आइ कएक दिन पर चौक गेल छलहुं. साइकिले हाथ-पएर आ वएह पेंचर भ' गेल छल. एक त' साइकिल केर मरम्मतिक खगता आ दोसर हरखा हाथक पान खयबाक प्रबल इच्छा चौक धरि ल' गेल. साइकिल कें पेंचर बनयबा लेल द' अपने हरखाक पान दोकान दिस बढ़लहुं कि सोनमा भेटल. ओ हमर पछोर धएने पान दोकान धरि आयल. ओकरा देखिते हम बुझि गेल छलहुं जे जा ई एक खिल्ली खायत ने, एहिना पछोर धएने रहत. हरखाक पान दोकान पर तिल धरबाक जगह नहि छलै. मुद्दे तेहन ने पसरल छलैक जे भीड़ होयब स्वाभाविक. हमरो कतहु अभरल छल, जे आब गृहिणीकें काजक बदला मे टका भेटितैक. सोनमा कहलक जे हमरो रोगहा मायकें केदन कहि देलकै, से कान-कप्पार खेने हय. खायब ताहि लेल झखइ छी आ ताहि पर सं लभका खरच. एना मे जनानीसुन बेरबाद भ' जेतै. सरकार के नहि कथू फुराइ हइ त' किदन-कहादन हल्ला मचबइ हइ. सोनमाक मुंह पर चिंता झलकि रहल छलैक. हरखा पानो लगबै छल आ बीच मे बातो टीपै छल. सोनमाक गप्प सुनि हरखा बाजल, यौ सरकार पहिने जे हइ से जनानिये कें...मुदा आब नहि रहतैक. हथउठाइ भेटितैक त' अपने छिलमिल्ली उठतैक जनानीसुन कें. दिनभरि खटनी करइ हइ पुरुख आ पाइ फेर पुरुख जनानिये के हाथ मे जाइ हइ. हम कहलियैक, स्त्रिगण कें घर-आँगन मे कम खटनी होइत छैक? हमरा एतेक बजिते हरखा पान थमा देलक. हम टाका धरबैत कहलियैक एकटा सोनमा कें सेहो खुआ दियही. एतेक कहि हम साइकिल दोकान परसं साइकिल ल' घर दिस विदा भेलहुँ. हमर दलान पर डब्लुआ पहिनहिसं माथ पर हाथ धेने बैसल छल. पूछलियैक एना किएक बैसल छह. त' कहलक काल्हि पंजाब जाइ छी. हमरा सोझा स्थिति स्पष्ट भ' गेल छल. तखनहि आँगन सं बजाहटि भेल. गेलहुं त' ओ पानक पीक फेकैत बजलीह-कतय निपत्ता भ' गेल छलहुं? काल्हि सं चौक दिस जायब त' हमरो लेल पान लेने आयब. बारीक पान मे ओतेक सोआद नहि छैक. दलान पर जा हमहूं डब्लुआ संगे माथ पर हाथ ध' बैसि रहलहुं. चरचा शुरू करब आ खरचा बहब दुनु दू बात छैक!! — नवकृष्ण ऐहिक