प्रसिद्ध रंगकर्मी ओ नाटककार बेचन ठाकुर सँ चंदन कुमार झा द्वारा लेल गेल ऑनलाइन साक्षात्कारक मुख्य अंशः-
मैथिली रंगमंच सँ अपने कतेक दिन सँ जुड़ल छी आ कोना जुड़लहुं?
बचपने सँ, जखन कि हम बकरी चरबैले जाइत छलहुं तहिये सँ गीत-संगीत दिस आकर्षण अछि. बाध जाइत छलहुं तऽ एम्हर बकरियो चरैत रहै आ ओम्हर हम गीतो गबैत रही. जखन नवम-दशम वर्ग मे पढैत रही तँ गामक बुढ़-पुरान केँ नाटक खेलाइत देखि नाटकक प्रति जिज्ञासा भेल. नाटक मे भाग लेबाक रुचि जागल. फेर ओइ नाटक सभमे बच्चाक रौल करैत छलहुं. मुदा विशेष रूप सँ जखन हम विद्यालय चालू केलहुं आ जातिवादी रंगमंच खास कऽ महेन्द्र मलंगिया जीक नाटकक जातिवादी शब्दावली पढ़लहुं तकर बाद प्रायः २७ दिसम्बर १९९४ क बाद विद्यालए पर विभिन्न अवसर पर एकांकी सबहक मंचन करैत रहलहुं, जइमे नै जातीय शब्दावली रहै आ नहिये हिन्दी मिज्झर रहै, नहिये गएर सवर्णकेँ नीचाँ देखाबैबला तथाकथित छोटहा मैथिली रहै. फेर क्रमशः रंगमंचक ई समानान्तर यात्रा चलैत रहल.
अपने कें ई समानांतर रंगमंच ठनबाक आवश्यकता किएक पड़ल?
बचपने सँ, जखन कि हम बकरी चरबैले जाइत छलहुं तहिये सँ गीत-संगीत दिस आकर्षण अछि. बाध जाइत छलहुं तऽ एम्हर बकरियो चरैत रहै आ ओम्हर हम गीतो गबैत रही. जखन नवम-दशम वर्ग मे पढैत रही तँ गामक बुढ़-पुरान केँ नाटक खेलाइत देखि नाटकक प्रति जिज्ञासा भेल. नाटक मे भाग लेबाक रुचि जागल. फेर ओइ नाटक सभमे बच्चाक रौल करैत छलहुं. मुदा विशेष रूप सँ जखन हम विद्यालय चालू केलहुं आ जातिवादी रंगमंच खास कऽ महेन्द्र मलंगिया जीक नाटकक जातिवादी शब्दावली पढ़लहुं तकर बाद प्रायः २७ दिसम्बर १९९४ क बाद विद्यालए पर विभिन्न अवसर पर एकांकी सबहक मंचन करैत रहलहुं, जइमे नै जातीय शब्दावली रहै आ नहिये हिन्दी मिज्झर रहै, नहिये गएर सवर्णकेँ नीचाँ देखाबैबला तथाकथित छोटहा मैथिली रहै. फेर क्रमशः रंगमंचक ई समानान्तर यात्रा चलैत रहल.
अपने कें ई समानांतर रंगमंच ठनबाक आवश्यकता किएक पड़ल?
मैथिली मे जातिवादी रंगमंच, खास कऽ महेन्द्र मलंगिया जी केँ ओकर आंगनक बारमासासँ लऽ कऽ छुतहा घैल धरिमे जातिवादी शब्दावली भरल अछि. हुनकर विचारधाराक लोक, विभिन्न तरहेँ पत्र-पत्रिकाक माध्यमसँ आ सरकारी आ गैर-सरकारी फण्ड आ सहयोगक माध्यमसँ गएर सवर्णक प्रति अपशब्द आदिक प्रयोग कऽ रहल छथि. ओकर संस्कृतिकेँ तोड़ि कऽ प्रस्तुत कऽ रहल छथि. ओकरा लेल एहन मैथिलीक प्रयोग कऽ रहल छथि जकरासँ ई सिद्ध हुअए जे ओ सभ मैथिली भाषी छथिए नै, बल्कि कतौ बाहरसँ आएल छथि. आब मलंगिया जीक संस्था ई काज हिन्दीसँ मैथिलीमे अनूदित नाटकमे सेहो कऽ रहल अछि. रामेश्वर प्रेमक नाटकक मैथिलीमे “जल डमरू बाजे” रूपमे घृणित अनुवाद आ मंचन भेल, गएर सवर्ण लेल तथाकथित छोटहा मैथिलीक प्रयोग कएल गेल,रामेश्वर प्रेम सेहो ई अनुवाद हेबऽ देबा लेल दोषी छथि. हिन्दी सन कोनो भाषा आ मैथिलीकेँ मिझरा कऽ ओ लोकनि ई सिद्ध करबामे लागल छथि जे ईएह मिश्रित भाषा मिथिलाक भाषा छी, आ ऐ तरहेँ मैथिलीकेँ मारबा लेल बिर्त छथि. ओ सभ तात्कालिक वाहवाही आ' थपड़ी लेल एहन काज सभ करैत छथि. ओना तँ जइ पत्रिका आ सरकारी-गएर सरकारी माध्यममे एकर चर्च होइए ओकर पढ़निहारक संख्या तँ नहिए अछि मुदा ओ सभ जँ अहाँ पढ़ू तँ लागत जे, जे अछि से जातिवादी रंगमंचे अछि, ओना ओ वास्तविकतामे मैथिली रंगमंचक दुइयो आना नै अछि. आ यएह सभ कारण शुरूसँ विद्यमान छल जइ कारणसँ हम समानान्तर रंगमंच पछिला २५ सालसँ चलबैत रहलहुं.
मैथिली रंगमंच मे गुटबाजी चरम पर छैक से बुझना जाइत अछि. अहाँक की मत अछि एहि संबंध मे?
हम समानान्तर रंगमंच पछिला २५ सालसँ चलबैत रहलहुं, मुदा एकर कोनो चर्चा मैथिलीक जातिवादी पत्र-पत्रिकामे नै आएल। मुदा जखन पहिल विदेह मैथिली नाट्य उत्सव २०१२ भेल तँ चौदह आना लोकक समानान्तर रंगमंचक धाह ओइ जातिवादी रंगमंचकेँ बुझाए पड़ऽ लगलै. फेर रामदेव बाबू आ' मलंगिया जी सभ बापूत मैदानमे आबि गेलाह आ अपशब्दक प्रयोगक शुरुआत केलनि. ऐठाम रामदेव झा आ' मलंगिया जी एक भऽ गेलाह. फेर जखन जातिवादी रंगमंच “साहित्य अकादेमी पुरस्कारक लेल” मलंगिया जीक नाम उठेलक, कमल मोहन चुन्नू नाटककारकेँ नाटक लेल पुरस्कार देबाक गप केलनि आ महेन्द्र मलंगिया लेल ऐ पुरस्कारक अनुशंसा केलनि, तऽ तर्क देलन्हि जे आइधरि ई नै भेल अछि जे मैथिलीमे नाटककारकेँ नाटक लेल पुरस्कार भेटल अछि. ओ रामदेव झाकेँ भेटल पुरस्कारकेँ खारिज करैत कहलनि जे रामदेव झाकेँ जइ नाटक- एकांकी लेल पुरस्कार भेटलनि से कथाकेँ कथोपकथनमे लिखल मेहनति मात्र अछि, मिथिला दर्शन मे हुनक लेख छपल रहए. एतऽ ओ सभ विरोधी भऽ गेलाह आ फेरो जखन महेन्द्र मलंगियाकेँ जातिवादी रंगमंचक “मैथिली एकांकी संग्रह”क असाइनमेन्ट साहित्य अकादेमीसँ पं.चन्द्रनाथ मिश्र “अमर”- रामदेव झा, ससुर-जमाएक जोड़ीक अनुकम्पासँ भेटलनि तँ ओ मैथिलीक या कहू जे जातिवादी रंगमंचक १९ टा सर्वश्रेष्ठ एकांकीमे रामदेव झाक “पिपासा” लेने रहथि, आब ऐठाम, रामदेव झा सर्वश्रेष्ठ नाटककार भऽ गेलाह. ओइ पोथीक भूमिकामे चन्द्रनाथ मिश्र “अमर”- गोविन्द झा आ सुधांशु शेखर चौधरीक मजाक तँ उड़ेनहिये छथि संगमे राधाकृष्ण चौधरी आ मणिपद्मकेँ एहि संग्रह मे शामिल किएक नहि कएल गेल, ओइ लेल हास्यास्पद तर्क सेहो देने छथि! गुणनाथ झाकेँ ओ शामिल नै केलनि!! सर्वहाराक रंगमंचकेँ ओ शामिल किए करितथि, ई संकलन तँ जातिवादी रंगमंचक छल किने!! आब अहाँ सोचमे पड़ि जाएब जे ई लोकनि कखन एक दोसराक पक्षमे आबि जाइ छथि आ कखन विरोधमे, कखनो रामदेव झा सर्वश्रष्ठ नाटककार बनि जाइ छथि आ कखनो खारिज भऽ जाइ छथि. जातिवादी रंगमंच आपसमे खण्ड-पखण्ड अछि, मुदा विदेह मैथिली साहित्य आन्दोलन आ विदेह मैथिली समानान्तर रंगमंचक विरोधमे ई सभ एक भऽ जाइत अछि.
हालहि मे जगदीश प्रसाद मंडल जीकेँ हुनकर "गामक जिनगी"क लेल "टैगोर साहित्य सम्मान" भेटलनि. एहिमादेँ अहाँ किछु कहय चाहब ?
हमरा सभकेँ बड्ड खुशी भेल. मुदा बहुत गोटे कें ई नहि सोहेलनि. कमल मोहन चुन्नूकेँ नाटककार जगदीश प्रसाद मण्डलकेँ टैगोर साहित्य सम्मान भेटलासँ एतेक कष्ट भेलनि जे ओ एक बेर फेर “घर-बाहर”मे मलंगिया जीकेँ साहित्य अकादेमी पुरस्कार भेटए, से फतवा जारी कऽ देलनि ई कहि कऽ जे मलंगिया जी मैथिलीक (जातिवादी रंगमंचक दृष्टिकोणसँ) सर्वश्रेष्ठ नाटककार छथि, मुदा ऐबेर ओ ई सतर्की केलनि जे सर्वश्रेष्ठ समालोचक, लघुकथाकार आ कविक नामक आ हुनको सभकेँ साहित्य अकादेमी भेटए से चर्च कऽ देलनि, जे आरोप नै लागए; कहबाक आवश्यकता नै जे ऐ लिस्टक सभ समालोचक, लघुकथाकार आ कवि चुन्नू जीक जातिक छथि. सर्वहारा वर्ग नीक जेकाँ बुझि गेल जे ई साहित्य आ ई रंगमंच ओकरा लेल नै अछि, से ओ अपनाकेँ ऐसँ कात कऽ लेलक, आ जँ विदेह मैथिली साहित्य आन्दोलन आ विदेह मैथिली समानान्तर रंगमंच नै अबितए तँ मामिला खतमे छल.
कखनोकाल हम अनुभव करैत छी जे एहि विषय पर बहस करैत-करैत लोक व्यक्तिगत आक्षेप करऽ लगैत छथि. अहाँ के की कहब अछि ?
देखियौ जँ अहाँ जातिवादी रंगमंचक विरोध करब तँ मलंगिया जीक बेटा अहाँकेँ धमकी देताह, जेना ललित कुमार झा उमेश मण्डल जी केँ देलनि. मलंगियाजीक जातिवादी रंगमंचक एकटा निर्देशक प्रकाश झा मुन्नाजीकेँ कहलनि, जे बेचन ठाकुर भरि दिन केश कटैत रहैए, रंगमंच ओ किए ने जानै गेलै! जातिवादी रंगमंचक विरोधमे समानान्तर रंगमंच अछि तँ अहाँ हुनका लोकनिसँ की आशा करै छी! ओना हमर ठाकुर टाइटिल सँ हुनका लोकनिकेँ भेल हेतनि जे हम नौआ ठाकुर छी, तेँ ओ ई बाजल छथि. मुदा जँ किओ ई काज कऽ रहल छथि आ अपन संस्कृतिक रक्षा कऽ रहल छथि, जेना नौआ ठाकुर लोकनि तँ की हर्ज. विद्यापति ठाकुर, जे बिस्फीक नौआ ठाकुर रहथि, केँ बिदापत नाचक माध्यमसँ जिआ कऽ रखलनि नौआ ठाकुर लोकनि, विद्यापति आ मैथिलीकेँ हजार साल धरि जिआ कऽ राखलन्हि, तँ ऐमे ककरो किए कष्ट छै. आब तँ ओ लोकनि विद्यापतिकेँ ब्राह्मण बनेबा मे लागल छथि. ओना हम बरही जातिक छी.
अपनेक आगाँक लक्ष्य की अछि?
हम आगाँ २५ साल धरि ई समानान्तर रंगमंच चलबैत रहब. पछिला २५ सालमे जतेक सफलता भेटल अछि ओइसँ हम उत्साहित छी, अगिला पचीस सालमे जँ हम जातिवादी रंगमंचक किरदानीक कारण मैथिलीसँ भागल सर्वहारा वर्गक किछु आर गोटेकेँ मैथिलीसँ जोड़ि सकब आ जे काज हमरासँ छूटि जाएत से अगिला पीढ़ी करत. जातिवादी रंगमंच आब सरकारी आ गएर सरकारी संस्थाक हथियार बनि कऽ रहि गेल अछि, ई ढहब शुरू भऽ गेल अछि, किछु ऊपरी सुधार, नामे लेल सही, ई कऽ रहल अछि. हमर लक्ष्य अछि जे अगिला पचीस सालमे ई जड़िसँ खतम भऽ जाए.
गाम-घर मे नाटकक विकास के लेल की कएल जेबाक चाही ?
देखियौ, सभसँ पहिने कहब जे गाम-घरक आम लोक बेसी पढ़ल-लिखल नै होइत छथि. मुदा मैथिली साहित्यकारक एकटा बड़का बेमारी छैक जे अनेरे के विद्वता छाँटब सँ बाज नै अबैत छथि. गाम-घर मे नाटकक विकासक खातिर सभसँ पहिने ई भाषा सुधार हेबाक चाही. संवाद मे हिन्दी-संस्कृत केँ फेटल नै जेबाक चाही. संवाद आम बोलचालक भाषा सँ मेल खाइत हुअए. कथानक आ दृश्य सेहो ग्रामीण परिवेश केँ धियान मे रखैत गढ़ल जाए. आम जन-जीवन सँ नजदीक हुअए. संगहि सरकारी स्तर पर सेहो किछु प्रयास हेबाक चाही जइ सँ गामक रंगकर्मी सभकेँ प्रोत्साहन भेटैक. ऐसँ नवतुरिया सेहो आकर्षित हेतै. गामे-घर मे नै नगरो मे नाटकक विकासक लेल ऐ तरहक गप-सप पर नाटककार आ रंगमंचकर्मीकेँ ध्यान देबाक चाही.
अहाँ एकटा कलाकार,निर्देशकक अलावे नाटककारक रूप मे सेहो प्रसिद्ध छी. अपन लिखल नाटकक संबंध मे किछु कहल जाए?
हम एखन तक कुल २५-२६ टा नाटक आ एकांकी लिखने छी. किछु एहनो नाटक अछि जकरा मूल रूप मे तँ केयो आन लिखने छथि मुदा हम ओइ मे बारह सँ चौदह अना तक संशोधन कऽ ग्रामीण परिवेश मे मंचन करबा योग्य नाटकक रूपमे ओकरा परिवर्तित कएने छी. किछु हिन्दी नाटककेँ सेहो मैथिली मंचक मांगक अनुरूप पुनर्लेखन केने छी. अपन नाटक लिखैत काल हमर प्रयास रहैत अछि जे ओकर कथानक आ पात्र सभ मे समाजक सभ वर्गक प्रतिनिधित्व रहैक. ऐ खातिर हम अपना हिसाबे भाषाक सरलीकरण करबाक प्रयास करैत छी. ओना तँ अपन प्रशंसा अपने नै करक चाही मुदा एकटा गप्प अवश्य कहए चाहब जे आसपासक गामक लोक जखन ई सुनैत छथि जे बेचन ठाकुरक नाटकक मंचन होबएबला छैक तँ भीड़ उमड़ि पड़ैत छैक. ऐ सँ हमरा लगैत अछि जे हम जे प्रयास कऽ रहल छी से सार्थक अछि. लोकक भीड़ देख खुशी होइत अछि. एखन धरि हमर दू टा नाटक "बेटीक अपमान" आ "छीनरदेवी'' प्रकाशित अछि, आ "विश्वासघात", “अधिकार” आ "बाप भेल पित्ती" प्रेस मे अछि.
अच्छा एकटा गप्प कहू जे ई "छीनरदेवी" शीर्षक देबाक पाछाँ कोनो खास कारण छै की? किए तऽ सामान्य बोलचाल मे एहन शब्द सभकेँ कने अश्लील मानल जाइ छै?
हँ, एक बेर हमरो मोन मे एहन तरहक विचार आएल. मुदा ई नाटक शत-प्रतिशत एकटा सत्य घटना पर आधारित छै, एकटा लड़कीक बियाह नै भऽ रहल छलै, ओकर छोटकी बहीन सभक बियाह बाल-बच्चा भऽ गेलै. ओ देहपर भूत लगा लै आ काकीपर आरोप लगबै जे यएह सभटा केने अछि. लोक सभमे आक्रोश भेलै, जे अपने छीनरदेवी लागल छै आ काकीकेँ बेटी रोटी केने छै. आ ऐ घटनाक घटनाक्रम किछु एहन चलै छै जे ई शब्द "छीनरदेवी" आम बोल चालक हिस्सा बनि गेलै. हमरा यएह एकटा शब्द ऐ विषय पर ई नाटक लिखबाक लेल प्रेरित कएलक तँए हम ऐ मे अपन बेशी दिमाग नै लगेलौं आ यथावत दर्शक सभक सोझाँ अनबाक प्रयास कएलहुं.
एखन तऽ सिनेमाइ युग छै, फेर अहाँ नाटकक भविष्य केहन देखैत छी ?
हम देख रहल छी जे यदि मैथिली नाटकक लेखन आ मंचन दुनू कनेक आधुनिक तरीकासँ कएल जेतै तँ फेर एकर भविष्य ठीके रहतै. ऐ प्रसंग मे एकटा घटनाक उल्लेख करऽ चाहब जे पछिला बेर हमरा गाम मे एकदिश आर्केस्ट्रा चलैत रहै आ दोसर दिश हमर सभक नाटक चलैत रहए. जखन आर्केस्ट्रा देखऽ बला लोक सभकेँ पता चललै जे हमर सभक नाटक सेहो भऽ रहल छै तँ बहुत रास दर्शक नाटक देखऽ लेल आबि गेलै. लोक सभ बजैत रहए जे ओइ आर्केस्ट्रा सँ ई नाटके नीक. एहन तरहक उत्साह जखन दर्शकमे देखैत छिऐ तँ बुझाइत अछि जे मैथिली नाटकक भविष्य एखन बाँचल छै. बस जरुरति छैक जे नाटक आ मंच कने सजल-धजल होइ. नाटक लिखैत काल आम जनक रुचि केँ, समस्याकेँ धियानमे राखल जाए. नाटक मनोरंजनक एकटा साधन छै, से मात्र गूढे बात टा नै मनोरंजन योग सामग्री सेहो शामिल कएल जेबाक चाही. आब यदि खाली गुढे विषय-वस्तु भरि देबै तँ पहिने कहलहुं जे गाम-घरक लोक वा नगरोक लोक जे नाटक देखैए, ओतेक रहस्य बुझएबला नै होइत छथि से हुनका सभकेँ नै रुचतनि. हम देखै छिऐ जे एखन जे मैथिली मे नाटककार सभ छथि ओइमे सभ दऽ तँ नै लेकिन अधिकतरमे नाटक मनोरंजनक सामग्रीक नाम पर जाति-धर्म पर आक्षेप कएल जाइ छै. अभद्र भाषाक उपयोग कएल जाइ छै. कतेक बेर संवादकेँ गामक परिवेशकेँ धियान मे रखैत सीन ओमिट करऽ पड़ैत अछि. ई सभ नै हेबाक चाही. हम सभ तँए समानांतर रंगमंचक माध्यम सँ एहन जातिवादी सोच आ लोकक विरोध करैत छी. हमर मानब अछि जे साहित्य (मैथिली) केँ जाति-धर्म सँ नै जोड़बाक चाही. ऐसँ साहित्य मे हल्कापन अबै छै. साहित्यकारकेँ हरदम समाजमे आदर्श विचारक प्रचार-प्रसार करबाक चाही.
ग्रामीण युवा वर्ग मे नाटकक प्रति कतेक रुचि देखै छी?
युवावर्ग मे जिज्ञासा छै मुदा ओकरा सभकेँ कने चटक-मटक चाही. लड़का सभ एकरा ओतेक सिरीयसली नै लै छै लेकिन हम देखै छी जे लड़की सभ बहुत बेशी रुचि लै छै. हम सभ जखन नाट्य महोत्सवक आयोजन करैत छी तँ लड़की सभ खूब पुरस्कार जितैत अछि. ई एकटा बड़का उत्साहजनक बात छै. पहिल विदेह नाट्य उत्सवमे हमर निर्देशनमे “उल्कामुख” नाटक मंचित भेल, ऐमे पुरखोक रोल महिला केलनि, महिलाक तँ केबे केलनि. सामान्य रूपमे लोककेँ महिलोक रोल पुरुखसँ करबऽ पड़ै छै. छह-छह घण्टाक नाटक लोक बिनु हिलने देखलक, ई मराठी टामे होइ छै. मैथिलीमे आइयो आधा-घण्टा पैंतालीस मिनटक नाटक होइ छै. ई एकटा उपलब्धि तँ अछिये. ऐ नाट्य-उत्सवक थीम रहए, भरत नाट्यशास्त्रक अनुसार मैथिली रंगमंच. अगिला नाट्य उत्सवक थीम अछि मैथिली रंगमंचमे आधुनिक मंच वास्तुकला.
आइ हम अहाँक बहुत रास समय लऽ लेलहुं...
नै.. नै.. एहन कोनो बात नै छै. आइ दिन मे अहाँ सँ गप्प भेल छल आ एखुनका समय देने रही, से जखन एकर ओरियान मे लागल रही जे आब अहाँ सँ गप्प करब कि तखने एक गोटे आबि गेलाह एकटा कोनो कागज नेने आ कहए लगलाह जे कने ऐमे देखियौ तँ जे हमर नाम ऐ वृद्धा-पेंशन बला लिस्ट मे छै कि नै..(हँसैत). हम हुनका कहलियनि जे एखन हम कनेकाल व्यस्त रहब से कने रुकू फेर हम देख देब, आब कने हुनकर कागज सेहो देखऽ पड़त.
बेस, बहुत रास नव-नव जानकारी भेटल अपने संगे गप्प कए कऽ, आशा करैत छी जे जखन अगिला बेर अहाँ सभ नाट्य महोत्सव आयोजित करब तँ ओइमे हमरो भाग लेबाक सुयोग भेटत. तखन एक बेर फेर अपनेकेँ धन्यवाद कहैत विदा लेब.
अहाँ अवश्य आबी हमर सभक नाट्य-महोत्सव मे. हमरो खुशी हएत.
मैथिली रंगमंच मे गुटबाजी चरम पर छैक से बुझना जाइत अछि. अहाँक की मत अछि एहि संबंध मे?
हम समानान्तर रंगमंच पछिला २५ सालसँ चलबैत रहलहुं, मुदा एकर कोनो चर्चा मैथिलीक जातिवादी पत्र-पत्रिकामे नै आएल। मुदा जखन पहिल विदेह मैथिली नाट्य उत्सव २०१२ भेल तँ चौदह आना लोकक समानान्तर रंगमंचक धाह ओइ जातिवादी रंगमंचकेँ बुझाए पड़ऽ लगलै. फेर रामदेव बाबू आ' मलंगिया जी सभ बापूत मैदानमे आबि गेलाह आ अपशब्दक प्रयोगक शुरुआत केलनि. ऐठाम रामदेव झा आ' मलंगिया जी एक भऽ गेलाह. फेर जखन जातिवादी रंगमंच “साहित्य अकादेमी पुरस्कारक लेल” मलंगिया जीक नाम उठेलक, कमल मोहन चुन्नू नाटककारकेँ नाटक लेल पुरस्कार देबाक गप केलनि आ महेन्द्र मलंगिया लेल ऐ पुरस्कारक अनुशंसा केलनि, तऽ तर्क देलन्हि जे आइधरि ई नै भेल अछि जे मैथिलीमे नाटककारकेँ नाटक लेल पुरस्कार भेटल अछि. ओ रामदेव झाकेँ भेटल पुरस्कारकेँ खारिज करैत कहलनि जे रामदेव झाकेँ जइ नाटक- एकांकी लेल पुरस्कार भेटलनि से कथाकेँ कथोपकथनमे लिखल मेहनति मात्र अछि, मिथिला दर्शन मे हुनक लेख छपल रहए. एतऽ ओ सभ विरोधी भऽ गेलाह आ फेरो जखन महेन्द्र मलंगियाकेँ जातिवादी रंगमंचक “मैथिली एकांकी संग्रह”क असाइनमेन्ट साहित्य अकादेमीसँ पं.चन्द्रनाथ मिश्र “अमर”- रामदेव झा, ससुर-जमाएक जोड़ीक अनुकम्पासँ भेटलनि तँ ओ मैथिलीक या कहू जे जातिवादी रंगमंचक १९ टा सर्वश्रेष्ठ एकांकीमे रामदेव झाक “पिपासा” लेने रहथि, आब ऐठाम, रामदेव झा सर्वश्रेष्ठ नाटककार भऽ गेलाह. ओइ पोथीक भूमिकामे चन्द्रनाथ मिश्र “अमर”- गोविन्द झा आ सुधांशु शेखर चौधरीक मजाक तँ उड़ेनहिये छथि संगमे राधाकृष्ण चौधरी आ मणिपद्मकेँ एहि संग्रह मे शामिल किएक नहि कएल गेल, ओइ लेल हास्यास्पद तर्क सेहो देने छथि! गुणनाथ झाकेँ ओ शामिल नै केलनि!! सर्वहाराक रंगमंचकेँ ओ शामिल किए करितथि, ई संकलन तँ जातिवादी रंगमंचक छल किने!! आब अहाँ सोचमे पड़ि जाएब जे ई लोकनि कखन एक दोसराक पक्षमे आबि जाइ छथि आ कखन विरोधमे, कखनो रामदेव झा सर्वश्रष्ठ नाटककार बनि जाइ छथि आ कखनो खारिज भऽ जाइ छथि. जातिवादी रंगमंच आपसमे खण्ड-पखण्ड अछि, मुदा विदेह मैथिली साहित्य आन्दोलन आ विदेह मैथिली समानान्तर रंगमंचक विरोधमे ई सभ एक भऽ जाइत अछि.
हालहि मे जगदीश प्रसाद मंडल जीकेँ हुनकर "गामक जिनगी"क लेल "टैगोर साहित्य सम्मान" भेटलनि. एहिमादेँ अहाँ किछु कहय चाहब ?
हमरा सभकेँ बड्ड खुशी भेल. मुदा बहुत गोटे कें ई नहि सोहेलनि. कमल मोहन चुन्नूकेँ नाटककार जगदीश प्रसाद मण्डलकेँ टैगोर साहित्य सम्मान भेटलासँ एतेक कष्ट भेलनि जे ओ एक बेर फेर “घर-बाहर”मे मलंगिया जीकेँ साहित्य अकादेमी पुरस्कार भेटए, से फतवा जारी कऽ देलनि ई कहि कऽ जे मलंगिया जी मैथिलीक (जातिवादी रंगमंचक दृष्टिकोणसँ) सर्वश्रेष्ठ नाटककार छथि, मुदा ऐबेर ओ ई सतर्की केलनि जे सर्वश्रेष्ठ समालोचक, लघुकथाकार आ कविक नामक आ हुनको सभकेँ साहित्य अकादेमी भेटए से चर्च कऽ देलनि, जे आरोप नै लागए; कहबाक आवश्यकता नै जे ऐ लिस्टक सभ समालोचक, लघुकथाकार आ कवि चुन्नू जीक जातिक छथि. सर्वहारा वर्ग नीक जेकाँ बुझि गेल जे ई साहित्य आ ई रंगमंच ओकरा लेल नै अछि, से ओ अपनाकेँ ऐसँ कात कऽ लेलक, आ जँ विदेह मैथिली साहित्य आन्दोलन आ विदेह मैथिली समानान्तर रंगमंच नै अबितए तँ मामिला खतमे छल.
कखनोकाल हम अनुभव करैत छी जे एहि विषय पर बहस करैत-करैत लोक व्यक्तिगत आक्षेप करऽ लगैत छथि. अहाँ के की कहब अछि ?
देखियौ जँ अहाँ जातिवादी रंगमंचक विरोध करब तँ मलंगिया जीक बेटा अहाँकेँ धमकी देताह, जेना ललित कुमार झा उमेश मण्डल जी केँ देलनि. मलंगियाजीक जातिवादी रंगमंचक एकटा निर्देशक प्रकाश झा मुन्नाजीकेँ कहलनि, जे बेचन ठाकुर भरि दिन केश कटैत रहैए, रंगमंच ओ किए ने जानै गेलै! जातिवादी रंगमंचक विरोधमे समानान्तर रंगमंच अछि तँ अहाँ हुनका लोकनिसँ की आशा करै छी! ओना हमर ठाकुर टाइटिल सँ हुनका लोकनिकेँ भेल हेतनि जे हम नौआ ठाकुर छी, तेँ ओ ई बाजल छथि. मुदा जँ किओ ई काज कऽ रहल छथि आ अपन संस्कृतिक रक्षा कऽ रहल छथि, जेना नौआ ठाकुर लोकनि तँ की हर्ज. विद्यापति ठाकुर, जे बिस्फीक नौआ ठाकुर रहथि, केँ बिदापत नाचक माध्यमसँ जिआ कऽ रखलनि नौआ ठाकुर लोकनि, विद्यापति आ मैथिलीकेँ हजार साल धरि जिआ कऽ राखलन्हि, तँ ऐमे ककरो किए कष्ट छै. आब तँ ओ लोकनि विद्यापतिकेँ ब्राह्मण बनेबा मे लागल छथि. ओना हम बरही जातिक छी.
अपनेक आगाँक लक्ष्य की अछि?
हम आगाँ २५ साल धरि ई समानान्तर रंगमंच चलबैत रहब. पछिला २५ सालमे जतेक सफलता भेटल अछि ओइसँ हम उत्साहित छी, अगिला पचीस सालमे जँ हम जातिवादी रंगमंचक किरदानीक कारण मैथिलीसँ भागल सर्वहारा वर्गक किछु आर गोटेकेँ मैथिलीसँ जोड़ि सकब आ जे काज हमरासँ छूटि जाएत से अगिला पीढ़ी करत. जातिवादी रंगमंच आब सरकारी आ गएर सरकारी संस्थाक हथियार बनि कऽ रहि गेल अछि, ई ढहब शुरू भऽ गेल अछि, किछु ऊपरी सुधार, नामे लेल सही, ई कऽ रहल अछि. हमर लक्ष्य अछि जे अगिला पचीस सालमे ई जड़िसँ खतम भऽ जाए.
गाम-घर मे नाटकक विकास के लेल की कएल जेबाक चाही ?
देखियौ, सभसँ पहिने कहब जे गाम-घरक आम लोक बेसी पढ़ल-लिखल नै होइत छथि. मुदा मैथिली साहित्यकारक एकटा बड़का बेमारी छैक जे अनेरे के विद्वता छाँटब सँ बाज नै अबैत छथि. गाम-घर मे नाटकक विकासक खातिर सभसँ पहिने ई भाषा सुधार हेबाक चाही. संवाद मे हिन्दी-संस्कृत केँ फेटल नै जेबाक चाही. संवाद आम बोलचालक भाषा सँ मेल खाइत हुअए. कथानक आ दृश्य सेहो ग्रामीण परिवेश केँ धियान मे रखैत गढ़ल जाए. आम जन-जीवन सँ नजदीक हुअए. संगहि सरकारी स्तर पर सेहो किछु प्रयास हेबाक चाही जइ सँ गामक रंगकर्मी सभकेँ प्रोत्साहन भेटैक. ऐसँ नवतुरिया सेहो आकर्षित हेतै. गामे-घर मे नै नगरो मे नाटकक विकासक लेल ऐ तरहक गप-सप पर नाटककार आ रंगमंचकर्मीकेँ ध्यान देबाक चाही.
अहाँ एकटा कलाकार,निर्देशकक अलावे नाटककारक रूप मे सेहो प्रसिद्ध छी. अपन लिखल नाटकक संबंध मे किछु कहल जाए?
हम एखन तक कुल २५-२६ टा नाटक आ एकांकी लिखने छी. किछु एहनो नाटक अछि जकरा मूल रूप मे तँ केयो आन लिखने छथि मुदा हम ओइ मे बारह सँ चौदह अना तक संशोधन कऽ ग्रामीण परिवेश मे मंचन करबा योग्य नाटकक रूपमे ओकरा परिवर्तित कएने छी. किछु हिन्दी नाटककेँ सेहो मैथिली मंचक मांगक अनुरूप पुनर्लेखन केने छी. अपन नाटक लिखैत काल हमर प्रयास रहैत अछि जे ओकर कथानक आ पात्र सभ मे समाजक सभ वर्गक प्रतिनिधित्व रहैक. ऐ खातिर हम अपना हिसाबे भाषाक सरलीकरण करबाक प्रयास करैत छी. ओना तँ अपन प्रशंसा अपने नै करक चाही मुदा एकटा गप्प अवश्य कहए चाहब जे आसपासक गामक लोक जखन ई सुनैत छथि जे बेचन ठाकुरक नाटकक मंचन होबएबला छैक तँ भीड़ उमड़ि पड़ैत छैक. ऐ सँ हमरा लगैत अछि जे हम जे प्रयास कऽ रहल छी से सार्थक अछि. लोकक भीड़ देख खुशी होइत अछि. एखन धरि हमर दू टा नाटक "बेटीक अपमान" आ "छीनरदेवी'' प्रकाशित अछि, आ "विश्वासघात", “अधिकार” आ "बाप भेल पित्ती" प्रेस मे अछि.
अच्छा एकटा गप्प कहू जे ई "छीनरदेवी" शीर्षक देबाक पाछाँ कोनो खास कारण छै की? किए तऽ सामान्य बोलचाल मे एहन शब्द सभकेँ कने अश्लील मानल जाइ छै?
हँ, एक बेर हमरो मोन मे एहन तरहक विचार आएल. मुदा ई नाटक शत-प्रतिशत एकटा सत्य घटना पर आधारित छै, एकटा लड़कीक बियाह नै भऽ रहल छलै, ओकर छोटकी बहीन सभक बियाह बाल-बच्चा भऽ गेलै. ओ देहपर भूत लगा लै आ काकीपर आरोप लगबै जे यएह सभटा केने अछि. लोक सभमे आक्रोश भेलै, जे अपने छीनरदेवी लागल छै आ काकीकेँ बेटी रोटी केने छै. आ ऐ घटनाक घटनाक्रम किछु एहन चलै छै जे ई शब्द "छीनरदेवी" आम बोल चालक हिस्सा बनि गेलै. हमरा यएह एकटा शब्द ऐ विषय पर ई नाटक लिखबाक लेल प्रेरित कएलक तँए हम ऐ मे अपन बेशी दिमाग नै लगेलौं आ यथावत दर्शक सभक सोझाँ अनबाक प्रयास कएलहुं.
एखन तऽ सिनेमाइ युग छै, फेर अहाँ नाटकक भविष्य केहन देखैत छी ?
हम देख रहल छी जे यदि मैथिली नाटकक लेखन आ मंचन दुनू कनेक आधुनिक तरीकासँ कएल जेतै तँ फेर एकर भविष्य ठीके रहतै. ऐ प्रसंग मे एकटा घटनाक उल्लेख करऽ चाहब जे पछिला बेर हमरा गाम मे एकदिश आर्केस्ट्रा चलैत रहै आ दोसर दिश हमर सभक नाटक चलैत रहए. जखन आर्केस्ट्रा देखऽ बला लोक सभकेँ पता चललै जे हमर सभक नाटक सेहो भऽ रहल छै तँ बहुत रास दर्शक नाटक देखऽ लेल आबि गेलै. लोक सभ बजैत रहए जे ओइ आर्केस्ट्रा सँ ई नाटके नीक. एहन तरहक उत्साह जखन दर्शकमे देखैत छिऐ तँ बुझाइत अछि जे मैथिली नाटकक भविष्य एखन बाँचल छै. बस जरुरति छैक जे नाटक आ मंच कने सजल-धजल होइ. नाटक लिखैत काल आम जनक रुचि केँ, समस्याकेँ धियानमे राखल जाए. नाटक मनोरंजनक एकटा साधन छै, से मात्र गूढे बात टा नै मनोरंजन योग सामग्री सेहो शामिल कएल जेबाक चाही. आब यदि खाली गुढे विषय-वस्तु भरि देबै तँ पहिने कहलहुं जे गाम-घरक लोक वा नगरोक लोक जे नाटक देखैए, ओतेक रहस्य बुझएबला नै होइत छथि से हुनका सभकेँ नै रुचतनि. हम देखै छिऐ जे एखन जे मैथिली मे नाटककार सभ छथि ओइमे सभ दऽ तँ नै लेकिन अधिकतरमे नाटक मनोरंजनक सामग्रीक नाम पर जाति-धर्म पर आक्षेप कएल जाइ छै. अभद्र भाषाक उपयोग कएल जाइ छै. कतेक बेर संवादकेँ गामक परिवेशकेँ धियान मे रखैत सीन ओमिट करऽ पड़ैत अछि. ई सभ नै हेबाक चाही. हम सभ तँए समानांतर रंगमंचक माध्यम सँ एहन जातिवादी सोच आ लोकक विरोध करैत छी. हमर मानब अछि जे साहित्य (मैथिली) केँ जाति-धर्म सँ नै जोड़बाक चाही. ऐसँ साहित्य मे हल्कापन अबै छै. साहित्यकारकेँ हरदम समाजमे आदर्श विचारक प्रचार-प्रसार करबाक चाही.
ग्रामीण युवा वर्ग मे नाटकक प्रति कतेक रुचि देखै छी?
युवावर्ग मे जिज्ञासा छै मुदा ओकरा सभकेँ कने चटक-मटक चाही. लड़का सभ एकरा ओतेक सिरीयसली नै लै छै लेकिन हम देखै छी जे लड़की सभ बहुत बेशी रुचि लै छै. हम सभ जखन नाट्य महोत्सवक आयोजन करैत छी तँ लड़की सभ खूब पुरस्कार जितैत अछि. ई एकटा बड़का उत्साहजनक बात छै. पहिल विदेह नाट्य उत्सवमे हमर निर्देशनमे “उल्कामुख” नाटक मंचित भेल, ऐमे पुरखोक रोल महिला केलनि, महिलाक तँ केबे केलनि. सामान्य रूपमे लोककेँ महिलोक रोल पुरुखसँ करबऽ पड़ै छै. छह-छह घण्टाक नाटक लोक बिनु हिलने देखलक, ई मराठी टामे होइ छै. मैथिलीमे आइयो आधा-घण्टा पैंतालीस मिनटक नाटक होइ छै. ई एकटा उपलब्धि तँ अछिये. ऐ नाट्य-उत्सवक थीम रहए, भरत नाट्यशास्त्रक अनुसार मैथिली रंगमंच. अगिला नाट्य उत्सवक थीम अछि मैथिली रंगमंचमे आधुनिक मंच वास्तुकला.
आइ हम अहाँक बहुत रास समय लऽ लेलहुं...
नै.. नै.. एहन कोनो बात नै छै. आइ दिन मे अहाँ सँ गप्प भेल छल आ एखुनका समय देने रही, से जखन एकर ओरियान मे लागल रही जे आब अहाँ सँ गप्प करब कि तखने एक गोटे आबि गेलाह एकटा कोनो कागज नेने आ कहए लगलाह जे कने ऐमे देखियौ तँ जे हमर नाम ऐ वृद्धा-पेंशन बला लिस्ट मे छै कि नै..(हँसैत). हम हुनका कहलियनि जे एखन हम कनेकाल व्यस्त रहब से कने रुकू फेर हम देख देब, आब कने हुनकर कागज सेहो देखऽ पड़त.
बेस, बहुत रास नव-नव जानकारी भेटल अपने संगे गप्प कए कऽ, आशा करैत छी जे जखन अगिला बेर अहाँ सभ नाट्य महोत्सव आयोजित करब तँ ओइमे हमरो भाग लेबाक सुयोग भेटत. तखन एक बेर फेर अपनेकेँ धन्यवाद कहैत विदा लेब.
अहाँ अवश्य आबी हमर सभक नाट्य-महोत्सव मे. हमरो खुशी हएत.