राजीव रंजन मिश्र केर दुइ गोट बाल गजल

(१)
झंडा सभ मिलि कए दीदी गै बनेबै
पंद्रह अगस्त क'  तिरंगा फहरेबै 

भाइजी तू कागत के झंडा बनाबय 
बांसक करची आनि क' डंडा लगेबै 

सभ गोटेक हाथे एक एक टा चाही 
हम सभ संगहिं घर सँ बहरेबै 

अहि दिनक बड्ड मोल छैक बहिना 
घुमि-घुमि सगरो से सभ के बतेबै  

तू सभ सुनिहैं संच मंच बैस कए 
नेताजी बनि हम जे भाषण सुनेबै 

सभ गोटे ठाढ़ भ' आँगन में संगहिं 
मिलल कंठ सँ जन गण मन गेबै 

झंडा फहरा कए प्रसादो त चाही न'
बाबा सँ कहि क' खुब बुनिया मंगेबै 

पढि लिखि पैघ भ' देश आ समाजक 
"राजीव" सभ रूपें मान हम बढेबै 


(२)
गली गली में झंडा फहरेबै हम 
गामे गामे तिरंगा लए जेबै हम

बहुत मोल छैक स्वतंत्रता केर
घरे घरे सभके ई बतेबै हम 

केसरिया थिक बल आर विराग 
सभमे बल पौरुष जगेबै हम 

उज्जर सत्त मोनक इजोर छैक 
निश्छल रहि जीवन बीतेबै हम 

हरियर थिक खेतक लहलही 
धरती सए मोती उपजेबै हम 

चक्र अशोक कहय छै जे कहियो 
अन्याय कए नै माथ झुकेबै हम

'राजीव' सप्पत लैत छी सभ मिलि 
भारत मायक' मान बढेबै हम  
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