गुज-गुज अन्हारमे
भगजोगनी सन
अहाँक स्मृति
आ हम
जेना आंगनमे
चुप-चाप ठाढ़
आमक पुरना गाछ
चिरप्रतीक्षारत
उधियाइत आँचर
लेढ़ाइत कोंचा
उजरल खोपा
लेभरल ठोप
आ सुखायल ठोर
देह जेना जारनि
आँखिक सुखायल दूनू
भथल इनार ..
नोरो कहाँ अछि बांचल
जाहि सों .निपि लितहूँ आँगन
जरा दितहूँ दीप
किचकिचबैत कोयलीक
उपराग सुनि सुनि
मोनो जेना भए गेल बहीर
क्थी लेल हम अपना के करी अधीर
एक ने एक दिन हमरो दिन घुरबे करत
केहनो खसय बज्जर
इहो गाछ एक बेर फेर मजरबे करत ..
ताबत अहिना तुलसी चौरा पर
जरति रहब दीप जेंका
एकर इजोत में अहाँ रस्ता त नहि भुतियायब ?
— गुल सारिका