मंगल गाबू सभ सखि मिलिकें, माधब झुलि रहल पलना।
भरि-भरि थारी कनक लुटाबू यशोदा माय जनल ललना।।
मंगल गाबू ......
मगन मुदित सभ घर-बारी आ नाचि रहल छथि नर नारी।
रूप जेना बैकुण्ठ सजओल, चमकि रहल बड घर-अंगना !!
मंगल गाबू ......
नन्द बाबा लूटबथि दुनू हाथे, रतन जवाहर, हीरा, पन्ना।
निहुँछि-निहुँछि लाला कें यशुदा, बाँटि रहल छथि कर-कंगना।।
मंगल गाबू ......
नारद, शारद, शिव, चतुरादिक, गाबि रहल छथि मंगल स्तुति।
बिहुँसि रहल छथि विष्णुप्रिया स्वयम देखि मुदित अनुपम रचना।।
मंगल गाबू ........
'राजीव' गाबथि खूब बधइया, खण रभसथि खण झमा खसथि।
चाह ने कनिको हीरा मानिकक, पाबि गेला सभ मुँहबजना।।
मंगल गाबू ..........
— राजीव रंजन मिश्र