहि कें बादे पूजन उत्सव मे बदलि जाइत अछि.
> सप्तमी कें श्री कालरात्रि केर पूजन
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
श्री दुर्गा केर सप्तम रूप श्री कालरात्रि छनि. ई काल केर नाश करयबाली छथि. नवरात्रि केर सप्तम दिन हिनक पूजा आ अर्चना कयल जाइत अछि. एहि दिन साधक कें अपन चित्त भानु चक्र (मध्य ललाट) मे स्थिर क' साधना करबाक चाही. ई भगवती सभ दुःख-संताप हरण करयबाली छथि.
> महाष्टमीक दिन महागौरी केर पूजा
या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
महाष्टमीक दिन महागौरी केर पूजा केर विशेष विधान अछि. मां गौरी कें शिव केर अर्धागनी आ गणेश केर माय रूप मे चिन्हल जाइत अछि. महागौरी केर शक्ति अमोघ आ सद्यः फलदायिनी अछि. हिनक उपासना सं पूर्वसंचित पाप सेहो विनष्ट भ' जाइत अछि. भगवती महागौरी वृषभ केर पीठ पर विराजमान छथि, जिनक मस्तक पर चन्द्र केर मुकुट छनि. अपन चारि भुजा मे शंख, चक्र, धनुष आ बाण धारण कयने छथि. महाष्टमी कें पूजनोत्सव केर अलगे धूम रहैत अछि.
> अंतिम स्वरूप श्री सिद्धिदात्री
सिद्धगंधर्वयक्षादौर सुरैरमरै रवि।
सेव्यमाना सदाभूयात सिद्धिदा सिद्धिदायनी॥
श्री दुर्गा केर नवम् रूप श्री सिद्धिदात्री अछि. ई सभ प्रकारक सिद्धि देबयबाली छथि. सिद्धिदात्री केर कृपा सं मनुष्य सभ प्रकारक सिद्धि प्राप्त क' मोक्ष पयबाक मे सफल होइत अछि. मार्कण्डेयपुराण मे अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व एवं वशित्वये आठ सिद्धि कहल गेल अछि. भगवती सिद्धिदात्री उपरोक्त संपूर्ण सिद्धि अपन उपासक कें प्रदान करैत अछि. माँ दुर्गा केर एहि अंतिम स्वरूप केर आराधनाक संगहि नवरात्र केर अनुष्ठानक समापन होइत अछि.
विजयादशमी : दशमीक दिन त्योहारक समापन होइत अछि. एकरा विजयादशमी कहल जाइत अछि. एहि दिन मिथिला कें छोडि देशक आन भाग मे रावणक पुतला जड़ाओल जाइत अछि. एही दिन भगवान राम राक्षस रावण केर वध क' मिथिलाक धिया सिया कें मुक्त करओने छलाह.
> सप्तमी कें श्री कालरात्रि केर पूजन
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
श्री दुर्गा केर सप्तम रूप श्री कालरात्रि छनि. ई काल केर नाश करयबाली छथि. नवरात्रि केर सप्तम दिन हिनक पूजा आ अर्चना कयल जाइत अछि. एहि दिन साधक कें अपन चित्त भानु चक्र (मध्य ललाट) मे स्थिर क' साधना करबाक चाही. ई भगवती सभ दुःख-संताप हरण करयबाली छथि.
> महाष्टमीक दिन महागौरी केर पूजा
या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
महाष्टमीक दिन महागौरी केर पूजा केर विशेष विधान अछि. मां गौरी कें शिव केर अर्धागनी आ गणेश केर माय रूप मे चिन्हल जाइत अछि. महागौरी केर शक्ति अमोघ आ सद्यः फलदायिनी अछि. हिनक उपासना सं पूर्वसंचित पाप सेहो विनष्ट भ' जाइत अछि. भगवती महागौरी वृषभ केर पीठ पर विराजमान छथि, जिनक मस्तक पर चन्द्र केर मुकुट छनि. अपन चारि भुजा मे शंख, चक्र, धनुष आ बाण धारण कयने छथि. महाष्टमी कें पूजनोत्सव केर अलगे धूम रहैत अछि.
> अंतिम स्वरूप श्री सिद्धिदात्री
सिद्धगंधर्वयक्षादौर सुरैरमरै रवि।
सेव्यमाना सदाभूयात सिद्धिदा सिद्धिदायनी॥
श्री दुर्गा केर नवम् रूप श्री सिद्धिदात्री अछि. ई सभ प्रकारक सिद्धि देबयबाली छथि. सिद्धिदात्री केर कृपा सं मनुष्य सभ प्रकारक सिद्धि प्राप्त क' मोक्ष पयबाक मे सफल होइत अछि. मार्कण्डेयपुराण मे अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व एवं वशित्वये आठ सिद्धि कहल गेल अछि. भगवती सिद्धिदात्री उपरोक्त संपूर्ण सिद्धि अपन उपासक कें प्रदान करैत अछि. माँ दुर्गा केर एहि अंतिम स्वरूप केर आराधनाक संगहि नवरात्र केर अनुष्ठानक समापन होइत अछि.
विजयादशमी : दशमीक दिन त्योहारक समापन होइत अछि. एकरा विजयादशमी कहल जाइत अछि. एहि दिन मिथिला कें छोडि देशक आन भाग मे रावणक पुतला जड़ाओल जाइत अछि. एही दिन भगवान राम राक्षस रावण केर वध क' मिथिलाक धिया सिया कें मुक्त करओने छलाह.