भोरहि भोर देखलहुं अचम्भा,
नहि छल घरक एकौटा खम्भा,
की सबटा ल' गेल चोर,
ई की भ' गेल भोरहि भोर.....!
बक्सा पेटी, गहना कपड़ा
नहि किछु छोड़लक चोर,
ई की भ' गेल भोरहि भोर.....!!
बर्तन भाड़ा किछु नहि छोड़लक ,
नहि छोड़लक बासि तीमनक झोर,
जानि पडैत अछि, छल डोकहरक चोर,
काका काकी ई की भ' गेल भोरहि भोर...!!
डेकची मे छल चढ़ल इनहोर,
सेहो नहि छोड़लक डोकहरक चोर,
ई की भ' गेल भोरहि भोर.....!!
एक पहर जे नहि रहलहुं अँगना,
नहि रहल आब एकउ टा गहना,
देखियौ छोटका बौआ,
केहन भेल दिन आब अघोर,
सबटा ल' गेल डोकहरक चोर,
ई की भ' गेल भोरहि भोर.....!
काका काकी गारि पढै छथि,
खसतौ रौ चोरबा तोरा बज्जर ओ अंगोर,
आओर पोछै छथि आँखिक नोर,
सबटा ल' गेल डोकहरक चोर,
काका काकी ई की भ' गेल भोरहि भोर.....!
— रत्नेश्वर ठाकुर 'दीवाना कवि'