मिथिलाक समृ्द्ध परंपरा आ संस्कृति आधारित झाँकी दिल्लीक गणतंत्र दिवस
परेडमे बिहार सरकार द्वारा प्रदर्शित करबाक परंपरा कोनो नव नहि अछि. एहन
पूर्वहुमे अनेक बेर भेल छैक आ हालमे जे धेयान मे अबैत अछि ताहिमे २०१०मे
भागलपुरिया सिल्क कला, २०१२मे धरहराक वृक्षारोपण आ २०१३ मे मिथिलाक मूज
(सिकी) कला तऽ अछि एकर अलावे प्रायः २००७ वा ०८ मे मिथिला पेन्टिंग आधारित
झाँकी आ ताही आसपासमे मिथिलाक लोकनृत्य यथा, सामा-चकेबापर आधारित झाँकी
सेहो देखाओल गेल छल. जओ हमर स्मरणशक्ति धोखा नहि दऽ रहल अछि तऽ सामा चकेबा
राबड़ी देवी सरकारक समएमे प्रदर्शित कएल गेल छल. निश्चिते एहिसँ पूर्वहु
मिथिलाक लोककला एहि परेडमे जगह बनौने होयत. राजनीतिसँ फराक बिहारक विवशता
सेहो छैक जे ओ मिथिलाक कला-संस्कृतिकेँ नकारि अपन स्वतंत्र सांस्कृतिक आधार
ठाढ़ नहि कऽ सकैत अछि. जँ आइ हमर सभक भाषा, कला कि सांस्कृतिक पहिचानकेँ
बिहार सरकार द्वारा टारल वा टारबाक प्रयास कएल जा रहल अछि तऽ तकर पाछाँ हमर
सभक अपन उदासीनताक बेसी दोख अछि. इतिहास गबाह छैक जे जहिया कहियो हम सभ
कनियो साकांक्ष भेलहुँ हमरा सभकेँ अपन अधिकार आ उचित मान-सनमान भारते नहि
विश्व पटलपर भेटल अछि. जखन हम अहाँ स्वयं अपन माटि-पानि आ ओकर गुण-अवगुणक
प्रति साकांक्ष नहि रहब तखन फेर दोसरसँ एहिमादेँ कोनो अपेक्षा राखब व्यर्थ
होयत.
एहि बेरक गणतंत्र दिवसपर परेडमे प्रदर्शित बिहारक झांकीमे मिथिलाक कला संग मैथिली गीत बजैत छल, जे आनंद सृजित कयलक. पछिला बेर एहन नहि भेल छल. झांकी मिथिला व्यवहार केर आ गीत भोजपुरी बजैत छल! अचंभित कयने छल. हद तखन भेल जखन एकर विरोधमे मैथिल मुहँ दबने रहि गेल. रूपेश त्योंथ द्वारा सोशल साइट आ ब्लॉग पर उठाओल प्रश्न अपर्याप्त छल तथापि प्रभावी रहल. पछिला बेर एकजुट विरोध नहि भेने खटकब स्वाभाविक. एहन तरहक विरोधक स्वर आनोआन ठामसँ आयब अपेक्षित छल. पहिने बांग्ला फेर हिन्दी आ आब भोजपुरी हमरा सभक सामाजिक-सांस्कृतिक आ साहित्यिक परंपरा ओ धरोहरकेँ हरपय चाहैत अछि. कारण छैक जे हमर अहाँक अपेक्षा ओ सभ विपन्न छैक मुदा, ईहो सत्य जे ओ सभ अपन समृद्धिक प्रति हमरा अहाँसँ बेसी सजग अछि आ तेँ जहाँ कनियो कोनो बाट देखाइ छैक, झपट्टा मारबाक लेल चौंचक रहैत अछि. बहुत लोक आब एहि बातसँ असहमति प्रकट कऽ सकैत छथि जे बांग्ला आ हिन्दी, हमरा अहाँक अपेक्षा विपन्न नहि अछि. हं ....आब ई दुनू भाषा-संस्कृति, मैथिलीसँ बहुत आगाँ निकलि गेल अछि लेकिन से अपन सजगता आ कर्मठतासँ, माए, माटि आ ओकर संस्कारक प्रति अपन अनुरागसँ. हम अहाँ पाछाँ छुटि गेलहु, अपन अकर्मण्यतासँ, फुसियाहिक गौरवसँ. मुदा, एखनो हमर अहाँक पुरखा ततेक अरजि गेल छथि जे जँ मात्र तकरे आरि-कोण बना-सोना लेब तऽ ककरो सँ बेसी नमहर चास भऽ जाएत. सभ विपन्नता आ दरिद्रता दूर भऽ जाएत. मुदा से हो तऽ कोना? एहिठाम तऽ मुण्डे-मुण्डे मतिर्भिन्ना.... हम सबतऽ आरि छँटय बला लोक छी. अरारि करऽ बला लोक छी. बाटपर काँट गारय बला छी.
मैथिली झाँकीक संग मैथिली गीत बाजब स्वाभाविक छैक कोनो अतिशयोक्ति नहि मुदा जखन मैथिली-मिथिला संस्कृति आधारित झाँकीमे भोजपुरी गीत बजैत छैक तऽ ओ मात्र एकटा भूलचूक कि संयोग नहि छैक. ओ षडयंत्र छैक. मैथिलीक स्वतंत्र अस्तित्वके नकारबाक छुद्र प्रयास छैक. मुदा हमसब चुप रहैत छी। टुकुर-टुकुर तकैत रहैत छी. जखन हमर सभक चास-बासमे ककरो अनकर निमूधन माल-जाल अनायासे चलि जाइत अछि, खड़रल-बहारल दलान-खरिहान मे खुरदाउन कऽ देइत अछि आ'कि ककरो अबोध बालक अनायासे ककरो आम-अनरनेबा गाछपर झटहा फेक देइत छैक तऽ बिना कोनो विषेश क्षतियोकेँ ओहि अबोध-निमूधनकेँ दण्डित करबाक हेतु ओकर कुल-खनदानकेँ उकटैत, बेटी-रोटी गरियबैत आ भाला-गराँस निकालैत हमरा सभकेँ कनियो देरी नहि लगैत अछि मुदा जखन अपन मातृभूमि, मातृभाषा आ पारंपरिक संस्कार-संस्कृतिक संग जखन बलात्कार होइत अछि तखन हम सब गबदी मारने रहैत छी. एक दोसराक बकर-बकर मुँह तकैत रहैत छी. जँ केयो आगू आबियो जाइछ कदाचित तऽ फेर ओकर खिधांस करैत छी। मिथिला-मैथिलीक सम्मानसँ हमरा सभकेँ गौरवान्वित होयब स्वाभाविक अछि. मिथिला-मैथिलीक अस्मिताक सम्मान समस्त मैथिलक अधिकार अछि मुदा, अधिकारक संग कर्तव्यपरायणता सेहो हेबाक चाही. कोनो कर्तव्यनिष्ठेक मुँहसँ अधिकारक माँग नीक लगैत छैक आ नीक जकाँ सुनलो जाइत छैक. — चन्दन कुमार झा
एहि बेरक गणतंत्र दिवसपर परेडमे प्रदर्शित बिहारक झांकीमे मिथिलाक कला संग मैथिली गीत बजैत छल, जे आनंद सृजित कयलक. पछिला बेर एहन नहि भेल छल. झांकी मिथिला व्यवहार केर आ गीत भोजपुरी बजैत छल! अचंभित कयने छल. हद तखन भेल जखन एकर विरोधमे मैथिल मुहँ दबने रहि गेल. रूपेश त्योंथ द्वारा सोशल साइट आ ब्लॉग पर उठाओल प्रश्न अपर्याप्त छल तथापि प्रभावी रहल. पछिला बेर एकजुट विरोध नहि भेने खटकब स्वाभाविक. एहन तरहक विरोधक स्वर आनोआन ठामसँ आयब अपेक्षित छल. पहिने बांग्ला फेर हिन्दी आ आब भोजपुरी हमरा सभक सामाजिक-सांस्कृतिक आ साहित्यिक परंपरा ओ धरोहरकेँ हरपय चाहैत अछि. कारण छैक जे हमर अहाँक अपेक्षा ओ सभ विपन्न छैक मुदा, ईहो सत्य जे ओ सभ अपन समृद्धिक प्रति हमरा अहाँसँ बेसी सजग अछि आ तेँ जहाँ कनियो कोनो बाट देखाइ छैक, झपट्टा मारबाक लेल चौंचक रहैत अछि. बहुत लोक आब एहि बातसँ असहमति प्रकट कऽ सकैत छथि जे बांग्ला आ हिन्दी, हमरा अहाँक अपेक्षा विपन्न नहि अछि. हं ....आब ई दुनू भाषा-संस्कृति, मैथिलीसँ बहुत आगाँ निकलि गेल अछि लेकिन से अपन सजगता आ कर्मठतासँ, माए, माटि आ ओकर संस्कारक प्रति अपन अनुरागसँ. हम अहाँ पाछाँ छुटि गेलहु, अपन अकर्मण्यतासँ, फुसियाहिक गौरवसँ. मुदा, एखनो हमर अहाँक पुरखा ततेक अरजि गेल छथि जे जँ मात्र तकरे आरि-कोण बना-सोना लेब तऽ ककरो सँ बेसी नमहर चास भऽ जाएत. सभ विपन्नता आ दरिद्रता दूर भऽ जाएत. मुदा से हो तऽ कोना? एहिठाम तऽ मुण्डे-मुण्डे मतिर्भिन्ना.... हम सबतऽ आरि छँटय बला लोक छी. अरारि करऽ बला लोक छी. बाटपर काँट गारय बला छी.
मैथिली झाँकीक संग मैथिली गीत बाजब स्वाभाविक छैक कोनो अतिशयोक्ति नहि मुदा जखन मैथिली-मिथिला संस्कृति आधारित झाँकीमे भोजपुरी गीत बजैत छैक तऽ ओ मात्र एकटा भूलचूक कि संयोग नहि छैक. ओ षडयंत्र छैक. मैथिलीक स्वतंत्र अस्तित्वके नकारबाक छुद्र प्रयास छैक. मुदा हमसब चुप रहैत छी। टुकुर-टुकुर तकैत रहैत छी. जखन हमर सभक चास-बासमे ककरो अनकर निमूधन माल-जाल अनायासे चलि जाइत अछि, खड़रल-बहारल दलान-खरिहान मे खुरदाउन कऽ देइत अछि आ'कि ककरो अबोध बालक अनायासे ककरो आम-अनरनेबा गाछपर झटहा फेक देइत छैक तऽ बिना कोनो विषेश क्षतियोकेँ ओहि अबोध-निमूधनकेँ दण्डित करबाक हेतु ओकर कुल-खनदानकेँ उकटैत, बेटी-रोटी गरियबैत आ भाला-गराँस निकालैत हमरा सभकेँ कनियो देरी नहि लगैत अछि मुदा जखन अपन मातृभूमि, मातृभाषा आ पारंपरिक संस्कार-संस्कृतिक संग जखन बलात्कार होइत अछि तखन हम सब गबदी मारने रहैत छी. एक दोसराक बकर-बकर मुँह तकैत रहैत छी. जँ केयो आगू आबियो जाइछ कदाचित तऽ फेर ओकर खिधांस करैत छी। मिथिला-मैथिलीक सम्मानसँ हमरा सभकेँ गौरवान्वित होयब स्वाभाविक अछि. मिथिला-मैथिलीक अस्मिताक सम्मान समस्त मैथिलक अधिकार अछि मुदा, अधिकारक संग कर्तव्यपरायणता सेहो हेबाक चाही. कोनो कर्तव्यनिष्ठेक मुँहसँ अधिकारक माँग नीक लगैत छैक आ नीक जकाँ सुनलो जाइत छैक. — चन्दन कुमार झा