अपन भुवनेश्वर-यात्राक्रममे मैथिलीक
प्रसिद्ध समालोचक डॉ.रमानंद झा 'रमण' काल्हि दिनभरि कोलकातामे बितौलाह. एहि अवसर पर मैथिली साहित्यकार लोकनिक जुटान भेल आ भेंट- घांट गोष्ठीक रूप लेलक. चन्दन कुमार झा अपन अनुभव बता रहल छथि—
नवतुरिया उत्साही होइत छथि. नवतुरिया उर्जावान होइत छथि. नवतुरिया
प्रतिभावान होइत छथि. हुनके सभक हाथमे भविष्यक डोरि होइत छनि. मुदा,
अनुभव एकटा एहन चाक होइत छैक जे एहि उत्साह, उर्जा आ प्रतिभाकेँ नवरूपमे
गढ़ैत अछि. ओकरा विलक्षण आ गुणी बनबैत छैक आ तखने जा कऽ समाजक मानव संसाधन
सामाजिकताक लेल हितकारी बनैत छैक. अपन भुवनेश्वर-यात्राक्रममे मैथिलीक
प्रसिद्ध समालोचक डॉ.रमानंद झा 'रमण'क काल्हि दिनभरि कोलकातामे विलम'क
नेयार छलनि. सचेत लोक कोनो बहन्ने, केहनो परिस्थितिकेँ अपना लेल लाभकारी
बना लैत अछि आ से किछु तेहने उहि साहित्यकार बिनय भूषण देखौलनि. 'रमण'क
कोलकाता आगमनक सूचना पबिते विनयजी एहि मौकाकेँ हाथसँ नहि छुटय देबाक
नेयारलनि आ परसू साँझहिसँ स्थानीय साहित्यकार आ साहित्यप्रेमीक जुटानक लेल
जुटि गेलाह. प्रवासमे ऑफिस छोड़ि कोनो गोष्ठीमे जायब नोकरीहाराक लेल सहज
नहि होइत छैक मुदा, तइयो अनेक व्यक्ति अपन सहमति देलथिन आ अनेकोक मोन
कचोटैत रहि गलनि जे कार्यवश ओ शामिल नहि भऽ सकताह. फेर, जगह ठेकिआयल गेल,
प्रसिद्ध साहित्यकार आ मैथिलीक रक्षार्थ एकटा सजग प्रहरी रामलोचन ठाकुरक
आवास. समय निश्चित भेल, दूपहर तीन बजेसँ आ से एहन पहिल बेर देखल जे समस्त
सहभागी कोलकाता सन महानगर अस्त-व्यस्त ट्रैफिक अवरोध फनैत नीयत समयपर
पहुँचि गेलाह. सहजहिं अनुमान कऽ सकैत छी जे नवतुरिया कतेक लोभायल छल एहि
गुरू-गोष्ठीसँ नफा तसिलबाक लेल. चाह आ बिसकुट स्वादति गप-सपक प्रवाह
निरंतरता लेने छल. कतेको रास बात, अनेक नव, अनेक पुरान मुदा ओझरायल बातक
फरिछौटक प्रयास, मैथिलक गोष्ठीमे मात्र गपौरी पकैत छैक, तेहन मिथक तोड़ि
देलक जेना. पटनामे विद्यापतिक प्रतिमा कोनो सार्वजनिक स्थलपर किएक नहि अछि,
चेतना समिति एहि मादेँ कतेक प्रयास कऽ रहल अछि, मैथिली व्याकरणक कोनो मानक
रूप सोझाँ किएक नहि आबि रहल छैक, कहियो भाषाक मानकीकरणक जे प्रयास चलल
रहैक से किएक ठमकि गेलैक इत्यादि अनेक संवेदनशील विषयपर नवतुरियाक
जिज्ञासा, चिंता आ अनुभवीक अनुभवसँ सोझरायल त' नहि किंतु किछु फरीछ सन होइत
अवस्से बुझना गेल. भाषा मानकीकरणक मादेँ गप चलल जे विद्यालयी स्तरपर बिहार
स्टेट टेक्स्ट बुक कॉरपोरेशन जे किताब प्रकाशति करैत अछि आ विद्यालयमे
एच्छिक विषयक रूपमे पढ़ाइ होइत छैक ताहि किताब सभमे प्रयुक्त मैथिलीकेँ
किएक नहि मानक मानि लेल जाइत अछि? एकर विरोधक कोनो स्पष्ट कारण नहि सोझाँ
आएल, मुदा मैथिली साहित्य-जगतमे व्यक्तिगत पूर्वाग्रह एकर कारण अछि सेहो
बात परिलक्षित होइत सन बुझायल. चर्चा-परिचर्चाक क्रममे कखन दू-घंटा बीति
गेल से ज्ञात नहि भेल फेर विनय जी अपन संयोजकत्वक भूमिकाक निर्वाह करैत
किछु रचना-पाठ आ ताहिपर प्रतिक्रिया सुनबाक बेबस्था केलनि. अजय
'तिरहुतिया', चंदन कुमार झा, विनय भूषण आ भाष्कर झा अपन-अपन रचना पाठ
कएलनि. प्रतिक्रिया भेटलनि.....नीक, निरंतर लिखू , मुदा जतेक लिखैत छी
ताहिसँ बेसी पढ़ू. एहि छोट-छीन प्रतिक्रियामे एक्कहि संग कतेको भाव भरल
छैक. मुदा, नवतुरिया तऽ नवतुरिये होइत छथि, जिज्ञासू...मोन नहि मानलकनि आ
भेलनि जे, अनुभव डेरा रहलाह अछि जे नवतुरिया हतोत्साहित नहि भऽ जाइ, किछु
नुका रहलाह अछि आ तैँ किछु आर सुनबाक जिगेसा कएलनि....कने विश्लेषणात्मक
होइत उत्तर भेटलनि, कने फरिछायल उत्तर भेटलनि...मात्र सुन्दर शब्द संयोजने
सँ रचना नीक नहि कहाइत छैक ओहिमे भाव सेहो हेबाक चाही. एहिबेर रामलोचन जीक
संग मिथिलेश जी सेहो अपन-अपन प्रतिक्रिया देलनि. बेलूड़सँ आयल शिक्षक अशोक
चौधरी सूच्चा श्रोताक कर्तव्य निर्वहन कएलनि...आद्योपांत चर्चा
सुनलनि...आ अंतमे अपन आह्लाद, अहोभाग जनौलनि. छओ बजबामे आब दसे मिनट बचल
छल. करीब दस कोस दूर रहितौँ जेना ट्रेनक सिटी कान मे बाजि रहल हो तेहन सन
हरबरी भऽ गेल छल मुदा, एतबेमे कोनो बच्चा प्लेटमे दू-दू गोट रसगुल्ला आ'
बंगालक प्रसिद्ध मिठाइ संदेश लेने आएल...लोभ संवरण नहि भेल आ पहिने एकरे
निपटाबऽ मे सभ केयो जुटि गेलाह. आब छओ बाजि गेल छल..हरबड़ी बढ़ि गेल छल,
मुदा ग्रुप फोटो तऽ बनिते छलैक से कैमरा मे कैद भऽ सभ घरसँ बाहर निकलाह आ'
एकटा सार्थक गोष्ठी संपन्न भेल.