आइटी क्षेत्र मे कार्य केनिहार रूपेशजी एक संगे कवि, व्यंग्यकार, कथाकार, आलेखक, पत्रकार तथा मैथिलीक लोकप्रिय समाद पोर्टल “मिथिमीडिया” केर संस्थापक-संपादक छथि. हुनक रचनात्मक यात्रा लगभग एक दशक पूर्वहि सं प्रारंभ भेल छल जहन ओ विभिन्न पत्र-पत्रिका लेल लिखब शुरू केलनि. साप्ताहिक झलक मिथिला केर संपादन सहित वरिष्ठ मैथिली पत्रकार श्री ताराकान्त झाक सम्पादन मे प्रकाशित होयबला मैथिली अखबार मिथिला समाद मे नियमित कॉलम लिखैत छलाह.
“एक मिसिया” रूपेशजीक पहिल कविता-संग्रह थिक. एहि संग्रह मे कुल 25 गोट कविता अछि जेकि विविध विषय-वस्तु पर केन्द्रित अछि. कविता-संग्रहक पहिल कविता वाग्देवी शारदे मां सरस्वतीक प्रति समर्पित अछि- 'कर दया मां, रहल त्योंथ कानि, मां शारदे वर दे भवानी.' महाकवि विद्यापतिक कातर चित्र प्रस्तुत क’ रूपेश जी अपन कविता 'विद्यापतिक आंखि मे नोर'क माध्यम सं मैथिलीक दुर्दशा दिस सबहक ध्यान आकृष्ट क’ रहल छथि. विद्यापति पर्व समारोह आदिक आयोजन क' लेला सं मैथिल अपन मातॄभाषाक प्रति योगदान सं बांचि नहि सकैत अछि. एहि संवादपरक कविता मे मिथिला-मैथिलीक वर्तमान पीढीक मैथिली पर एकटा आक्षेप सेहो अछि —
“आम मैथिल जाबे बुझत नहि मैथिलीक मोल,
ताबे की हेतS पीटने ढोल?
ई भेलS जे जड़ि ठूंठ आ फ़ुनगी हरियर,
मुरही कम आ घुघनी झलगर
खाली हमर गुण गेने किछु हेतS थोड़?”
आ कविक रूप मे रूपेशजीक हॄदयक व्यथा एकटा समाधान हेतु तत्पर बुझा रहल छैथ—
“कोना सुखायत विद्यापतिक आंखि केर नोर?”
रूपेशजीक कविता मे गाम-घरक बात सेहो कहल गेल अछि.
गमैया परिवेश हुनक कविताक पॄष्ठभूमि थिक.
“खेतक बड़का आरि पर “एकमात्र बाल कविता थिक जाहि मे श्रम-कर्मक महत्व कें स्पष्ट रूपें रेखांकित कएल गेल अछि. श्रमक महता बुझबैत कवि कहैत छथि—
'श्रम होइछ सर्वोपरि ढौआ सं ने कम
आबयबला संतति हेतु करैछ ओ जोगार'
आ एहि मे निष्काम योगक तत्व उजागर भेल अछि—
'चलैत रहैत छै एहिना बौआ ई समय केर चक्र,
करैत रहS सुकर्म बनि कर्मठ, हो चाहे दिन तोहर वक्र
सुकर्मक फ़ल अबस्से होइत अछि नीक
कर्म हिसाबे सभ कें भेटऐछ फ़ल सटीक'
रूपेशजीक कविता देश मे व्याप्त गरीबी, आतंकवाद, बेरोजगारी, नैतिक पतन आदिक व्याप्त अन्हार पर इजोत दS रहल अछि. “जरा रहल छी श्रद्धा दीप” अन्हार बीच दीप जरा रहल अछि. “निशाचरक अछि तांडव बढल असह्य भेल प्रहार” सं आहत कवि हॄदय व्यथित अछि. जुग-जमानाक चालि देखि विस्मित छथि. मुदा एहि सब लेल ओ सरकार कें दोषी बुझैत कहैत छथि—
'फ़ुटैछ फ़टक्का बम, तें जिनगी ने कोनो ठीक
जनता भेल बेघर, मुदा सरकारक ने डोलैछ टींक'
'जागू आब' आह्वानपरक कविता अछि जाहि मे बेरोजगारी, हिंसा, लोकतंत्रक दयनीयताक सजीव चित्रण भेल अछि. नव क्रान्तिक आह्वान करैत किछु नवजागरण संबंधी पांति सराहनीय बुझना जा रहल अछि—
मूर्ख अछि गद्दी पर बैसल / पढल लिखल बेकार अछि
सत्य अहिंसा आइ काइल/ एहि समाजसं बारल अछि
किछु एहने बात “बूथ कैपचरिंग” कविता मे सेहो कहल गेल अछि- गामक हवा अछि बिगरल/ अछि स्वार्थ जलसं सभ भीजल” । एहि कविता मे शासन व्यवस्था पर कटाक्ष करैत कहल गेल अछि- पोसब गुन्डा हम कएकटा/ उगि गेल अछि हमरो दूटा सिंग/ करब हमहूँ आब बूथ कैपचरिंग.
मैथिल समाज मे बात छकरक एकटा अदभुत वाचिक परम्परा रहल अछि. समस्याक समाधान करबाक बदला मे अपन “थुथुरलॉजी” सं चौक चौराहा पर पानक पीक युक्त सम्भाषणरत मैथिलक एहि प्रवृति पर कटाक्ष अछि रूपेशजीक कविता 'नहि बदलत बात छकरला सं'. मिथिलाक समाज पर अपन व्यंग्यात्मक शैलीक प्रयोग करैत कहैत छथि- “ई थेथर समाज एहने रहत सदैव,/नहि बदलत बात छकरला सं”. एहि कविता मे किछु मार्मिकताक तत्व सेहो देखल जा सकैत अछि जहन ओ कहैत छथि- “मिथिला दहाइत रहत सदैव,/ बेंगक मूत सं”.
सामाजिक विद्रूपता आ अनाचार कें मिथिला सं बाहिर करबाक लेल “ क्रान्तिक पुकार” कए रहल छथि, कवि समस्त लोक कें सम्बोधित करैत कहैत छथि—
दूर करू मिलि कंटक असंख्य,/ चाही क्रान्ति आब ने मंतव्य”
आत्मपरक कविता 'जिनगी-वसंत' नव स्फ़ूर्ति, नव सोच, नव ऊर्जा, आत्म विश्वास सं भरल कविता थिक. प्राकृतिक सौन्दर्यक मनोरम चित्र प्रस्तुत करैत मानवताक रक्षाक वास्ते सुन्नर जीवन-दर्शनक बात राखल गेल अछि. प्रगतिशीलताक सोच कें नव आयाम दैत एक आदर्श समाजवादक तत्व कें बड्ड गहीरता आ सौम्यता सं रेखांकित कएल गेल अछि. एहि कविताक किछु पांति पाठक मन सहसा उर्जा ओ उल्लास सं भरि दैत अछि-“तनमन मे अछि भरल ऊर्जा विपुल / बनायब नाव नहि, ठोस पुल” आ “हारब ने हिम्मति, मृत्यु पर्यन्त” बड्ड प्रेरक अछि. आ एहि प्रेरणाक संग नव आशाक सनेस द' जाइत छथि- 'हिम्मत अछि एकदिन पायब लक्ष्य/ चहुंदिक रहत संघर्षक साक्ष्य.'
काव्य संग्रहक सब सं छोट छिन मुदा सबसं बेसी प्रभावी कविता “एक मिसिया”, जाहि नाम पर काव्य संग्रहक नाम देल गेल अछि, जन समस्याक समाधानक स्वर मुखरित भेल अछि. एक मिसिया सं आत्मसंतुष्टिक बाट पर चलैत सम्यक जीनगी जीबाक प्रेरणा सं ओतप्रोत अछि.
“प्रचंड ताप सं लहरैत धरती कें चाही
बरखाक शीतल बुन्न एक मिसिया
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मायक हेतु असीम आनंद सृजित करैछ
नेनाक हुलास ओ मुसकी एक मिसिया
रूपेशजीक कविता मे गरीबी, आतंकवाद, राजनीति, बेरोजगारी, अनीति, क्षद्मरूपता, बेइमानी, हिंसा, लोकतंत्रक बर्तमान दयनीय स्थिति, दहेज प्रथा, प्रेम प्रकृति, चुनावी ठग, अभाव, विवशता, दहेज समस्या, देश प्रेम, देशक चिन्ता, भ्रष्टाचार, अनाचार, जन समस्याक समाधानक तत्व परिपूर्ण अछि. कवि रूपेश व्यंग्यवाण चलाबय मे बड्ड माहिर बुझना जायत छथि. युगीन परिवेश मे व्याप्त समस्त तत्वक सटीक आ सम्यक समायोजन भेल अछि. हुनक पहिल काव्य संग्रह “एक मिसिया” मे. कुल मिलाक', एहि संग्रहक सब कविता पठनीय अछि, जीवन, समाज, दर्शन, संस्कृति कें बुझबाक समस्त आयाम-व्यायामक सुन्नर सीढी ठार कएल गेल अछि.
हमरा बुझने, “एक मिसिया “मिथिला आ मैथिलक समकालीन परिस्थिति ओ मनोस्थिति बुझबाक वास्ते काव्यानुरागी पाठक लोकनिक लेल मीलक पाथर साबित होयत. रूपेशजी कें अनेकानेक बधाइ ओ शुभकामना.
पोथी : एक मिसिया (कविता)
रचनाकार : रूपेश त्योंथ
प्रकाशक : मिथिमीडिया पब्लिकेशन्स (2013)
मोल : 20 टाका मात्र
समीक्षा: भास्करानंद झा भास्कर
पोथी : एक मिसिया (कविता)
रचनाकार : रूपेश त्योंथ
प्रकाशक : मिथिमीडिया पब्लिकेशन्स (2013)
मोल : 20 टाका मात्र
समीक्षा: भास्करानंद झा भास्कर