खेली सप्पत जा भुइयाँ थान


बड रे जतन सँ हम पोसली पुता केँ,
भूखे सुतली अपने मर ओकरा सुतौली खुआ केँ।

अपने हम मूरुख मुदा बौआ केँ पढौली
,
काटि कष्ट पोथी लेल ढौआ जुटौली।

देखिते हमर पूत भेल फूटि जुआन
,
मोने बीतल हमर कष्ट मुख पसरल मुस्कान।

ओहि बेरा जिद कयलक गेल ओ असाम
,
महिनो ने लगलै पठौलक ढौआ कऽ काम।

तंग छली पहिने आब उबार भेल जान
,
तकलीफ भेल छू-मंतर भेल दिन हमर असान।

आयल एक दिन बेरा मे बौआ कयने लाल कान
,
देखली ओकर कान आ कि उडल हमर प्राण।

कमाइ हइ लोक ढौआ ढेरी परदेश जा
,
मुदा भागि आयल बौआ हमर मारि खा।

किछु दिनक बाद भेल ढौआ केर टान
,
भऽ गेल हमर समैया फेरो पहिने समान।

फेर गेल बेटा बम्बई अपन पित्तीक संग
,
छली हम ने हरखित मुदा ओकरा छलै नव उमंग।

एहि बेर कमायल बौआ हमर ढौआ ढेर
,
आब ने गरीब रहली देलक दिन फेर।

देखल नहि गेलनि भगवान केँ हमर दिन
,
लेला हमर मुखक मुसकी ओ छीन।

आयल फेर बौआ हमर मारि खा बम्बई सँ
,
उपर सँ तऽ ठीके छल मुदा टूटि गेल मोन सँ।

ककरा ने लगै हइ नीक अपन गाम-घर
,
पेटक खातिर परदेश जाय पडै हइ मर।

भुखले रहब मुदा देबै ने जाय ओकरा देश आन
,
अखनिये हम खेली सप्पत जा भुइयाँ थान।
 


— रूपेश कुमार झा 'त्योंथ' 
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