हे विद्या-बुद्धि सपन्न मैथिल! मिथिला-सांस्कृतिक श्रॄंगार करू।
मिथिला ज्ञान विज्ञानक भूमि, छी सिद्ध साधकक तपो भूमि
हे गौतम, वशिष्ठ, कणाद सपूत! प्रगति-पथ आविष्कार करू।
मिथिला नीति राजनीतिक भूमि, छी स्वच्छ सुनेतृत्वक भूमि
हे सहॄदय स्वच्छ मानस मैथिल! सतत सामाजिक सुधार करू।
मिथिला आत्म अध्यात्मिक भूमि, छी अनुपम, मनोहर भूमि
हे गहन अध्ययनरत जनकपुत्र! निरन्तर आर्थिक सुधार करू।
मिथिला अमिट संस्कारक भूमि, छी चिन्तित चिता पर भूमि
हे चीर निन्द्रामे सूतल मैथिल! जागृत मानसिक विचार करू।
मिथिला अन्न धन-धान्यक भूमि, छी महापुरुषक कर्म भूमि
हे मरुभूमिमे लोटल मैथिल! महत मातॄभूमि पर उपकार करू।
मिथिला मंडन अयाचीक भूमि, छी वाचस्पति विद्यापतिक भूमि
हे बिसरल अवचेतन मैथिल! निज मैथिली चेतना संचार करू।
— भास्कर झा