पुरुष कामनासँ भरल,
स्त्री भावनासँ भरल
सत्य झूठसँ भरल,
पुण्य पापसँ भरल
स्त्री विमर्शक लेल सभ आतुर,
किएक ? की आवश्यकता ?
जौँ सोचि ली तऽ
कियो नहि होयत आतुर ।
स्त्रीक नव सोच,
पुरुषक नव समझ,
ई दुनू मिलि बनि जाएत
एक नव संस्कृति
तखन नहि पड़त आवश्यकता .....
कथीक..? .....स्त्री विमर्शक ।
तखन आगाँ किएक नहि बढ़ी ?
मनकेँ उठाउ, सोचकेँ बढ़ाउ,
माए,बहिन,बेटी,पत्नी आ' प्रेमिका
एकर अलावे
स्त्री आर की भऽ सकैत अछि ?
कोना रहि सकैत अछि ?
की सोचि सकैत अछि ?
एहि विमर्शक अछि आवश्यकता ।
तखन सभ आगाँ आउ,
समए परिवर्तन होइते,
खतम भऽ जाएत-
स्त्री-विमर्शक आवश्यकता,
खतम भऽ जाएत ई आवश्यकता..
तखन किएक नै कही..
की आवश्यकता ??
— निक्की प्रियदर्शनी