रौ सुन्दर जी, ई की केलैँ
तों त' अप्पन ब्याह रचेलैँ
केलैँ मनोरथ पूर
जेठ रहैत रहि गेलौं कुमारे
भेलहुँ व्यवस्थित बनि भैंसुर
नान्हिए टा स' संगे रहलौं
संगहि इस्कूल-कालेज केलौं
नोकरी संगे-संगे धेलौं
वेतनो बेसी हमही पेलौं
तैयो पहिने तोहीं भसलैँ
चलौलेँ अत्मापर धमसूर
जेठ रहैत रहि गेलौं कुमारे
भेलहुँ व्यवस्थित बनि भैंसुर
धोती-कुर्ता-पाग पहिरि क'
काजर-चानन-ठोप स' सजि क'
तकलै नै एकहु बेर पलटि क'
चढ़लै चट द' जीप छड़पि क'
तरेतर बड़ मोन जरै छल
मुदा छलहुँ मजबूर
जेठ रहैत रहि गेलौं कुमारे
भेलहुँ व्यवस्थित बनि भैंसुर
कनियाँ तोहर भावो भेली
घोघ तानिके आँगाँ एली
धाख धखाइते भोजन देली
धरफराइत चट घर पड़ेली
खखसि-खखसि क' अंगना जाइ छी
छाहो स' भागी दूर
जेठ रहैत रहि गेलौं कुमारे
भेलहुँ व्यवस्थित बनि भैंसुर
हमरा सन-सन कत्तेक कुमार
बरहम लग लगबैत गुहार
हौ बाबा एहिबेर करह उद्धार
लालचके छोड़लहु आधार
एक्खन धरि त' भैसुरे छी
डर अछि नै बनि जाइ ससुर
जेठ रहैत रहि गेलौं कुमारे
भेलहुँ व्यवस्थित बनि भैंसुर
— मनीष झा 'बौआभाइ'