भोरक करीब सात बजैत रहै. लोहनावाली भनसाघर मे चुल्हा पजारति रहय.सिमसल चेरा पजरैत नहि रहय खाली धुआँइत छलैक. धुआँ भरल भनसाघर. फुकैत-फुकैत अकच्छ मोन भेल छै. आँखि फुटि रहल छलैक ओहि धुआँभरल भनसाघर मे. आँखि लाल बून्न भ' गेल रहय. आँखि सँ नोर बहय लागल रहय मुदा कनैत नहि रहय एखन लोहनावाली. ओ त' आँखि मे धुआँ लागि गेल रहय तइँ नोरा गेल रहय.कानल त' राति मे रहय ओ. भरि राति कानल रहय...भरि राति कि जीवन भरि त' कनिते रहल अछि. ...नहि..नहि..जीवन भरि नहि .....जहिया से एहि घर मे वियाहि के आयल अछि तहिया से..जा धरि वियाह नहि भेल रहै, नैहर मे रहैत रहय, कहियो कोनो दुख-दर्दक भान नहि भेलै.बेटी भऽ जनम नेने छल तइयो बड्ड प्रेम भेटैत छलै माय-बापक.तीन भाय-बहिन मे एसगर बहिन तहू मे सबसे छोट.सभक मुहलगुआ..मायक रधिया..बाबूक राधा बेटी,......लोहनावाली........चु ल्हि फुकैत लोहनावाली.
राति मे फेर जुगेसरा पी के आयल रहय.बड़का पियक्कर निकलि गेलैए.रोज ताडी-दारू चाही.सभटा जथा-पात बेचि पीबि गेलै.बड्ड मना करैत छैक लोहनावाली मुदा के सुनैए ओकर गप्प. बेचारी के रोज गारि-फज्झति सुन' पड़ैत छै उनटे.की करतइ अबला नारी, सहि लैत छैक सभटा.मुदा आब ओकरो कखनो-काल बर्दाश्त सँ बाहर भऽ जाइत छैक.मोन होइछै जे मरि जाय.एहन जीवन से त' मुइनहि नीक.फेर, दूनू बच्चा के मुँह देखि शांत भऽ जाइत अछि.आठ बरखक सुधीर आ पाँच बरखक सरिता छैक.इसकुलक मास्टर कहैत छथिन्ह जे सुधीर पढ़ै मे बड्ड तेज छैक आ' तइँ एतेक मारि-गारि खेलाक बादो लोहनावालीक एकेटा मनोरथ जियौने छैक जे सुधीर पढ़ि लेतै त' सभटा कलेश दूर भऽजेतइ.सरिता त' बेटी छियैक.अनकर धन.बस कोनो नीक ठाम बियाह भऽ जेतइ तँ सभ चिन्ता दूर भऽ जेतइ लोहनावाली के....आँच एखनो नहि पजरलैए...बियनि तकैत लोहनावाली.
रामावतार, लोहनावालीक जेठ भाय. बड्ड स्नेह करै छै लोहनावाली से रामावतार. कोनो एहन मास नहि होइछै जे ओ' नैहर से लोहनावाली ले सनेस नहि अनैत हो...सनेस की आब त' लोहनावालीक गुजरो नैहरेक बल पर होइ छै. हरदम पाइ-कौड़ी नैहर से अबैत रहैत छै.पन्द्रहो दिन नहि भेलैए दू गारी आमक चेरा पठा देने रहै रामावतार.एखनो सौसे दरबज्जा पसरल छै. पानि मरैले रौद मे देने रहए.ओही चेरा मे से एकटा घीचि के जुगेसरा राति मे मारने रहै लोहना बाली के. पाँजर मे एखनो कारी-सियाह चेन्ह भेल छै. ई चेन्ह त' तइयो मेटा जेतइ मुदा करेजा मे जे अपमान आ' दुत्कारक चेन्ह लागल छै से त' मुइनहि मेटैते....आँचर सँ नोर पोछैत लोहनावाली.
परसू रामावतार आयल रहै. जाइत काल गोरलगाइ मे एक सय टाका दैत गेल रहै लोहनावाली के. एकमास से सुधीर किताब कीनि दै ले हल्ला मचौने छेलइ.पचास टाका किताबे किनइ मे खर्च भऽ गेल रहय.बीस टाका गामबाली काकी से पैँच लेने छल.सरिताक दबाइक खातिर. ओहो सधा देलकै. तीस टाका बचल छेलै.ओहे तीस टाका काल्हि साँझ मे जुगेसरा के देने रहै लोहनावाली आ' बेर-बेर बुझा के कहने रहय जे घर मे सिधहा खतम भऽ गेल छै से ई पाय कत्तौ अनतऽ नहि खर्च करबा लेल.....अनतऽ की......एहि पाय के पीबै लेल नहि.मुदा हेहर भऽ गेल छै जुगेसरा.कोनो मतलब नहि छै ओकरा जेना बहु बच्चा से. दारू भेट जाउ बस आर किछ नहि चाही.भरि दिन टहलानी मारैत रहै छै.कोने-कोन गाजा तकैत रहैत छै.महा निशाँबाज भऽ गेल छै...पीबि गेलै ओहो तीस टाकाक दारू.साँझखन छूछै हाथ डोलबैत अबैत देख लोहनावाली के तामश चढ़ि गेल रहए.तामश एहि दुआरे नहि चढ़ल रहए जे ओ की खायत,लेकिन धिया-पुता के कोना भूखले सूत' देतइ.साँझे सँ बाट तकैत छल चुल्हि लग बैसलि.एकोरत्ती मोन मे विचार नहि अछि? कोना के पी गेलियै?...एतबे बाजल रहै लोहनावाली कि धेले चेरा मारि देलकै जुगेसरा.लोक-लाजक डर की बाजत.चुप्पे रहि गेल लोहनावाली.ओहन झाँट-बिहाड़ि एलै किछु नहि बुझलकै ओ.सून्न भऽ गेल रहैक ओकर दिमाग जेना.सभटा चेरा भीजि गेलइ.सुधीर आ' सरिता मायक कोरा मे मूड़ी नुकौने निन्न पड़ि गेलै.भुखले सूति रहलै...आ टक-टक तकैत रहि गेल लोहनावाली....भरि राति कनैत रहल लोहनावाली.
जखन लाल बहादुर शास्त्री देशक प्रधानमंत्री बनल रहथि तखन देशमे अन्न-संकट छल आ' ओहि समय मे गाम-घर मे एकटा प्रथा जनमल जे गृहणी लोकनि जखन सिधहा लगाबय लागथि तखन ओहि मे सँ एकमूठ्ठी चाउर निकालि के अलग राखि लैत छलीह आ' एकरा मुठिया चाउर कहल जाइत छल.एहि जोगाओल चाउरक उपयोग ओ' विपरीत काल मे घर चलैबाक लेल किनइ-बेसाहइ मे करैत छलीह.लोहनावाली सेहो माय के देखने रहै मुठिया चाउर जोगबैत आ' तइँ ओहो जोगा के रखइत छल मुठिया चाउर.
पैर नहि उठै छै भनसाघर दिस जाइक लेल.की करतइ ? भरि राति धीया-पुता भूखले छै.जल्दी-जल्दी चुल्हा लग आयल जे किछ बना के देतइ बच्चा सभ के. सुधीर के बजेलक आ एकटा तौला मे राखल मुठिया चाउर के पोटरी बान्हि दालि किनबा ले दोकान पठा देलकै.ओही तौला मे सँ सिधहा सेहो निकाललक.आँच धधकि गेलै.कतेक दिन तक ओ चलेतै घर एहि मुठिया चाउरक बलेँ...सोचैत अछि लोहनावाली..अधहन चढ़बैत लोहनावाली...सुधीरक बाट तकैत लोहनावाली.आब तऽ एकटा सुधीरे सँ आशा छैक जकरा बलै दिन काटत लोहनावाली.
— चंदन कुमार झा
— चंदन कुमार झा