अरिपन मिथिला कला संस्कृतिक एकटा अभिन्न अंग अछि. मिथिला मे सभ शुभ कार्य मे अरिपनक अलग महत्व अछि. मुड़न, उपनयन, बियाह, दूरागमन आ पूजा पाठ मे अरिपन लिखल जाइत छैक. अरिपन लिखब शुभ संकेत मानल गेल अछि. मिथिला मे बहुतो प्रकारें अरिपन पाडल जाइत अछि. अरिपन अलग- अलग अवसर पर अलग- अलग ढंग सँ पाडल जाइत छैक. जेना बियाह मे वरक घर पर पीढ़ी, कमलक फूल केर आकृतिक एक-एक टा चित्र पाडल जाइत छैक आ कन्याक बियाह मे ई जोड़ा मे पाडल जाइत अछि. ओहिना द्विरागमन मे दुनू ठाम जोड़े मे पाडल जाइत अछि. मुड़न, उपनयन मे अलग-अलग ढंग सँ एकर आकृति देल जाइत छैक. भारदुतिया मे अरिपनक एकटा अलगे महत्व अछि. अरिपन कोना लिखल जाय आ कथी सं? पहिने आँगन मे चौखूंट ठांव कयल जाइत छैक गोरिया (चिकनी) माटि सँ, तखन ओहि पर चाउरक पिठार सँ भिन्न-भिन्न प्रकारक अरिपन उरेहल जायत छैक. अरिपनक उपर सिन्नुरक ठोप सेहो देल जाइत छैक. ओना ई अरिपन मिथिलाक संस्कृति में प्रचलित अछि, मुदा यएह अरिपन दोसर संस्कृति-समाज मे रंगोलीक रूप मे देखल जाइत छैक. मुदा रंगोली आ अरिपन मे किछु मौलिक भिन्नता अछि, जे अरिपन कें विशिष्ट बनबैत अछि.
(आलेख: रूबी झा)